Sunday 24 January 2016

जाट को सम्मान दोगे तो आस्मां सी ऊंचाई नसीब होगी, वर्ना तो ख़ाक की फाक भी नहीं!

मैं एक जाट हूँ, ब्राह्मण भी अगर मुझे 'जी' लगा के आदर-मान देता है तो मैं उसे सूद-समेत लौटाता हूँ। एक ब्राह्मण दयानंद सरस्वती ने आर्य-समाज की गीता यानि "सत्यार्थ-प्रकाश" में मुझे 'जाट जी' कह के सम्बोधित किया तो आज देख लो जाट ने बदले में जो सम्मान दिया उसी की बिसात है कि उत्तरी भारत में उनसे बड़ा कोई ब्राह्मण नहीं जाना जाता।

वहीँ एक ब्राह्मण सदाशिवराव भाऊ ने महाराजा सूरजमल का अपमान किया था तो पानीपत में अब्दाली के सम्मुख ऐसी मुंह की खाई कि उसी महाराजा सूरजमल के दर से मरहमपट्टी यानि फर्स्ट-ऐड नसीब हुई| अत: जाट का अपमान करने वाले की तो भगवान भी नहीं सुनता|

जाट को सम्मान देना नहीं आता, करना नहीं आता या व्यवहार नहीं आता इत्यादि कहने वालों के सामने इनसे बड़े उदाहरण और क्या पेश करूँ कि जाट जितना मान-सम्मान तो किसी को भी करना-देना नहीं आता; बशर्ते कि सामने वाला भी करना जानता हो। मीडिया बेशक जाट को कितना ही नकारात्मक दिखाए परन्तु ब्राह्मण ने इस दुनिया में किसी जाति के पीछे 'जी' लगा के बोला है तो वो सिर्फ जाट जाति है। हालाँकि इसके पीछे दयानंद सरस्वती और ब्राह्मण समुदाय का जाट को सिख धर्म में जाने से रोकना का उद्देश्य था, परन्तु फिर भी 'जी' लगा के ही रोकना पड़ा; लठ दिखा के नहीं। और उद्देश्य तो कार्य/मंशा के पीछे कुछ-ना-कुछ होता ही है।

इसलिए एंटी-जाट ताकतें सीखें अपने पुरखों से कुछ। हमें आँख ना दिखावें, हमें समाज से जाट बनाम नॉन-जाट के नाम पर अलग-थलग फेंकने की कोशिश ना करें। हमारे दर्द को सीधा खुदा सुना करता है, बिफरे तो वो भी जाट से न्याय सीखने हेतु सिर्फ खड़ा देखा ही करता है| आपसे भाईचारे की लिहाज में अभी तक अपने 'दादा खेड़ा' धर्म को हमेशा द्वितीय रखा, आपने व्यवहार नहीं बदला तो हमें उसको प्रथम बनाने में देरी ना लगेगी।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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