अभी विगत 1 दिसंबर से 3 दिसंबर 2015 तक मेरे गाँव निडाना नगरी, जिला जींद, हरयाणा में विशाल कबड्डी दंगल सजा| दंगल ऑर्गनाइज करने का खर्च आया करीब 4 लाख रूपये और गाँव में खेल-हाल बनाने हेतु चंदा आया 15 लाख रूपये|
इस चंदे से मेरे गाँव के लोगों ने फैसला लिया कि गाँव-गुहांड के बच्चों को उच्च स्तर का खिलाडी बनाया जा सके इसके हेतु कुश्ती, कबड्डी व् अन्य खेल सुविधाओं से सुसज्जित खेल-हाल बनाया जाएगा|
यानि मेरी नगरी ने अपने पुरखों की स्थापित परम्परा को आगे जारी रखते हुए, फिर से एक ऐसी सार्वजनिक सुविधा बनाने का फैसला लिया है जो कि वाकई में गाँव-गुहांड के सैंकड़ों खिलाडियों का उद्दार करेगी|
हालाँकि किसने कितना चंदा दिया, उसकी सूची मुझे मिल चुकी है परन्तु उसको यहां लिखना व्यक्ति-विशेषों का महिमामंडन हो जायेगा| इसलिए मैं उस पर ना जाते हुए, सीधा यही कहूँगा कि इससे पहले भी मेरे गाँव में ऐसे बड़े स्तर पर चंदा जुटाया जाता रहा है|
ज्यादा पुरानी तो याद नहीं परन्तु पिछले करीब 100 सालों में, नगरी और समाज के लोगों के सहयोग से बनी ऐसी सार्वजनिक सुविधाएँ मुझे याद हैं|
1) जैसे 1936 में दादा चौधरी जागर जी की दान की जमीन और बाकी चंदे से उस जमीन पर बना इलाके का सबसे प्राचीन स्कूल, जिसकी वजह से आसपास के गुहांडों में आज निडाना में सबसे ज्यादा ग्रेडुएट्स हैं| खानपुर महिला विश्वविधालय, गोहाना को इसके संस्थापक भगत फूल सिंह के जमाने से जाने वाला चंदा व् जमीन, विभिन्न गुरुकुलों और गौशालाओं में अविरल जाता रहने वाला अन्न-धन|
2) 1990 में स्वामी रत्नदेव के सानिध्य में बनी 34 कमरों की कन्या कॉलेज की ईमारत (जिसको उनकी मृत्यु उपरांत सरकारी सेकेंडरी स्कूल में तब्दील कर दिया गया था)।
3) इसी दौर में गाँव में सम्पूर्ण शराबबंदी हेतु गाँव के युवाओं की बना "युवा नशामुक्ति दल", जो जब तक सक्रिय रहा, गाँव के किसी भी घर में शराब नहीं रहने दी| इस दल को आज फिर से वापिस क्रियाशील होने की जरूरत है|
4) फिर 1998 में सरकारी पानी सप्लाई की योजना गर्क हो जाने की वजह से बिना सरकार का इंतज़ार किये, गाँव के लोगों द्वारा खुद के चंदे से गली-गली पाइपलाइन बिछा के घर-घर वाटर-सप्लाई का इंफ्रा डेवलपमेंट करना, जिसकी वजह से आज गाँव की कोई भी औरत गाँव की फिरनी से बाहर पानी हेतु भटकती नहीं फिरती|
5) अभी 2008 से स्वर्गीय डॉक्टर सुरेन्द्र दलाल की प्रेरणा व् मार्गदर्शन में शुरू हो निरंतर चल रही अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त "खाप-खेत-कीट-पाठशाला"| जिसकी वजह से गाँव को "कीट-कमांडोज़" का गाँव होने की ख्याति मिल चुकी है|
6) और अब यह अनूठा साहकार| वाह मजा आ गया|
यहां एक बात याद करता हुआ चलूँगा कि जब 1990 के दशक में स्वामी रत्नदेव जी को गाँव ने कन्या कॉलेज के लिए 17 कमरों का चंदा इकट्ठा किया था तो सरकार ने उसको डबल करते हुए 34 कमरों का कर दिया था| तो नगरी और इस परियोजना के मौजिज लोगों को चाहिए कि खटटर सरकार से मिला जाए| मुझे विश्वास है कि ऐसे सार्वजनिक कामों के लिए मिलने वाले चंदे को सरकार दोगुना कर देती है| कम-से-कम पिछली सरकारों ने तो किया है इसमें भी होना चाहिए| अगर हुआ तो खेल-हाल के लिए एकत्रित 15 लाख का 30 लाख तो सीधा मिल जायेगा|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
इस चंदे से मेरे गाँव के लोगों ने फैसला लिया कि गाँव-गुहांड के बच्चों को उच्च स्तर का खिलाडी बनाया जा सके इसके हेतु कुश्ती, कबड्डी व् अन्य खेल सुविधाओं से सुसज्जित खेल-हाल बनाया जाएगा|
यानि मेरी नगरी ने अपने पुरखों की स्थापित परम्परा को आगे जारी रखते हुए, फिर से एक ऐसी सार्वजनिक सुविधा बनाने का फैसला लिया है जो कि वाकई में गाँव-गुहांड के सैंकड़ों खिलाडियों का उद्दार करेगी|
हालाँकि किसने कितना चंदा दिया, उसकी सूची मुझे मिल चुकी है परन्तु उसको यहां लिखना व्यक्ति-विशेषों का महिमामंडन हो जायेगा| इसलिए मैं उस पर ना जाते हुए, सीधा यही कहूँगा कि इससे पहले भी मेरे गाँव में ऐसे बड़े स्तर पर चंदा जुटाया जाता रहा है|
ज्यादा पुरानी तो याद नहीं परन्तु पिछले करीब 100 सालों में, नगरी और समाज के लोगों के सहयोग से बनी ऐसी सार्वजनिक सुविधाएँ मुझे याद हैं|
1) जैसे 1936 में दादा चौधरी जागर जी की दान की जमीन और बाकी चंदे से उस जमीन पर बना इलाके का सबसे प्राचीन स्कूल, जिसकी वजह से आसपास के गुहांडों में आज निडाना में सबसे ज्यादा ग्रेडुएट्स हैं| खानपुर महिला विश्वविधालय, गोहाना को इसके संस्थापक भगत फूल सिंह के जमाने से जाने वाला चंदा व् जमीन, विभिन्न गुरुकुलों और गौशालाओं में अविरल जाता रहने वाला अन्न-धन|
2) 1990 में स्वामी रत्नदेव के सानिध्य में बनी 34 कमरों की कन्या कॉलेज की ईमारत (जिसको उनकी मृत्यु उपरांत सरकारी सेकेंडरी स्कूल में तब्दील कर दिया गया था)।
3) इसी दौर में गाँव में सम्पूर्ण शराबबंदी हेतु गाँव के युवाओं की बना "युवा नशामुक्ति दल", जो जब तक सक्रिय रहा, गाँव के किसी भी घर में शराब नहीं रहने दी| इस दल को आज फिर से वापिस क्रियाशील होने की जरूरत है|
4) फिर 1998 में सरकारी पानी सप्लाई की योजना गर्क हो जाने की वजह से बिना सरकार का इंतज़ार किये, गाँव के लोगों द्वारा खुद के चंदे से गली-गली पाइपलाइन बिछा के घर-घर वाटर-सप्लाई का इंफ्रा डेवलपमेंट करना, जिसकी वजह से आज गाँव की कोई भी औरत गाँव की फिरनी से बाहर पानी हेतु भटकती नहीं फिरती|
5) अभी 2008 से स्वर्गीय डॉक्टर सुरेन्द्र दलाल की प्रेरणा व् मार्गदर्शन में शुरू हो निरंतर चल रही अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त "खाप-खेत-कीट-पाठशाला"| जिसकी वजह से गाँव को "कीट-कमांडोज़" का गाँव होने की ख्याति मिल चुकी है|
6) और अब यह अनूठा साहकार| वाह मजा आ गया|
यहां एक बात याद करता हुआ चलूँगा कि जब 1990 के दशक में स्वामी रत्नदेव जी को गाँव ने कन्या कॉलेज के लिए 17 कमरों का चंदा इकट्ठा किया था तो सरकार ने उसको डबल करते हुए 34 कमरों का कर दिया था| तो नगरी और इस परियोजना के मौजिज लोगों को चाहिए कि खटटर सरकार से मिला जाए| मुझे विश्वास है कि ऐसे सार्वजनिक कामों के लिए मिलने वाले चंदे को सरकार दोगुना कर देती है| कम-से-कम पिछली सरकारों ने तो किया है इसमें भी होना चाहिए| अगर हुआ तो खेल-हाल के लिए एकत्रित 15 लाख का 30 लाख तो सीधा मिल जायेगा|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
No comments:
Post a Comment