निचोड़: हरयाणा का जाट बनाम नॉन-जाट कहो या पैंतीस बनाम एक बिरादरी कहो, यह सिवाय मनुवाद बनाम जाटवाद की लड़ाई के कुछ और है ही नहीं| यह सैनी वैगेरह तो सिर्फ मोहरे हैं|
आज जो ब्राह्मण संचालित आरएसएस और बीजेपी हरयाणा में जाटों के खिलाफ कर रहा है, यही 712 ईस्वी में हुए ब्राह्मण राजा दाहिर ने तब के बुद्ध धर्मी जाटों व् दलितों के साथ किया था| तब उससे तंग आकर जाटों ने इस्लाम अपना लिया था| और ब्राह्मणों का जाटों के खिलाफ यही रवैया देश की गुलामी का कारण बना|
महमूद ग़ज़नी के इतिहासकार अलबेरूनी लिखते हैं कि, "Mahmood Ghazni looted Somnath Temple in 1024 A.D. And in Sindh, Jats looted him back and recovered the booty of Somnath. These Jats were Muslims and got converted to this faith in 712 A.D. not by Muhammad Bin Quasim but Raja Dahir, a Brahmin who oppressed the peace loving Budhist Jats in their own majority, where more than 90% were Jats. Last 17th attack of Mahmood Ghazni on India was not to loot but punish the Jats."
ब्राह्मणों ने मुग़ल और अंग्रेजों के एक हजार वर्षों के गुलामी काल से कुछ नहीं सीखा, वही ढाक के तीन पात| पहले ब्राह्मण, जाट कौम के साथ जैसे आज हरयाणा में पैंतीस बनाम एक बिरादरी का अखाडा सजाया हुआ है, ऐसे अलगाव पैदा करके जाटों को रूष्ट करते हैं और जब इनसे अकेले स्थिति नहीं संभाली जाती तो फिर विदेशियों के आगे सर्रेंडर करते रहे हैं| और फिर इनकी नाकामयाबी को जाटों को ही धोना पड़ता रहा है| जैसे जब ब्राह्मण हर तरह से ग़ज़नी के आगे असहाय हो गए तो सोमनाथ की लूट को अंत में जाटों ने ग़ज़नी से छीन देश से बाहर जाने से रोका|
मेरे ख्याल से जाट अंग्रेजों से नई-नई मिली आज़ादी के उत्साह में और सर छोटूराम की अनुपस्थिति में यह भूल ही गए थे कि अभी सिर्फ मुग़ल और अंग्रेज से आज़ादी पाई है, इनके आने से पहले जिससे लड़ाई चलती थी, उस मनुवाद से आज़ादी पाना तो अभी बाकी ही था| खैर देर आयद, दुरुस्त आयद; अब जाट को दलित से मिलकर मनुवाद से आज़ादी के बिगुल को सहारा और समर्थन देना होगा| आना तो ओबीसी को भी इस लड़ाई में जाट और दलित के साथ था, परन्तु अभी शायद ब्राह्मण द्वारा उसको जाट से नफरत की पिलाई घूंटी का असर जाते-जाते वक्त लगे| भगवान करे कि ओबीसी पर से इस घूंटी का असर जल्दी उतरे और जाट-दलित के साथ मनुवाद से आज़ादी की लड़ाई में जल्दी आन जुड़े|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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