इस लेख में ब्यान हकीकत को समझने के लिए, लेख के अंत में दिए वीडियो लिंकों को पूरा देखें|
दक्षिण भारत समेत उड़ीसा-झारखंड तक फैली यह वो प्रथा है जिसके तहत दलित-शूद्र की बेटियों को बालिग होने से भी पहले की अल्पायु में ही मंदिरों में पुजारियों द्वारा देवदासी उर्फ़ प्रभुदासी बनवा दिया जाता है| इनमें से कई पुजारियों की शारीरिक सेवा के लिए होती हैं तो कई धनी सेठों-साहूकारों की सेवा हेतु| इनका अपना कोई आत्मसम्मान एवं वजूद नहीं होता| एक ने रखी, जितने दिन तक चाहा शारीरिक भूख मिटाई और आगे बढ़ा दी| दक्षिण भारत के मंदिरों के प्रांगणों में मनोरंजन हेतु इनको नृत्य भी सिखाया जाता है|
मुझे तो इस एपिसोड को देखकर उन माताओं पर तरस आ रहा था जो मानसिक रूप से इतनी धार्मिक गुलाम बनाई गई हैं कि उनको बाकायदा डरा कर, धमका कर और विभिन्न तरह की सौगंध और देवी माँ के प्रकोप का हवाला देकर देवदासी बनने में गर्व महसूस करवाया जाता है|
जब आप इन वीडियो को देखेंगे तो इनमें एक देवी माँ की गला कटी मूर्ती है| इन इलाकों में इस देवी माँ का नाम कहीं पर येलम्मा तो कहीं पर देवी माँ ही है| विष्णु पुराण के अनुसार यह येलम्मा महर्षि परशुराम (क्षत्रिय उर्फ़ राजपूत समाज को 21 बार काटकर धरती को क्षत्रिय-विहीन करने वाले) की माँ रेणुका देवी हैं, जिनका कि महर्षि परशुराम ने अपने फरसे से शीश काट कर धड़ से अलग कर दिया था ( इस हत्या को हिन्दू इतिहास की सर्वप्रथम ज्ञात हॉनर किलिंग भी कहा जाता है); क्योंकि इनके पिता जमदग्नि को इनकी माता के चरित्र पर किसी परपुरुष से अवैध संबंधों का संदेह हो गया था| तब से ब्राह्मण समाज ने इनको श्राप स्वरूप देवदासियों की देवी घोषित कर दिया|
रामानंद सागर द्वारा बनाये गए रामायण टीवी सीरियल में राम-सीता स्वयंवर एपिसोड में लक्ष्मण द्वारा परशुराम के सम्मुख इस घटना का जिक्र भी आता है| विष्णु पुराण पर बने टीवी सीरियल में नितीश भरद्वाज (जो बी.आर. चोपड़ा की महाभारत में कृष्ण बने थे) ने भी इस अध्याय को जिवान्वित किया|
देवदासियों की देवी माँ की ऐतिहासिक कहानी से बाहर आते हुए वर्तमान में भी बदस्तूर चल रही इस प्रथा को जितना जल्दी हो सके मंदिरों से खत्म करवाने में ही मानव समाज एवं सभ्यता की भलाई होगी|
मुझे गर्व है कि मैं उत्तरी भारतीय समाज की उस खाप-परम्परा में पैदा और पला-बड़ा हुआ जहां जाटों और खापों ने धर्म के नाम पर मानवता और औरत के सार्वजनिक अपमान और जिल्ल्त के इन घोर रूपों को कभी नहीं पनपने दिया| खाप और जाट का धार्मिक कटटरता और अंधता से दूर रहने का DNA ही वजह रहा जिसके कारण आज उतरी भारत के खाप व् जाट बाहुल्य और प्रभाव के इलाकों में दलितों-शूद्रों की बेटियां ऐसे मंदिरों में पुजारियों के जरिये उनकी और उनके समर्थित समाज की वासना की शिकार नहीं बनती|
मेरे अनुसार जाट बनाम नॉन-जाट का जहर फैला के जाट को समाज से अलग-थलग करने की एक बड़ी वजह यह भी है कि धर्म वालों की मनमानी और दलितों के बीच दिवार बनके खड़े रहते आये जाट को, दलितों/पिछड़ों का दुश्मन बना / दिखा के रास्ते से हटवाया जा सके और दक्षिण भारत जैसे इन कुकर्मों को यहां भी निर्बाध फैलाया जा सके|
यहां यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि अकादमिक शोधों से सिद्ध हुआ है कि दक्षिण भारतीय समाज अन्धविश्वास-पाखंड-आडंबर में सबसे ज्यादा जीता है| उत्तर भारत में तो यह कुंडली-जन्मपत्री पिछले तीस-चालीस साल से ज्यादा चलन में चढ़ी हैं, परन्तु दक्षिण भारत में इनका कितना प्रचलन है, यह किसी से छुपी बात नहीं| इसलिए इन आडंबरों को मान्यता देने का अर्थ है, इनके रचयिताओं के इतने हौंसले बुलंद करना या होने देना कि कल को यह यहाँ भी देवदासियां बनाने की जुर्रत करने लग जावें| इसलिए अपनी नादानियों को समाज के गले की फांस ना बनने देवें|
जाट इन अमानवीय प्रथाओं को ले के इनके रचीयताओं से विरोध रखता आया इसलिए कुंठावश और इनके बहकावों और डरावों में आ इन अंध-प्रथाओं को ना मानने की बजाए मानवता को पालने के कारण, इन्होनें यदा-कदा जाट को एंटी-ब्राह्मण भी कहा, जो कि आजतक भी कहा जाता है| जाट ने इतिहास में अपनी इस स्वछँदता की कीमत बहुतों बार चुकाई है और आज भी जाट बनाम नॉन-जाट के अखाड़ों के रूप में चुका रहा है|
देखने वाली बात रहेगी कि आखिर अबकी बार जाट कब इनके विरुद्ध खड़ा होने वाला है, उम्मीद है कि उठ खड़ा होने में इतनी देरी तो नहीं लगाएगा कि इनके आडंबर इतने बढ़ जाएँ कि यहां के मंदिरों में भी देवदासियां बैठाई जाने लगें|
वीडियो लिंक 1: क्राइम पेट्रोल एपिसोड 'दासी' पार्ट 1 - https://www.youtube.com/watch?v=wZ1SBm9JmgE
वीडियो लिंक 2: क्राइम पेट्रोल एपिसोड 'दासी' पार्ट 2 - https://www.youtube.com/watch?v=mz37bCApxHE
वीडियो लिंक 3: लक्ष्मण-परशुराम संवाद - https://www.youtube.com/watch?v=IkInfTZrQ_I
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
दक्षिण भारत समेत उड़ीसा-झारखंड तक फैली यह वो प्रथा है जिसके तहत दलित-शूद्र की बेटियों को बालिग होने से भी पहले की अल्पायु में ही मंदिरों में पुजारियों द्वारा देवदासी उर्फ़ प्रभुदासी बनवा दिया जाता है| इनमें से कई पुजारियों की शारीरिक सेवा के लिए होती हैं तो कई धनी सेठों-साहूकारों की सेवा हेतु| इनका अपना कोई आत्मसम्मान एवं वजूद नहीं होता| एक ने रखी, जितने दिन तक चाहा शारीरिक भूख मिटाई और आगे बढ़ा दी| दक्षिण भारत के मंदिरों के प्रांगणों में मनोरंजन हेतु इनको नृत्य भी सिखाया जाता है|
मुझे तो इस एपिसोड को देखकर उन माताओं पर तरस आ रहा था जो मानसिक रूप से इतनी धार्मिक गुलाम बनाई गई हैं कि उनको बाकायदा डरा कर, धमका कर और विभिन्न तरह की सौगंध और देवी माँ के प्रकोप का हवाला देकर देवदासी बनने में गर्व महसूस करवाया जाता है|
जब आप इन वीडियो को देखेंगे तो इनमें एक देवी माँ की गला कटी मूर्ती है| इन इलाकों में इस देवी माँ का नाम कहीं पर येलम्मा तो कहीं पर देवी माँ ही है| विष्णु पुराण के अनुसार यह येलम्मा महर्षि परशुराम (क्षत्रिय उर्फ़ राजपूत समाज को 21 बार काटकर धरती को क्षत्रिय-विहीन करने वाले) की माँ रेणुका देवी हैं, जिनका कि महर्षि परशुराम ने अपने फरसे से शीश काट कर धड़ से अलग कर दिया था ( इस हत्या को हिन्दू इतिहास की सर्वप्रथम ज्ञात हॉनर किलिंग भी कहा जाता है); क्योंकि इनके पिता जमदग्नि को इनकी माता के चरित्र पर किसी परपुरुष से अवैध संबंधों का संदेह हो गया था| तब से ब्राह्मण समाज ने इनको श्राप स्वरूप देवदासियों की देवी घोषित कर दिया|
रामानंद सागर द्वारा बनाये गए रामायण टीवी सीरियल में राम-सीता स्वयंवर एपिसोड में लक्ष्मण द्वारा परशुराम के सम्मुख इस घटना का जिक्र भी आता है| विष्णु पुराण पर बने टीवी सीरियल में नितीश भरद्वाज (जो बी.आर. चोपड़ा की महाभारत में कृष्ण बने थे) ने भी इस अध्याय को जिवान्वित किया|
देवदासियों की देवी माँ की ऐतिहासिक कहानी से बाहर आते हुए वर्तमान में भी बदस्तूर चल रही इस प्रथा को जितना जल्दी हो सके मंदिरों से खत्म करवाने में ही मानव समाज एवं सभ्यता की भलाई होगी|
मुझे गर्व है कि मैं उत्तरी भारतीय समाज की उस खाप-परम्परा में पैदा और पला-बड़ा हुआ जहां जाटों और खापों ने धर्म के नाम पर मानवता और औरत के सार्वजनिक अपमान और जिल्ल्त के इन घोर रूपों को कभी नहीं पनपने दिया| खाप और जाट का धार्मिक कटटरता और अंधता से दूर रहने का DNA ही वजह रहा जिसके कारण आज उतरी भारत के खाप व् जाट बाहुल्य और प्रभाव के इलाकों में दलितों-शूद्रों की बेटियां ऐसे मंदिरों में पुजारियों के जरिये उनकी और उनके समर्थित समाज की वासना की शिकार नहीं बनती|
मेरे अनुसार जाट बनाम नॉन-जाट का जहर फैला के जाट को समाज से अलग-थलग करने की एक बड़ी वजह यह भी है कि धर्म वालों की मनमानी और दलितों के बीच दिवार बनके खड़े रहते आये जाट को, दलितों/पिछड़ों का दुश्मन बना / दिखा के रास्ते से हटवाया जा सके और दक्षिण भारत जैसे इन कुकर्मों को यहां भी निर्बाध फैलाया जा सके|
यहां यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि अकादमिक शोधों से सिद्ध हुआ है कि दक्षिण भारतीय समाज अन्धविश्वास-पाखंड-आडंबर में सबसे ज्यादा जीता है| उत्तर भारत में तो यह कुंडली-जन्मपत्री पिछले तीस-चालीस साल से ज्यादा चलन में चढ़ी हैं, परन्तु दक्षिण भारत में इनका कितना प्रचलन है, यह किसी से छुपी बात नहीं| इसलिए इन आडंबरों को मान्यता देने का अर्थ है, इनके रचयिताओं के इतने हौंसले बुलंद करना या होने देना कि कल को यह यहाँ भी देवदासियां बनाने की जुर्रत करने लग जावें| इसलिए अपनी नादानियों को समाज के गले की फांस ना बनने देवें|
जाट इन अमानवीय प्रथाओं को ले के इनके रचीयताओं से विरोध रखता आया इसलिए कुंठावश और इनके बहकावों और डरावों में आ इन अंध-प्रथाओं को ना मानने की बजाए मानवता को पालने के कारण, इन्होनें यदा-कदा जाट को एंटी-ब्राह्मण भी कहा, जो कि आजतक भी कहा जाता है| जाट ने इतिहास में अपनी इस स्वछँदता की कीमत बहुतों बार चुकाई है और आज भी जाट बनाम नॉन-जाट के अखाड़ों के रूप में चुका रहा है|
देखने वाली बात रहेगी कि आखिर अबकी बार जाट कब इनके विरुद्ध खड़ा होने वाला है, उम्मीद है कि उठ खड़ा होने में इतनी देरी तो नहीं लगाएगा कि इनके आडंबर इतने बढ़ जाएँ कि यहां के मंदिरों में भी देवदासियां बैठाई जाने लगें|
वीडियो लिंक 1: क्राइम पेट्रोल एपिसोड 'दासी' पार्ट 1 - https://www.youtube.com/watch?v=wZ1SBm9JmgE
वीडियो लिंक 2: क्राइम पेट्रोल एपिसोड 'दासी' पार्ट 2 - https://www.youtube.com/watch?v=mz37bCApxHE
वीडियो लिंक 3: लक्ष्मण-परशुराम संवाद - https://www.youtube.com/watch?v=IkInfTZrQ_I
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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