Thursday, 24 March 2016

शहीद-ए-आजम भगत सिंह 1924 में जो लिख गए वो शायद 2016 के लिए ही था!


जहाँ तक देखा गया है, इन दंगों के पीछे सांप्रदायिक नेताओं और अख़बारों का हाथ है । इस समय हिन्दुस्तान के नेताओं मे ऐसी लीद की है कि चुप ही भली । वही नेता जिन्होंने भारत को स्वतंत्र कराने का बीड़ा उठाया था और जो ” समान राष्ट्रीयता” और ” स्वराज-स्वराज” के दमगजे मारते नहीं थकते थे, वही या तो अपने सिर छिपाये चुपचाप बैठे हैं या इसी धर्मांन्धता के बहाव में बह चले हैं । सिर छिपाकर बैठने वालों की संख्या भी क्या कम है और सांप्रदायिकता की ऐसी प्रबल बाढ़ आयी हुई है कि वे भी इसे रोक नहीं पा रहे । ऐसा लग रहा है कि भारत में नेतृत्व का दिवाला पिट गया है ।

दूसरे सज्जन जो सांप्रदायिक दंगों को भड़काने में विशेष हिस्सा लेते रहे हैं वे अख़बार वाले हैं ।

पत्रकारिता का व्यवसाय, जो किसी समय बहुत ऊँचा समझा जाता था, आज बहुत ही गन्दा हो गया है । ये लोग एक-दूसरे के विरुद्ध बड़े मोटे-मोटे शीर्षक देकर लोगों की भावनाएँ भड़काते हैं और परस्पर सिर-फुटौव्वल करवाते हैं । एक दो जगह ही नहीं, कितनी ही जगहों पर इसलिए दंगे हुए हैं कि स्थानीय अख़बारों ने बड़े उत्तेजनापूर्ण लेख लिखे हैं । ऐसे लेखक, जिनका दिल व दिमाग ऐसे दिनों में भी शान्त रहा हो, बहुत कम हैं ।
अख़बारों का असली कर्तव्य शिक्षा देना, लोगों से संकीर्णता निकालना, सांप्रदायिक भावनाएँ हटाना, परस्पर मेल-मिलाप बढ़ाना और भारत की साझी राष्ट्रीयता बनाना था लेकिन इन्होंने अपना मुख्य कर्तव्य अज्ञान फैलाना, संकीर्णता का प्रचार करना, सांप्रदायिक बनाना, लड़ाई-झगड़े करवाना और भारत की साझी राष्ट्रीयता को नष्ट करना बना लिया है । यही कारण है कि भारतवर्ष की वर्तमान दशा पर विचार कर आँखों से रक्त के आँसू बहने लगते हैं और दिल में सवाल उठता है कि भारत का बनेगा क्या ?

( यह लेख शहीदे आज़म भगत सिंह ने 1924 में लिखा था ‘ किरती’ में छपा था । भगत सिंह और उनके साथियों के संपूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ से लिया है जिसे लखनऊ के राहुल फ़ाउंडेशन ने छापा है। हमने सांप्रदायिक दंगे और उनका इलाज का कुछ हिस्सा आपके लिए पेश किया है )

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