क्यों नहीं आपने इन बद्जुबानों की जुबानी बंद
करी इसका हवाला देते हुए? क्या हर बात पर जनता जब आपका दरवाजा खटखटाये तभी
आप बोलेंगे? क्या आपकी अपनी कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं अपने कानूनों को
बचाये रखने की? या आप भी यह देख के चलते हैं कि "जावेद बनाम हरयाणा सरकार"
जैसे केस के फैसले की धज्जियाँ उड़ाने वाले कौन हैं?
माननीय, शिक्षा क्या है? वह गुण जो एक की समर्थता/दक्षता होता है और दूसरे की असमर्थता/निर्भरता होता है। जैसे आप एक जज हो के भी अपने पेट के अन्न के लिए किसान के ज्ञान पर निर्भर हो, अपने लिए मकान बनाने हेतु एक मजदूर/मिस्त्री के ज्ञान पर निर्भर हो| उसी तरह यह उस किसान और मजदूर की शिक्षा है जो आपको अक्षरी ज्ञान होने पर भी उस पर निर्भर रहने की आपकी अशिक्षा और कमजोरी को दूर नहीं कर पाती। संसार में ऐसा इंसान मिथ्या है जो वो हर प्रकार की शिक्षा रखता हो और जिससे वो दूसरों के ज्ञान पर निर्भर नहीं हो।
अब आता हूँ मर्म की बात पर, माननीय! धर्मवाद, जातिवाद और नश्लवाद थोथे और अर्थहीन होते हैं, मात्र सभ्यताओं को भिड़ाए रखने और नष्ट करने के प्रोपगैंडे होते हैं; यूरोप को यह बात समझने में 18वीं शताब्दी में हुई एक फ़्रांसिसी क्रांति और 20वीं सदी में हुए दो विश्वयुद्ध लगे थे।
ऐसा नहीं है कि भारत ने कभी युद्ध या क्रांति नहीं देखी, इसी नश्लवाद और जातिवाद की वजह से भारत ने ईशा पूर्व पहली सदी से ले 7वीं सदी तक बौद्ध बने हिन्दुओं का हिन्दुओं ही द्वारा जब तक बौद्ध हथियार ले उठ खड़े नहीं हुए तब तक एक-तरफा जघन्य नरसंहार (वो अलग बात है कि बौद्ध जब अपनी शांति समाधी छोड़ उठ खड़े हुए तो मात्र नौ-नौ हजार ने एक-एक लाख आतताइयों को निबटाया और इनके झींगा-लाला हुर्र-हुर्र प्रवृति के तालिबानी रूप को ठंडा किया|) और इन आतताइयों के इन प्रोपगैंडों की रखी नींव पर फिर आठवीं (720 ad) सदी से ले बीसवीं सदी (1947 ad) तक विदेशी आक्रान्ताओं (मुग़ल, अफगान, पठान, डच, पुर्तगीस, फ्रेंच, अंग्रेज) का गुलामी काल।
लेकिन हमारे यहाँ जो आज सत्ता में आन धरे हैं मजाल है जो यह इतिहास से कुछ सीखने को तैयार हों। इस पर फिर कभी या आगे बात करूँगा, फ़िलहाल आप कैसे दिशाहीन हो रहे हैं उस पर प्रकाश डालते हैं।
क्या आपने जब इतना बड़ा असवैंधानिक निर्णय, जो कि बाबा साहेब आंबेडकर के दिए सविंधान के मूल सूत्र के ही बिलकुल विपरीत है, लेते वक्त यह नहीं विचारा कि अगर कल को सविंधान में प्रस्तावित "यूनिफार्म सिविल कोड (UCC)" जब लागू करेंगे तो यह निर्णय स्वत: ही धत्ता पड़ जायेगा? क्योंकि जब यूनीफ़ॉर्मिटी की बात आएगी तो शिक्षा का क्लॉज़ उसमें से बाहर निकालना ही पड़ेगा। क्योंकि शिक्षा "यूनीफ़ॉर्मिटी" का वो पैमाना हो ही नहीं सकता जो सबको यूनिफार्म बना दे।
अच्छा होता आप अगर सरकार को यह आदेश देते कि पहले सबको दसवीं तक शिक्षित करो, फिर यह नियम लागु करने की बात करना। वाह हरयाणा सरकार ने "जावेद बनाम हरयाणा सरकार" का "दो बच्चे पैदा करने" वाला केस अपनी जिरह में आगे रखा और आपने उसी को आधार बना के निर्णय भी दे दिया? जनाब आज के दिन इस "दो बच्चे पैदा करने" वाले नियम की तो खुद आरएसएस और बीजेपी तक के एमपी जैसे कि साक्षी महाराज, साध्वी प्राची, योगी आदित्यनाथ यहां तक कि कई सारे शंकराचार्य और भगवा ब्रिगेड वाले तक भी धज्जियाँ उड़ा के "चार-चार-पांच-पांच" बच्चे पैदा करने के लिए कहते फिर रहे हैं। मेरी समझ से बाहर है कि "जावेद बनाम हरयाणा" वाले मामले का हवाला देते हुए आपने अभी तक इनकी जुबान बंद क्यों नहीं की, जो अब अपनी सुविधानुसार इसको आधार बनाया और सुना दिया एक लोकतान्त्रिक देश के लोक के 70 फीसदी हिस्से को चुनाव लड़ने से ही बाहर करने का तानाशाही फरमान?
गुस्ताखी माफ़ माननीय, परन्तु आपका यह फैसला किसी तानाशाह की भांति ही कहा जायेगा, इसमें आपने ऐसा कोई मर्म नहीं विचारा जिसमें मानवता और वैचारिकता झलके। बिहार के चुनाव और जनादेश को भी आपने धत्ता बता दिया? मेरे विचार से कोर्ट देश की जनता की मंशा को लागु करने हेतु होते हैं, सरकारों के उलजुलूल ड्रामों को जनता पर थोपने हेतु तो नहीं होते? आप स्थाई हैं सरकार स्थाई नहीं। या आपको भी कल न्याय परिसरों से निकल के चुनाव लड़ने जाना है, जो ऐसा फैसला सुनाया?
खैर इस फैसले को तो जनता अगली सरकार में वापिस करवा ही देगी, परन्तु ऐसा होने में फिर आपकी स्वायत्ता पर प्रश्नचिन्ह लग जायेगा। अब तो जो हुआ सो हुआ परन्तु आगे के लिए एक विचार जरूर रखना चाहूंगा कि शिक्षा के पैमाने कर्म के आधार पर निर्धारित होने चाहियें, स्टैण्डर्ड, धर्म या राजनीति के आधार पर नहीं। फ़्रांस, यूरोप, अमेरिका ने इस बात को समझा और लागू किया, आप भी जितना जल्दी समझेंगे उतना जल्दी देश सही दिशा में तरक्की करेगा।
साफ़ दिख रहा है कि आपका यह फैसला जाने में या अनजाने में जैसे भी हो परन्तु देश में वर्णीय, जातीय और नश्लीय कटटरता को बढ़ावा देने वाला है। इसके पीछे जो कोई ताकतें हों परन्तु यह याद रखियेगा अगर कल को भारत में दूसरी फ़्रांसिसी क्रांति हुई, तो आप अपने दामन को दागदार होने से नहीं बचा पाएंगे। और भारत में यह क्रांति हो, इसकी गर्त में अन्य कटटरवादी ताकतों के साथ-साथ आप खुद भी आहुति डाले जा रहे हैं। अगर आपको इसका भान नहीं है तो भान ले लीजिए और समय रहते अपने दामन को छिंटक लीजिये।
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
माननीय, शिक्षा क्या है? वह गुण जो एक की समर्थता/दक्षता होता है और दूसरे की असमर्थता/निर्भरता होता है। जैसे आप एक जज हो के भी अपने पेट के अन्न के लिए किसान के ज्ञान पर निर्भर हो, अपने लिए मकान बनाने हेतु एक मजदूर/मिस्त्री के ज्ञान पर निर्भर हो| उसी तरह यह उस किसान और मजदूर की शिक्षा है जो आपको अक्षरी ज्ञान होने पर भी उस पर निर्भर रहने की आपकी अशिक्षा और कमजोरी को दूर नहीं कर पाती। संसार में ऐसा इंसान मिथ्या है जो वो हर प्रकार की शिक्षा रखता हो और जिससे वो दूसरों के ज्ञान पर निर्भर नहीं हो।
अब आता हूँ मर्म की बात पर, माननीय! धर्मवाद, जातिवाद और नश्लवाद थोथे और अर्थहीन होते हैं, मात्र सभ्यताओं को भिड़ाए रखने और नष्ट करने के प्रोपगैंडे होते हैं; यूरोप को यह बात समझने में 18वीं शताब्दी में हुई एक फ़्रांसिसी क्रांति और 20वीं सदी में हुए दो विश्वयुद्ध लगे थे।
ऐसा नहीं है कि भारत ने कभी युद्ध या क्रांति नहीं देखी, इसी नश्लवाद और जातिवाद की वजह से भारत ने ईशा पूर्व पहली सदी से ले 7वीं सदी तक बौद्ध बने हिन्दुओं का हिन्दुओं ही द्वारा जब तक बौद्ध हथियार ले उठ खड़े नहीं हुए तब तक एक-तरफा जघन्य नरसंहार (वो अलग बात है कि बौद्ध जब अपनी शांति समाधी छोड़ उठ खड़े हुए तो मात्र नौ-नौ हजार ने एक-एक लाख आतताइयों को निबटाया और इनके झींगा-लाला हुर्र-हुर्र प्रवृति के तालिबानी रूप को ठंडा किया|) और इन आतताइयों के इन प्रोपगैंडों की रखी नींव पर फिर आठवीं (720 ad) सदी से ले बीसवीं सदी (1947 ad) तक विदेशी आक्रान्ताओं (मुग़ल, अफगान, पठान, डच, पुर्तगीस, फ्रेंच, अंग्रेज) का गुलामी काल।
लेकिन हमारे यहाँ जो आज सत्ता में आन धरे हैं मजाल है जो यह इतिहास से कुछ सीखने को तैयार हों। इस पर फिर कभी या आगे बात करूँगा, फ़िलहाल आप कैसे दिशाहीन हो रहे हैं उस पर प्रकाश डालते हैं।
क्या आपने जब इतना बड़ा असवैंधानिक निर्णय, जो कि बाबा साहेब आंबेडकर के दिए सविंधान के मूल सूत्र के ही बिलकुल विपरीत है, लेते वक्त यह नहीं विचारा कि अगर कल को सविंधान में प्रस्तावित "यूनिफार्म सिविल कोड (UCC)" जब लागू करेंगे तो यह निर्णय स्वत: ही धत्ता पड़ जायेगा? क्योंकि जब यूनीफ़ॉर्मिटी की बात आएगी तो शिक्षा का क्लॉज़ उसमें से बाहर निकालना ही पड़ेगा। क्योंकि शिक्षा "यूनीफ़ॉर्मिटी" का वो पैमाना हो ही नहीं सकता जो सबको यूनिफार्म बना दे।
अच्छा होता आप अगर सरकार को यह आदेश देते कि पहले सबको दसवीं तक शिक्षित करो, फिर यह नियम लागु करने की बात करना। वाह हरयाणा सरकार ने "जावेद बनाम हरयाणा सरकार" का "दो बच्चे पैदा करने" वाला केस अपनी जिरह में आगे रखा और आपने उसी को आधार बना के निर्णय भी दे दिया? जनाब आज के दिन इस "दो बच्चे पैदा करने" वाले नियम की तो खुद आरएसएस और बीजेपी तक के एमपी जैसे कि साक्षी महाराज, साध्वी प्राची, योगी आदित्यनाथ यहां तक कि कई सारे शंकराचार्य और भगवा ब्रिगेड वाले तक भी धज्जियाँ उड़ा के "चार-चार-पांच-पांच" बच्चे पैदा करने के लिए कहते फिर रहे हैं। मेरी समझ से बाहर है कि "जावेद बनाम हरयाणा" वाले मामले का हवाला देते हुए आपने अभी तक इनकी जुबान बंद क्यों नहीं की, जो अब अपनी सुविधानुसार इसको आधार बनाया और सुना दिया एक लोकतान्त्रिक देश के लोक के 70 फीसदी हिस्से को चुनाव लड़ने से ही बाहर करने का तानाशाही फरमान?
गुस्ताखी माफ़ माननीय, परन्तु आपका यह फैसला किसी तानाशाह की भांति ही कहा जायेगा, इसमें आपने ऐसा कोई मर्म नहीं विचारा जिसमें मानवता और वैचारिकता झलके। बिहार के चुनाव और जनादेश को भी आपने धत्ता बता दिया? मेरे विचार से कोर्ट देश की जनता की मंशा को लागु करने हेतु होते हैं, सरकारों के उलजुलूल ड्रामों को जनता पर थोपने हेतु तो नहीं होते? आप स्थाई हैं सरकार स्थाई नहीं। या आपको भी कल न्याय परिसरों से निकल के चुनाव लड़ने जाना है, जो ऐसा फैसला सुनाया?
खैर इस फैसले को तो जनता अगली सरकार में वापिस करवा ही देगी, परन्तु ऐसा होने में फिर आपकी स्वायत्ता पर प्रश्नचिन्ह लग जायेगा। अब तो जो हुआ सो हुआ परन्तु आगे के लिए एक विचार जरूर रखना चाहूंगा कि शिक्षा के पैमाने कर्म के आधार पर निर्धारित होने चाहियें, स्टैण्डर्ड, धर्म या राजनीति के आधार पर नहीं। फ़्रांस, यूरोप, अमेरिका ने इस बात को समझा और लागू किया, आप भी जितना जल्दी समझेंगे उतना जल्दी देश सही दिशा में तरक्की करेगा।
साफ़ दिख रहा है कि आपका यह फैसला जाने में या अनजाने में जैसे भी हो परन्तु देश में वर्णीय, जातीय और नश्लीय कटटरता को बढ़ावा देने वाला है। इसके पीछे जो कोई ताकतें हों परन्तु यह याद रखियेगा अगर कल को भारत में दूसरी फ़्रांसिसी क्रांति हुई, तो आप अपने दामन को दागदार होने से नहीं बचा पाएंगे। और भारत में यह क्रांति हो, इसकी गर्त में अन्य कटटरवादी ताकतों के साथ-साथ आप खुद भी आहुति डाले जा रहे हैं। अगर आपको इसका भान नहीं है तो भान ले लीजिए और समय रहते अपने दामन को छिंटक लीजिये।
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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