Thursday, 24 March 2016

राष्ट्रीय शहीदी दिवस (23 March, 1931) पर कोटि-कोटि प्रणाम-शहीदां-नूं!

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले,
कि वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशाँ होगा!

सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।
देखना है ज़ोर कितना, बाज़ु-ए-कातिल में है?

करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है|
ऐ शहीदे-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चर्चा, ग़ैर की महफ़िल में है||
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है|

वक़्त आने पर बता देंगे तुझे ए-आसमाँ,
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है|
खेँच कर लाई है सबको क़त्ल होने की उम्मीद,
आशिक़ोँ का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है||
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

है लिये हथियार दुश्मन, ताक में बैठा उधर,
और हम तैय्यार हैं; सीना लिये अपना इधर।
खून से खेलेंगे होली, गर वतन मुश्किल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।

हाथ, जिन में हो जुनूँ, कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो, झुकते नहीं ललकार से।
और भड़केगा जो शोला, सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।

हम तो निकले ही थे घर से, बाँधकर सर पे कफ़न,
जाँ हथेली पर लिये लो, बढ चले हैं ये कदम।
जिन्दगी तो अपनी महमाँ, मौत की महफ़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।

यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल, कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत, भी किसी के दिल में है?
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज।|
दूर रह पाये जो हमसे, दम कहाँ मंज़िल में है|
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।

जिस्म वो क्या जिस्म है, जिसमें न हो खूने-जुनूँ,
क्या लड़े तूफाँ से, जो कश्ती-ए-साहिल में है।
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना, बाज़ु-ए-कातिल में है।

दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उल्फ़त,
मेरी मिट्टी से भी खुशबु-ए-वतन आएगी|
हमें यह शौक है देखें सितम की इंतहा क्या है,
दहर (दुनिया) से क्यों ख़फ़ा रहें|
चर्ख (आसमान) से क्यों ग़िला करें,
सारा जहां अदु (दुश्मन) सही, आओ मुक़ाबला करें|

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