चलो
अच्छा हुआ राजकुमार सैनी जैसों को जाट बनाम नॉन-जाट की ढाल बना के
डेड-सयानों की भांति पर्दे के पीछे रह, हरयाणा को जलाने वाले, अब एक-एक
करके खुद ही सामने आ रहे हैं| चूहे-सियार धीरे-धीरे बिलों से बाहर तो
निकलने लगे हैं; जरूर पानी घुसा होगा इनके बिलों में| यानि अब यह पैंतरे और
हथियारों से खाली हो चुके हैं, इसलिए मिमियाने लगे हैं| कोई बात नहीं
अश्वनी चोपड़ा बाबू, अभी तो आप बोले हो, जाट को तो सैनी और आप के भी ऊपर
वाले आका को मिमियाना है| सलफता है यह जाट की कि सैनी के ऊपर वाले लेवल
यानि आपके दोगले चेहरे को खुद आपकी ही जुबानी विस्फोटित करने में जाट सफल
हुए, परन्तु अभी असली आका को भी बोलना है|
पाठकों की जानकारी के लिए बता दूँ कि इन जनाब का आज अमर उजाला में बयान आया है कि नॉन-जाट सारे एक हो जाओ, वर्ना जाट तुम्हें खा जायेंगे|
तो मैं कह रहा था कि आपकी हमें चिंता नहीं, आपके तो खानदान की ही यह लाइन है| अहसान-फरामोस खानदान है आपका| वैसे जाट किसी पर प्रश्न नहीं उठाते परन्तु जब आप आगे आकर खुद ही मौका दे रहे हों तो आप जैसों के खानदानों के किस्से उघाड़ने हेतु ऐसे मौके छोड़ने भी नहीं चाहिए| वैसे मेरे जैसे लेखक भी पिछले डेड साल से सिर्फ सैनी, आर्य और खट्टर पर लिखते-लिखते ऊब गए थे; अब आप आये हो तो कलम को नई ऊर्जा और जोश मिला है, स्वागत है आपका|
चोपड़ा बाबू, जनता इतनी नादां भी नहीं कि यह ना समझे कि दबाने-लूटने-डराने-छलने के काम धर्मकर्म के नाम पर दान-दक्षिणा लेने वाले या आपके जैसे सेठ-साहुकार किया करते हैं; वो जाट किसान नहीं जो अन्न पैदा करके देश का पेट भरते हों, सीमा पे गोली खा के देश की रक्षा करते हों, खेड़े पे आये को अपने यहां पनाह देते हों|
वैसे आपसे दो टूक कहो या दो हरफी लहजे में पूछना चाहता हूँ कि आप जैसी बोली और षड्यंत्र आज रच रहे हो, आपके पुरखे इन्हीं के चलते पाकिस्तान से पिट के 1947 में हरयाणा-पंजाब-हिमाचल-दिल्ली आये| पंजाब में भी आपके पुरखों ने यही खेल-खेला तो वहाँ से मार-मार के खदेड़े गए तो भी 1947 के बाद 1986 से 1992 तक इस जाट-बाहुल्य हरयाणा ने ही आपको फिर से पनाह दी| पाठकों को सनद रहे कि 1984 में पंजाब के आतंकवाद के चलते वहाँ से 5% हिन्दुओं का पलायन (1991 की जनगणना के अनुसार) हुआ था, और वह 5% के 100% सिर्फ इन महाशय का समुदाय था| तो यह इतने समाज हितकारी हैं तो क्यों सारे हिन्दुओं में से सिर्फ इनको ही पंजाब से खदेड़ा गया, यह सवाल इनसे पूछा जाना चाहिए|
और अब यहां दो रोटी खाने का इनका ब्योंत हुआ तो फिर वही रंग दिखाने शुरू कर दिए? मतलब ढाक के तीन पात, चौथ होने को ना जाने को? हरयाणा से भी जी भर गया क्या चौपड़ा बाबू? या मध्यप्रदेश या दक्षिण भारत की तरफ कहीं कोई नया ठिकाना ढूंढ लिया जो शुरू हो गए हो दूसरा राजकुमार सैनी बन समाज में आतंक और अराजकता फैलाने पे?
जो भी है परन्तु एक बात याद रखना, जितना भोला और मासूम बनके आप जनता के बीच बोलते हो ना, इतनी भोली रेपुटेशन ना है आपकी| जाट नॉन-जाट सब वाकिफ हैं आपके और आपके पुरखों के कुकर्मों से| सो वो डेड सयानी वाली भाषा ना बोलो, क्योंकि डेड-स्याणी बोलने वाली अनंतकाल से दो बार पोती आई है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
पाठकों की जानकारी के लिए बता दूँ कि इन जनाब का आज अमर उजाला में बयान आया है कि नॉन-जाट सारे एक हो जाओ, वर्ना जाट तुम्हें खा जायेंगे|
तो मैं कह रहा था कि आपकी हमें चिंता नहीं, आपके तो खानदान की ही यह लाइन है| अहसान-फरामोस खानदान है आपका| वैसे जाट किसी पर प्रश्न नहीं उठाते परन्तु जब आप आगे आकर खुद ही मौका दे रहे हों तो आप जैसों के खानदानों के किस्से उघाड़ने हेतु ऐसे मौके छोड़ने भी नहीं चाहिए| वैसे मेरे जैसे लेखक भी पिछले डेड साल से सिर्फ सैनी, आर्य और खट्टर पर लिखते-लिखते ऊब गए थे; अब आप आये हो तो कलम को नई ऊर्जा और जोश मिला है, स्वागत है आपका|
चोपड़ा बाबू, जनता इतनी नादां भी नहीं कि यह ना समझे कि दबाने-लूटने-डराने-छलने के काम धर्मकर्म के नाम पर दान-दक्षिणा लेने वाले या आपके जैसे सेठ-साहुकार किया करते हैं; वो जाट किसान नहीं जो अन्न पैदा करके देश का पेट भरते हों, सीमा पे गोली खा के देश की रक्षा करते हों, खेड़े पे आये को अपने यहां पनाह देते हों|
वैसे आपसे दो टूक कहो या दो हरफी लहजे में पूछना चाहता हूँ कि आप जैसी बोली और षड्यंत्र आज रच रहे हो, आपके पुरखे इन्हीं के चलते पाकिस्तान से पिट के 1947 में हरयाणा-पंजाब-हिमाचल-दिल्ली आये| पंजाब में भी आपके पुरखों ने यही खेल-खेला तो वहाँ से मार-मार के खदेड़े गए तो भी 1947 के बाद 1986 से 1992 तक इस जाट-बाहुल्य हरयाणा ने ही आपको फिर से पनाह दी| पाठकों को सनद रहे कि 1984 में पंजाब के आतंकवाद के चलते वहाँ से 5% हिन्दुओं का पलायन (1991 की जनगणना के अनुसार) हुआ था, और वह 5% के 100% सिर्फ इन महाशय का समुदाय था| तो यह इतने समाज हितकारी हैं तो क्यों सारे हिन्दुओं में से सिर्फ इनको ही पंजाब से खदेड़ा गया, यह सवाल इनसे पूछा जाना चाहिए|
और अब यहां दो रोटी खाने का इनका ब्योंत हुआ तो फिर वही रंग दिखाने शुरू कर दिए? मतलब ढाक के तीन पात, चौथ होने को ना जाने को? हरयाणा से भी जी भर गया क्या चौपड़ा बाबू? या मध्यप्रदेश या दक्षिण भारत की तरफ कहीं कोई नया ठिकाना ढूंढ लिया जो शुरू हो गए हो दूसरा राजकुमार सैनी बन समाज में आतंक और अराजकता फैलाने पे?
जो भी है परन्तु एक बात याद रखना, जितना भोला और मासूम बनके आप जनता के बीच बोलते हो ना, इतनी भोली रेपुटेशन ना है आपकी| जाट नॉन-जाट सब वाकिफ हैं आपके और आपके पुरखों के कुकर्मों से| सो वो डेड सयानी वाली भाषा ना बोलो, क्योंकि डेड-स्याणी बोलने वाली अनंतकाल से दो बार पोती आई है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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