Wednesday, 27 January 2016

जाट अपनी कमजोरियों का पोस्टमॉर्टम खुद करे तो सारी एंटी-जाट हवा साफ़!

जब तक जाट अपनी खामियों-कमजोरियों को डिफेंड करना नहीं सीखेगा, एंटी-जाट तब तक जाट की इन्हीं कमजोरियों-खामियों का पोस्टमॉर्टेम (जैसे की मीडिया ट्रायल्स के जरिये) करके जाट बनाम नॉन-जाट के अखाड़े सजाते रहेंगे| जिस दिन जाट ने यह पोस्टमॉर्टेम का काम इनके हाथों से खुद अपने हाथ में ले लिया, समझो सारा मसला ही खत्म|

छोटी-छोटी बातों पे आजकल जाटों में जो आपसी टाँग-खिंचाई चलती है यह इसी का नतीजा है; खुद आगे बढ़ के अपने मतभेद मिटाते या सुलझाते नहीं; फिर उन मतभेदों को इगोभेद या जिद्दभेद बनाने को एंटी-जाट लॉबी तो गिद्द की दृष्टि गड़ाए तैयार रहती ही है|

जिस दिन जाट ने अपनी खामियों को डिफेंड करना और इनसे पार पा के 'मिनिमम कॉमन एजेंडा' बना के चलना शुरू कर दिया, जाट जाति के सारे मसले स्वत: मिटते चले जायेंगे|

कौम की कमजोरी और खामी को ढँक के रखना उतना ही जरूरी होता है जितना कि एक शरीर पे लगे घाव को हवा-पानी-मख्खी-मच्छर से ढंक के रखना| लेकिन फ़िलहाल तो उल्टा हो रहा है और ऐसा कम्पटीशन का दौर है कि एक दूसरे की खासियत की प्रसंशा, प्रमोशन या गुणगान करो ना करो परन्तु घाव हा के उघाड़ते हैं| और यही सबसे बड़ी वजह है कि क्यों जाट सबसे ज्यादा सॉफ्ट-टारगेट पे रहता है|

समस्या एक और भी है कि जो जाट इस समस्या को समझते हैं, वो भी विरले ही इससे अपने आपको दूर रख पाते हैं| अगर जो समझते हैं वो भी सामने वाले की टाँग खिंचाई करने की बजाये न्यूट्रल रहना भी सीख लेवें तो समस्या सत्तर प्रतिशत तक हल हो सकती है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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