Thursday, 24 December 2015

हरयाणवी, रेफ़ुजी (सरणार्थी), सिग्नेचर कैंपेन और कानून!

सुनने में आ रहा है कि हिन्दू अरोड़ा/खत्री कम्युनिटी के लोग सविंधान में आर्टिकल 6 होने के बावजूद भी और UNO चार्टर सामने होते हुए भी सिग्नेचर कैंपेन चलाये हुए हैं कि उनको "रेफ़ुजी" व् "पाकिस्तानी" ना कहा जाए| यह कोरी नौटंकी ही है क्योंकि यह कानून बदल गए तो पिछले 70 साल से इन कानून के तहत यह लोग जो लाभ लेते आ रहे हैं, उनका हिसाब-किताब देना पड़ेगा; बदलवाने चले तो कानून बदलेगा नहीं क्योंकि रेफ़ुजी लॉ UNO इंटरनेशनल होते हैं, जिसके तहत यह लोग आज भी पाकिस्तान में अपना हक़ रखते हैं और जब चाहें वापिस जावें तो इनको इनकी प्रॉपर्टी का क्लेम वहाँ मिल सकता है| फिर भी समाज में अपने लिए एक भावुकता बढ़ाने हेतु, यह सब किया जा रहा है|

और एक हम हरयाणवी हैं जिनको कोई कंधे से नीचे मजबूत और ऊपर कमजोर कहे तो फर्क ही नहीं पड़ता| शायद जाट बनाम नॉन-जाट के जहर का ही असर है कि हवा सिंह सांगवान व् उनकी टीम के अलावा कोई भी हरयाणवी इस तरीके से नहीं सोचा कि वो भी इस पर एक सिग्नेचर कैंपेन चलावें और मुख्यमंत्री को उनके ब्यान पे हर जिले के डीसी को नोटिस दे दे के अपने रिमार्क पर माफ़ी हेतु बाध्य करें|

इस जाट बनाम नॉन-जाट के जहर का असर देखा, सिर्फ जाटों को ही हरयाणवी बना के छोड़ दिया| बाकी शायद इस मुद्दे पर इसलिए बोलने को तैयार नहीं क्योंकि हरयाणवी और जाट शब्द अकाट्य तरीके से जोड़ दिए गए हैं| जाटों के लिए तो यह बहुत ही अच्छी बात है| परन्तु नॉन-जाट हर्याणवियों का क्या, जिनकी हरयाणवी आइडेंटिटी छिन गई इस जाट बनाम नॉन-जाट के चक्कर में| क्यों भाई बाकी के हर्याणवियों क्या आपको भी सरणार्थी स्टेटस चाहिए? या फिर यह जाट से नफरत इतनी ताकतवर है कि जाट से जुड़ना मंजूर नहीं भले ही हरयाणवी कहलवाना छूट जाए?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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