Friday, 22 January 2016

हमारे देश में कोर्ट-कानून में नैतिकता के नाम पर क्या प्रावधान हैं?

जरूर हमारे देश में किसी व्यक्ति या गतिविधि को देशद्रोह ठहराने का एक सवैंधानिक तरीका होता होगा| पहले उसकी पुलिस में शिकायत करनी होती होगी, फिर उसपे कोर्ट में सुनवाई होती होगी, फिर सविंधान की देशद्रोही धाराएं खंगाली जाती होंगी, तभी तो किसी को देशद्रोही करार दिया जाता होगा? और जरूर सामाजिक तौर पर बिना किसी लीगल प्रोसेस को फॉलो किये, किसी को भी अपनी मनमर्जी से देशद्रोही चिल्लाने लग जाना यह भी तो गैर-कानूनी और कानूनी अपराध की श्रेणी में आता होगा?

यह मैं इसलिए कह रहा हूँ कि अभी तक तो आरएसएस और बीजेपी ही कहीं इनके विरोध में बोलने पे तो कहीं माइनॉरिटीज के पक्ष में बोलने पे किसी को भी खुद देश का कानून बनते हुए देशद्रोही के तमगे-टैग बांटते फिर रहे थे; अब रोहित वेमुला की हत्या से पता चलता है कि इनकी तो बच्चा पार्टी एबीवीपी भी इसी में जुटी हुई है|

आरएसएस-बीजेपी-एबीवीपी ना हो गए, देश का कानून और सविंधान हो गए|

एक रोचक चीज और जानने की उत्सुकता होती है इस माहौल में, कि क्या हमारे देश में कोर्ट सिर्फ तभी कार्यवाही करते हैं, जब कोई शिकायत उनके पास पहुँचती है? मतलब जब तक कोई शिकायत ना करे तो कोई कुछ भी करता रहे, कोर्ट को कोई फर्क नहीं पड़ता? क्या यह सार्वजनिक भाषणों, रैलियों, प्रदर्शनों और मीडिया के माइकों के मुंह के आगे जो यह तमाम राजनैतिक से ले धार्मिक संगठनों के नेता लोग देश का सामाजिक माहौल बिगाड़ने हेतु इतना उलजुलूल बकते हैं, इनपे कोर्ट खुद से संज्ञान लेवें, इसका कोई प्रावधान नहीं हमारे कानून में? मेरे ख्याल से प्रावधान होता तो जरूर कोर्ट ने अभी तक गैर-कानूनी तरीके से देशभक्ति से ले देशद्रोही के तमगे-टैग-सर्टिफिकेट बाँटने वालों को सलाखों के पीछे धर दिया होता|

क्या नैतिकता के आधार पर इन ऊपर लिखित सार्वजनिक हित के मुद्दों पर मीडिया या सार्वजनिक भाषणों के जरिये समाज में तैरने वाले इनके बोलों पर कोर्ट खुद संज्ञान नहीं ले सकते? क्योंकि वैसे ही हमारे देश में आम आदमी की तो इतनी औकात नहीं कि उसके खुद के घर में एक मुकदमा आ जाए तो वो उसकी पेशियां और लागत झेल सके; फिर इन समाज को तोड़ने वाली ताकतों का खौफ होता है वो अलग से; क्या पता बेचारा कोई आज शिकायत करके आये और कल किसी नदी-नाले में उसकी लाश तैरती मिले|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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