Wednesday, 25 November 2015

सोचो क्या टोर रही होगी उस महामानव की!

जब मुहम्मद अली जिन्नाह और नेहरू ने गांधी के आगे तब के यूनाइटेड पंजाब के बंटवारे की बात रखी तो गांधी ने एकमुश्त जवाब दिया कि, "पंजाब को छोड़ के बाकी के भारत में जो चाहे करवा लो, पंजाब मेरे काबू से बाहर की चीज है; क्योंकि वहाँ छोटूराम की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता|"

जब उस महामानव छोटूराम को जिन्नाह की पंजाब को तोड़ने की मंशाओं का पता चला तो उसको पंजाब से तड़ीपार कर, बॉम्बे भिजवा दिया था| और सख्त लहजे में कह दिया था कि ख़बरदार जो मेरे पंजाब को तोड़ने की मंशा रखी तो|

जिन्नाह ने इसपे गांधी को एप्रोच किया तो गांधी ने कहा कि उसके आगे तो मैं भी लाचार हूँ, तू अभी बॉम्बे ही रह, कुछ होगा तो देखूंगा|

इस ममतामयी तरीके से बैठा था अपने पंजाब की जनता को सहेजे हुए वो महामानव, ठीक वैसे ही जैसे मुर्गी अपने अण्डों को सेते वक्त उन पर बैठती है|

काश ऊपरवाला सर चौधरी छोटूराम को 1945 में बुलाने की बजाये, ज्यादा नहीं तो बस 2-4 साल और बाद बुलाता तो, आज उत्तरी भारत का भूगोल कुछ और होता|

आज फिर एक ऐसा ही ममतामयी महामानव चाहिए हमारी धरती को|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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