पृथ्वीराज चौहान और जयचंद राठौड़ सगी बहनों के लड़के थे यानी कजिन ब्रदर यानी सगी मौसियों के लड़के, पहली बात|
संयोगिता, जयचंद की बेटी थी और इस नाते पृथ्वीराज चौहान संयोगिता का चाचा हुआ, दूसरी बात|
जब संयोगिता का स्वयंवर रचा गया और जयचंद को पता था कि उसकी बेटी पथ भटक चुकी है तो उसने स्वयंवर में लड़की के चाचा का पुतला यानी मूर्ती क्यों खड़ी करवाई, तीसरी बात|
जयचंद की नैतिकता क्या भैंस चरने गई हुई थी या वहाँ बैठे ब्राह्मणों-पुरोहितों में से किसी ने उसको सलाह नहीं दी कि लड़की का चाचा स्वयंवर में कैसे भाग ले सकता है जो उसकी मूर्ती खड़ी की जा रही है; या फिर इन्होनें स्वयंवर के नियम ही ऐसे बनाये हुए थे कि चाचा-ताऊ भी स्वयंवर में भाग ले सकते थे; या फिर ब्राह्मण-पुरोहित पृथ्वीराज और जयचंद के मजे लेने के मूड में थे?
और अगर पृथ्वीराज ने फिर भी ऐसा किया तो भला हो पृथ्वीराज के शिक्षकों का जिन्होनें जब हिन्दू समाज के विवाह के रीति-रिवाज पृथ्वीराज को पढ़ाएं होंगे तो क्या आँख मूँद के सो गए थे, कि जो इतना भी नहीं बता पाये कि पिता और माता के वंश, परिवार की लड़की हमारे यहां बहन-भतीजी-बेटी मानी जाती है? उनसे इश्क नहीं फरमाये जाया करते, या तो राखियां बंधवाई जाती हैं या सर पर हाथ रख के आशीर्वाद दिए जाते हैं|
क्या बेखलखाना है ये, जब भी इस किस्से के बारे सोचता हूँ दिमाग घूम जाता है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
संयोगिता, जयचंद की बेटी थी और इस नाते पृथ्वीराज चौहान संयोगिता का चाचा हुआ, दूसरी बात|
जब संयोगिता का स्वयंवर रचा गया और जयचंद को पता था कि उसकी बेटी पथ भटक चुकी है तो उसने स्वयंवर में लड़की के चाचा का पुतला यानी मूर्ती क्यों खड़ी करवाई, तीसरी बात|
जयचंद की नैतिकता क्या भैंस चरने गई हुई थी या वहाँ बैठे ब्राह्मणों-पुरोहितों में से किसी ने उसको सलाह नहीं दी कि लड़की का चाचा स्वयंवर में कैसे भाग ले सकता है जो उसकी मूर्ती खड़ी की जा रही है; या फिर इन्होनें स्वयंवर के नियम ही ऐसे बनाये हुए थे कि चाचा-ताऊ भी स्वयंवर में भाग ले सकते थे; या फिर ब्राह्मण-पुरोहित पृथ्वीराज और जयचंद के मजे लेने के मूड में थे?
पृथ्वीराज तो एक राजा होते हुए अच्छे-बुरे, ऊँच-नीच की अक्ल होते हुए भी भतीजी पे जो डूबा सो डूबा, पर यह जयचंद को भी कहाँ अक्ल थी, जो उसका पुतला ही खड़ा करवा दिया स्वयंवर में?
सच्ची कहूँ, मुझे तो यह किस्सा भी रामायण और महाभारत की तरह कोरी कल्पना लगता है| या पृथ्वीराज चौहान के चरित्र को दागदार करने की कथाकारों की एक साजिश, भला इतना समझदार और उंच-नीच का अंतर समझने वाला राजा, अपनी भतीजी पे डूबेगा? एक पल को कोई राह चलता सरफिरा ऐसी डुबाढाणी कर जावे तो मान भी लूँ, परन्तु एक राजा होते हुए पृथ्वीराज को इतनी अक्ल नहीं रही होगी, मुझे यकीन नहीं होता|
और अगर पृथ्वीराज ने फिर भी ऐसा किया तो भला हो पृथ्वीराज के शिक्षकों का जिन्होनें जब हिन्दू समाज के विवाह के रीति-रिवाज पृथ्वीराज को पढ़ाएं होंगे तो क्या आँख मूँद के सो गए थे, कि जो इतना भी नहीं बता पाये कि पिता और माता के वंश, परिवार की लड़की हमारे यहां बहन-भतीजी-बेटी मानी जाती है? उनसे इश्क नहीं फरमाये जाया करते, या तो राखियां बंधवाई जाती हैं या सर पर हाथ रख के आशीर्वाद दिए जाते हैं|
क्या बेखलखाना है ये, जब भी इस किस्से के बारे सोचता हूँ दिमाग घूम जाता है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
No comments:
Post a Comment