आज मेरे एक नजदीकी मित्र के दो बच्चों की कुण्डलियाँ देखकर स्तब्ध रह गया|
एक ही माता-पिता के बच्चे, सगे भाई-बहन, और उनकी कुंडलियों में एक का वर्ण
'शूद्र' लिखा हुआ है तो दूसरे का 'वैश्य'। उन दोनों बच्चों की कुंडलियों
की प्रतियां आपसे साझा कर रहा हूँ| इनमें "लाल-सर्किल" में मार्क किये
हिस्से में बच्चे का वर्ण देखेंगे तो एक का वर्ण 'शूद्र' तो दूसरे का वर्ण
'वैश्य' लिखा हुआ है| रिश्तेदार की गोपीनियता हेतु मैंने इन कुंडलियों में
बच्चों के पिता का नाम, दादा का नाम व् गोत्र को रंग फेर कर छुपा दिया है|
मशहूर इतिहासकार IRS भीम सिंह दहिया जी के अनुसार, "जाटों ने कभी भी हिन्दू धर्म को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी और ना ही इसकी वर्ण-व्यवस्था को स्वीकारा|" और जाटों के पूर्वजों ने ऐसा क्यों किया होगा, वो इन विचलित कर देने वाली कुंडलियों द्वारा दी गई स्वघोषित व् मनमानी पहचान से सहज ही समझा जा सकता है|
तो क्या हमारे पूर्वज ज्यादा समझदार थे और हम आज उनकी पीढ़ी ज्यादा मूढ़मति हो गई हैं? या ढोंग-पाखंड-आडंबर के दिखावे ने हमपे ऐसी चादर ढांप फेंकी है कि हमें दीखते-दिखाते भी यह चीजें नहीं दिख रही कि समाज का एक समूह अपने मनमाने तरीके से कैसे हमारी कौम की एथनिक आइडेंटिटी के साथ इतना बड़ा घोटाला किये जा रहा है?
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
मशहूर इतिहासकार IRS भीम सिंह दहिया जी के अनुसार, "जाटों ने कभी भी हिन्दू धर्म को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी और ना ही इसकी वर्ण-व्यवस्था को स्वीकारा|" और जाटों के पूर्वजों ने ऐसा क्यों किया होगा, वो इन विचलित कर देने वाली कुंडलियों द्वारा दी गई स्वघोषित व् मनमानी पहचान से सहज ही समझा जा सकता है|
तो क्या हमारे पूर्वज ज्यादा समझदार थे और हम आज उनकी पीढ़ी ज्यादा मूढ़मति हो गई हैं? या ढोंग-पाखंड-आडंबर के दिखावे ने हमपे ऐसी चादर ढांप फेंकी है कि हमें दीखते-दिखाते भी यह चीजें नहीं दिख रही कि समाज का एक समूह अपने मनमाने तरीके से कैसे हमारी कौम की एथनिक आइडेंटिटी के साथ इतना बड़ा घोटाला किये जा रहा है?
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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