आजकल एक अनकही सी कैंपेन सोशल मीडिया पर सर छोटूराम बारे चल रही है| दबती है और फिर रह-रह कर उभर आती है| कहते हैं कि सर छोटूराम ने तो मुस्लिमों के साथ मिलके सरकार बनाई, वो तो उनकी चाकरी करते थे, वो तो आधे मुसलमान थे| और ताज्जुब नहीं यह सारे दर्द अंधभक्त मंडली की पोस्टों में देखे जा रहे हैं| तो जरूरी समझा कि इन भाईयों के लिए विनम्रता से एक अपील निकालूँ जो इस लेख के शीर्षक के मर्फिक है और ऐसी अपील इन वजहों से है:
1) आज़ादी से पहले श्यामाप्रसाद मुखर्जी मुस्लिम लीग से गठबंधन में बंगाल में सरकार के मुखिया हुआ करते थे। मुस्लिम लीग के नेता फ़जलुल हक़ उस वक्त बंगाल सूबे के मुख्यमंत्री थे और श्यामाप्रसाद उप-मुख्यमंत्री। साथ ही जोड़ दूँ कि श्यामाप्रसाद मुखर्जी, नेहरू की ही सरकार में कैबिनेट मंत्री भी थे|
2) 1943 में सिंध में मुस्लिम लीग और सावरकर के नेतृत्व वाली हिंदू महासभा के गठबंधन की संयुक्त सरकार बनी। उस समय सावरकर ने इसे व्यावहारिक राजनीति की जरूरत करार दिया था।
3) और आज के दिन जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ़्ती की गवर्नमेंट में कौन भागीदार है किसी को कहने-पूछने की जरूरत नहीं|
इसके अलावा सबसे ख़ास बात, सर छोटूराम ने धर्म-जाति रहित मुस्लिम-सिख-हिन्दू सबसे मिलके सबको जोड़ के राजनीति की थी तो दलित-किसान-मजदूर के लिए बेशुमार कानून बना के दिए थे, जिनमें से पंजाब में आज भी अधिकतर ज्यों-के-त्यों चल रहे हैं| और संघ व् भाजपा के इन अलायंसों ने क्या दिया किसान-मजदूर को जो उसको बाजारीकरण और पूंजीवाद से बचाता हो, जरा एक तो संघी या भाजपाई बता दे|
और सर छोटूराम ने देश को तोड़ने वाली मुस्लिम लीग से अलायन्स नहीं किया था, जिससे संघ और हिन्दू महासभा ने किया अपितु उन मुस्लिमों से अलायन्स किया था जो एक भारत के एक यूनाइटेड पंजाब के पक्षधर थे। यह अंतर भी काउंट कर लेना अगली बार जब सर छोटूराम पे ऊँगली उठाओ तो।
कहीं पे मुस्लिमों (वेस्ट यूपी) से ही बैर तो कहीं पे मुस्लिमों (जम्मू-कश्मीर) से ही सब्बा-खैर| अपनी आइडियोलॉजी का और राजनीति का ठिकाना नहीं, चले किसान-कमेरे के भगवान् पे ऊँगली उठाने|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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