Saturday, 19 December 2015

और यही अंतर है विकासशील और विकसित में!

व्यापार का ग्लोबलाइजेशन चाहिए, टेक्नोलॉजी का ग्लोबलाइजेशन चाहिए, डेवलपमेंट ग्लोबल स्टैण्डर्ड की चाहिए, इंफ्रास्ट्रक्चर ग्लोबल स्टैण्डर्ड का चाहिए, रिलिजन को ग्लोबल पहचान दिलवानी है; परन्तु ऐसी बातें करने वाले भारतियों को सामाजिक सरंचना और न्याय व्यवस्था के ग्लोबलाइजेशन से परहेज है|

ग्लोबल लोकेशंस पर बैठे भारतियों तक से भारतीय सामाजिक वर्ण व् जाति व्यवस्था खत्म करने बारे पूछ लो तो, गर्म तवे पे जैसे गिर गए हों ऐसे फफकते हुए कहेंगे कि नहीं, उसमें क्या खराबी है?

खराबी है यही तो खराबी है, आजतक इंटेल्लेक्टुअल्ली इतने ही वाइज नहीं हुए हैं हम कि सिवाय अपने कर्म के दूसरे के कर्म/हुनर को अपने बराबर का भी समझें| ग्लोबल लोकेशंस पर बैठ के भी वर्ण और जाति-व्यवस्था में जीने वाले लोग एक सीजन खुद से अन्न उगा के देखें तो जैसे बाकी के विकसित विश्व को समझ आ गया ऐसे ही समझ आ जाएगा कि किसी और का हुनर भी आपसे सर्वोच्च और श्रेष्ठ हो सकता है|

हम अपने दिमाग और सोच जिस दिन इतने विकसित कर इस वर्ण और जातिगत दम्भ, अहम और गरूर से ऊपर उठ गए, उस दिन स्वत: ही विकसित देश बन जायेंगे| अन्यथा भारत इस प्रतिष्ठा पदवी तक पहुँचने से कोसों दूर था और मीलों दूर रहेगा|

क्योंकि कल को जब हम अपनी विकसितता विश्व को गिनवाने चलेंगे तो विश्व यह गिनके हमें विकसित होने का सर्टिफिकेट नहीं देगा कि हमारे यहां कितने स्काईस्क्रेपर हैं, या कितने बिलियनएयर; वो सबसे पहले यह देखेगा कि देश के भीतर हम ह्यूमैनिटी और हार्मोनी पर कितने निष्पक्ष और उदार हैं।

जय यौद्धेय! - फूल कुमार मलिक

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