Friday 1 January 2016

कल खुद जिनको दिल्ली सौंपा करते थे, आज उन्हीं के खिलाफ लवजिहाद, बीफ इत्यादि, आखिर यह कैसा राष्ट्रवाद?

अकबर के वक्त से लेकर और अठारहवीं सदी के पूर्वार्ध तक देश की सत्ता का मुख्य केंद्र व् मुग़ल राजधानी आगरा थी| दिल्ली उस वक्त किसी अन्य साधारण रियासत की भांति ही थी। इसलिए दिल्ली को बचाये रखने के लिए इसके मुस्लिम नवाबों को अन्य शासकों की सहायता की दरकार रहती थी, जिसमें मराठा पेशवा उनकी सबसे ज्यादा सहायता करते थे| इसलिए जब दिल्ली सुरक्षित हो जाती तो पेशवा उसको मुस्लिमों को ही सौंप देते| यह मेरे लिए बड़ा हैरान कर देने वाला सवाल है कि पूरे देश पर फ़ैल जाने का दवा करने वाले मराठे कभी दिल्ली को मुस्लिमों से मुक्त क्यों नहीं करवाना चाहते थे?

मुझे समझ यह नहीं आता कि यह मराठा पेशवा खुद बार-बार जिन मुस्लिम नवाबों को दिल्ली की गद्दी पर बैठा जाया करते थे, वो आज उनके ही कट्टर दुश्मन क्यों हुए फिरते हैं?

1761 में पानीपत की लड़ाई में महाराजा सूरजमल ने दो वजह से इनका साथ छोड़ा; एक तो यह महाराजा सूरजमल को बंदी बना के उनकी सेना प्रयोग करना चाहते थे, दूसरा पानीपत जीतने की परिस्थिति में दिल्ली मुगल को देना चाहते थे| 1771 में फिर से इन्होनें दिल्ली का सहयोग किया और जब दिल्ली की जीत हुई तो फिर से मुग़ल शाह-आलम को ही गद्दी दी|

और आज देखो तो इन्हीं के खिलाफ कभी लव-जिहाद तो कभी बीफ तो कभी पाकिस्तान| राष्ट्रवाद चिल्लाने वाले लोग जवाब जरूर देवें, कि क्या इनको हिन्दुओं में कोई नहीं मिलता था दिल्ली की गद्दी सौंपने को? जाट न सही, राजपूत तो थे, सिंधिया तो थे? कल जो खुद मुस्लिमों को बार-बार दिल्ली की गद्दी दिया करते थे, वो आज हिन्दू कटटरता से इतने क्यों चिपके पड़े हैं?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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