विशेष: लेखक, गुर्जर और सैनी समाज का आदर करता है और खुद के समाज जैसी ही इज्जत देता है; लेकिन क्योंकि यह पोस्ट इस लेख के टाइटल में नामित महानुभावों बारे है, इसलिए आशा करता हूँ कि इस पोस्ट को सिर्फ इन्हीं दोनों के संदर्भ में लिया जायेगा।
तो लेख पे बढ़ता हूँ, मेरी दादी बताती थी कि बेटा एक बहुत कलिहारी औरत हुआ करती थी। वो इतनी नकटी (यानि निकम्मी) थी कि घर में किसी की नहीं सुना करती थी; यहाँ तक कि पति की भी नहीं। अपनी ईगो ऊपर रखने के लिए उसको पिटते वक्त भी पति को चेतावनी देना नहीं भूलता था। तंग आकर जैसे ही उसका पति उसको चाँटा लगाता, वो आगे से चैलेंज देती कि "हिम्मत है तो फिर से मार के दिखा"। उसका पति लेता और फिर से एक बजाता उसके मुंह पे। पर वो फिर भी यही कहती कि "हिम्मत है तो अबकी बार मार के दिखा"।
तो महाशय रोशनलाल आर्य जी, आपका तो इस नकटी औरत जैसा हाल हो रखा है। राजकुमार सैनी के साथ मिलके आपने कहा कि "जाट तो डंडे के यार हैं, इनको डंडा दिखाओ तो सीधे चलते हैं।" जाटों ने 12 फरवरी से 22 फरवरी, 2016 तक आपके वो डंडे का दम भी तोला। आप तो क्या पूरी आपकी ब्रिगेड, आरएसएस के गुर्गे, यहाँ तक कि पुलिस-फ़ौज सबने जाट को डंडा देने की कोशिश करी; परन्तु बदले में जाटों ने डंडा क्या उसकी जगह गनपॉइंट आपके भीतर में दे दिया (यह बात आप खुद ही इस अख़बार में स्वीकार कर रहे हो)| जाटों को 21 फरवरी को आरक्षण की घोषणा होने के बावजूद भी जाट 22 फरवरी को भी शाम तक सड़कों-रेल ट्रैकों पर आपका और सैनी की तथाकथित ब्रिगेड का इंतज़ार करते रहे (क्योंकि सैनी ने 22 की डेडलाइन जो रखी हुई थी, जाटों को सड़कों से उठा के जाम खुलवाने की) परन्तु ना आप दिखे, ना आपकी ब्रिगेड, ना आपके डंडे और ना इनमें से किसी की परछाई तक दिखी।
क्या इतना जवाब काफी नहीं होना चाहिए था, आपकी डंडे वाली बात को धत्ता बताने के लिए? आपको तो इतनी भी अक्ल नहीं है कि ऐसे बोलों से खुद ही अपनी झंड करवा रहे हो, क्योंकि पब्लिक आपके 12 फरवरी के बयानों से तोल के देख रही है इनको, उसको फद्दु ना समझें।
लेकिन फिर भी क्यों वो नकटी औरत वाली कर रहे हो खुद के साथ कि लेते हो और फिर उकसाते हुए चले आते हो कि "हिम्मत है तो अबकी बार मार के दिखाओ!"? आपको और कोई काम नहीं है क्या? अजब तरीका है यह मुंह की खाये बैठे हैं (अख़बार तक में पब्लिकली स्वीकार भी करते हैं), परन्तु तेवर वही नकटी औरत वाले। अब आपके इन बयानों पे तो जनाब सिर्फ हंसी ही आती है।
अब सीरियस नोट पे बात: किसान-मजदूर की बहुत ही खस्ता हालत हुई पड़ी है आज के दिन, कोई उसकी सुध लेने वाला नहीं, ना राज्य सरकार में और ना केंद्र सरकार में। यह जाटों पे इल्जाम लगाने, उनको चेतावनी देने, उनको उनकी औकात बताने जैसे छेछर (मर्द के लिए औरत के त्रिया-चरित्र के बराबर का शब्द) बंद कीजिये और कुछ काम कर लीजिए जनता के। वर्ना जाटों को 90 और 10 में से कितनी मिलेंगी और कितनी नहीं की भविष्यवाणियाँ करना तो दूर, आप अपनी सीट भी नहीं बचा पाएंगे।
वैसे अच्छा है अपने आप ही पिछण रहे हो, किसी जाट को फिक्र करने की क्या जरूरत। बाकी आरएसएस के चीफ से जा के मिलो (बेहतर होगा उनसे किसानों की हालत पे कुछ मदद की बात करें) या कोई ब्रिगेड बनाओ; उत्तरी भारत में जाट को नाराज और आहत करने वाले को तो भगवान भी विजयश्री नहीं बख्शता। सन 712 में चच को बख्शी हो या सन 1763 के पानीपत में पेशवा भाऊ को बख्शी हो तो आपको और आपके आकाओं को बख्शेगा। जबकि जाट ने आपका सहयोग रहा या ना रहा, अकेले सैंकड़ों विजयें पाई हैं इतिहास में; पूरी फेहरिस्त खोल दूँ तो लेख दूसरी ही दिशा ले जायेगा।
चलते-चलते यही निवेदन है कि आप और हम अजगर होते हैं, आपकी-हमारी खापों ने मिलके अनगिनत युद्ध जीते हैं; इसलिए थोड़ी अपने पुरखों को शक्ल दिखाने लायक काम भी कर लीजिए।
कहीं ऐसा ना हो कि आप जैसे नादान तो चमन को उजाड़ के चले जायें और फिर हमें कई पीढ़ियां यूँ ही व्यर्थ में आपकी इन लम्हों वाली खताओं को पाटते-पाटते सदियों की सजा वाला काम हो जाए। कृपया मत बनें इन धर्म और जाति के नाम पे समाज को विखण्डित करने वालों की कठपुतली। आप भी किसान समाज से हैं, आपकी और जाट की दोनों बिरादरी भी किसान समाज से हैं। इनको जोड़ के किसान के कल्याण के कार्यों बारे क्यों नहीं सोचते आप?
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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