Friday, 25 December 2015

There is nothing like serious politics in India, its only a type of business!

मैंने 2014 के लोकसभा इलेक्शन से पहले ही कह दिया था कि "हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और!"। देखना आज वोट लेते वक्त जो यह व्यक्ति पाकिस्तान को पानी-पी-पी के कोस रहा है, "एक के बदले दस सर लाने" तो कहीं "लव-लेटर लिखने बंद करने की" (folks remember Rajat Sharma's 'Aap ki Adalat) शेखीयाँ बघार रहा है; अगर यही आदमी अटल बिहारी वाजपेयी की भाँति पाकिस्तान के साथ लंगर छकता और छकाता ना फिरे तो। अटल बिहारी ने ...तो आगरा न्योते दे-दे के लंगर छकाए, यह जनाब तो उनसे भी दो चंदे आगे बढ़के वहीँ जा के छक के आ रहे हैं|

क्यों अमित शाह जी कितने पटाखे फ़ुड़वा दिए आज पाकिस्तान में? (remember Bihar election jumla)| बिहार में इनके हारने से जिस पाकिस्तान में पटाखे फूटते हों, शर्म तो ना आई होगी उसी पाकिस्तान का थाल छकते हुए?

यार लिहाज-शर्म वालों को तो कोई कुछ कह भी ले, इन चिकने घड़ों को कोई कितना रो ले। जब तक भारत में धर्म, धर्म ना कहला के डर कहलायेगा और राजनीति, राजनीति ना कहला के व्यापार कहलाएगी, तब तक भारत और भारतीय जनता का उल्लू बनता रहेगा।


क्यों भगतो, मोदी जी दिलवाले देखने तो नहीं पहुँच गए, पाकिस्तान और यहाँ तुम बने फिर रहे गुरुघंटाल|

फूल मलिक

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