Thursday, 11 February 2016

ये घटनाएँ मात्र संयोगवश नहीं हुई थी, ये बहुत कुछ कहती हैं!

1) ज्योतिबा फुले ने जब 1873 में सत्य का शोधन करने निकले तो विवेकानन्द ने 1875 में गाड़ी वेदों की ओर क्यों मोड़ी? राजकुमार सैनी से कोई पूछे इसपे, क्योंकि वो आजकल इन्हीं की पीपनी बनके जो बज रहे हैं!

2) बाबा साहब आंबेडकर ने 09 मार्च 1924 को बहिष्कृत हितकारिणी सभा बनाई तो सावरकर ने 1925 में अखिल भारतीय हिन्दू महासभा का गठन क्यों हुआ?

3) जब 1860-70 के दशकों में जाट एकमुश्त होकर सिख धर्म में जा रहे थे तो दयानंद सरस्वती ने 1875 में आर्य-समाज की स्थापना कर जाटों को 'सत्यार्थ प्रकाश' में 'जाट जी' क्यों लिखना पड़ा? क्या इससे पहले जाटों को नहीं पता था कि वो आर्य हैं? उनको पता था, फिर क्यों किया गया यह ड्रामा?
 

4) 1920 में चलाया गया असहयोग आंदोलन सर छोटूराम द्वारा सवाल उठाने पर क्यों 'चोरा-चोरी' का बहाना करके गांधी ने बंद किया? क्योंकि इनके आंदोलन की पोल-पट्टी खोल के रख दी थी सर छोटूराम ने| उन्होंने गांधी से आह्वान करवाया था कि असहयोग सिर्फ किसान-दलित-पिछड़ा ही क्यों करे, व्यापारी-पुजारी भी करे|
 

5) जिस साइमन कमीशन का महाराष्ट्र से बाबा साहेब आंबेडकर और पंजाब से सर छोटूराम ने स्वागत किया, उसका लाला लाजपत राय द्वारा विरोध करना संयोगमात्र नहीं था, इनको खतरा था कि सायमन कमीशन दलित-किसान-पिछड़े को जो हक देने आ रहा है, इससे इनकी जमानों से चली आ रही खुली लूटों और मनमानियों पर लगाम लगेगी।

क्या आपको अब भी समझ नहीं आ रहा है कि जो ड्रामे रच के यह तथाकथित राष्ट्रवादी आपका ध्यान भटकाना चाहते हैं वो कितने औचित्यहीन हैं एक किसान-दलित-पिछड़े के लिए? उस दौर के लोगों ने भी समझा, आप भी समझिये| जब जब आप रोहित -वेमुला जैसे मुद्दों पर पोलिटिकली और सोशली एक होंगे तब तब वैसे वैसे काउंटर अटैक होगा, पढ़ते रहिये उनको जो आपको समझाने, आपकी आँखे खोलने के लिए फेसबुक में दिन-रात एक किये हुए है और इन ऊपर बताये तर्कों पर तोलते रहिये|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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