स्वघोषित राष्ट्रवादियों की झूठ, भ्रम और अफवाह की आंधी और मुस्लिमों से नफरत करने के पैग़ामों में बहने से पहले दो मिनट ठहर कर सोचने की जरूरत है।
यह तो अमूमन सबको पता ही होगा कि आज जिस नेहरू को आरएसएस के लोग गाली देते नहीं छकते, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, नेहरू की ही सरकार में कैबिनेट मंत्री थे? आईये इससे थोड़ा और आगे जानते हैं|
आज़ादी से पहले श्यामाप्रसाद मुखर्जी मुस्लिम लीग से गठबंधन में अंग्रेजों की छत्रछाया में बंगाल में सरकार के मुखिया हुआ करते थे। मुस्लिम लीग के नेता फ़जलुल हक़ उस वक्त बंगाल सूबे के मुख्यमंत्री थे और श्यामाप्रसाद उप-मुख्यमंत्री।
इसी तरह से सिंध और उत्तर पश्चिम फ्रंटियर प्रांत (एनडब्ल्यूएफपी) में भी इसी गठबंधन की सरकारें थीं। सिंध में तो पहले अल्लाह बख्श की सरकार थी। इत्तेहाद पार्टी के नेतृत्व में गठित इस सेकुलर सरकार में हिंदू, मुस्लिम और सिख सभी शामिल थे। लेकिन अंग्रेजों की मदद से मुस्लिम लीग के गुंडों ने 1943 में अल्लाह बख्श की हत्या कर दी। फिर उसके बाद सिंध में मुस्लिम लीग और सावरकर के नेतृत्व वाली हिंदू महासभा के गठबंधन की संयुक्त सरकार बनी। उस समय सावरकर ने इसे व्यावहारिक राजनीति की जरूरत करार दिया था।
तो इससे साफ़ स्पष्ट है कि हिन्दू-हिंदुत्व कोरी राजनीति के अलावा कुछ नहीं| बात जब व्यवहारिकता पर आती है तो ख्याली पुलावों की दुनिया छू-मंत्र हो जाती है| कल को इनको फिर से सावरकर के शब्दों वाली जरूरत आन पड़ी तो आज जिन मुस्लिमों को यह देश निकाले पे उतारू हैं, कल फिर से गलबहियां डालने में जरा नहीं हिचकेंगे|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
यह तो अमूमन सबको पता ही होगा कि आज जिस नेहरू को आरएसएस के लोग गाली देते नहीं छकते, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, नेहरू की ही सरकार में कैबिनेट मंत्री थे? आईये इससे थोड़ा और आगे जानते हैं|
आज़ादी से पहले श्यामाप्रसाद मुखर्जी मुस्लिम लीग से गठबंधन में अंग्रेजों की छत्रछाया में बंगाल में सरकार के मुखिया हुआ करते थे। मुस्लिम लीग के नेता फ़जलुल हक़ उस वक्त बंगाल सूबे के मुख्यमंत्री थे और श्यामाप्रसाद उप-मुख्यमंत्री।
इसी तरह से सिंध और उत्तर पश्चिम फ्रंटियर प्रांत (एनडब्ल्यूएफपी) में भी इसी गठबंधन की सरकारें थीं। सिंध में तो पहले अल्लाह बख्श की सरकार थी। इत्तेहाद पार्टी के नेतृत्व में गठित इस सेकुलर सरकार में हिंदू, मुस्लिम और सिख सभी शामिल थे। लेकिन अंग्रेजों की मदद से मुस्लिम लीग के गुंडों ने 1943 में अल्लाह बख्श की हत्या कर दी। फिर उसके बाद सिंध में मुस्लिम लीग और सावरकर के नेतृत्व वाली हिंदू महासभा के गठबंधन की संयुक्त सरकार बनी। उस समय सावरकर ने इसे व्यावहारिक राजनीति की जरूरत करार दिया था।
तो इससे साफ़ स्पष्ट है कि हिन्दू-हिंदुत्व कोरी राजनीति के अलावा कुछ नहीं| बात जब व्यवहारिकता पर आती है तो ख्याली पुलावों की दुनिया छू-मंत्र हो जाती है| कल को इनको फिर से सावरकर के शब्दों वाली जरूरत आन पड़ी तो आज जिन मुस्लिमों को यह देश निकाले पे उतारू हैं, कल फिर से गलबहियां डालने में जरा नहीं हिचकेंगे|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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