Sunday, 29 May 2016

यही इनकी ऊपरी सोच और उस सोच की पहुँच है बस!

धर्म और आस्था के नाम पर वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेला जाता है इन्हें! - Liveindiahindi.com
 
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देवदासी के नाम पर सिर्फ दलित-पिछड़ी लड़कियां ही क्यों; खुद की बहु-बेटियों को क्यों नहीं बैठा लेते मंदिरों में? और अगर ऐसा नहीं कर सकते तो कोई औचित्य नहीं इनको धर्मपुरुष और ऐसे तमाम अड्डों को मंदिर कहलाने कहने का|
 
धन्य हो कि उत्तरी भारत में जाट बसते हैं वर्ना यहां भी दिखा देता इनके द्वारा मंदिरों में बैठाई गई देवदासियां| इसीलिए तो यह जाट और खाप से सबसे ज्यादा खौफ और खार दोनों खाते हैं| क्योंकि जब तक जाट और खाप हैं इनके यह अव्वल दज्रे के अमानवीय मंसूबे जाटलैंड पर फल-फूल नहीं सकते|
 
कोई कितना ही इनके फेंकें "हिन्दू एकता और बराबरी" के दानों को चुग, ले परन्तु ऐ नादां पंछी इन्होनें तुझे इस चुग्गे के नाम पर इसी स्तर का गुलाम बना लेना है, जितना की दक्षिण भारत वाले इनके गुलाम हैं।
 
यह सरासर वो गुलामी है जिसको हिंदुस्तान मुग़लों और अंग्रेजों के आने से पहले लड़ रहा था; तब की अधूरी छूटी पड़ी इस लड़ाई को जितना जल्दी लड़ लिया जाए उतना भारत और मानवता के लिए बेहतर|
 
जाटों की जितनी भी औरतें धर्म-ढोंगी-पाखंडी बाबाओं के पीछे बावली हुई फिरती हैं, इनके पिताओं-पतियों-बेटों-भाईयों को चाहिए कि एक बार इनको उड़ीसा से ले के और सुदूर केरल तक फैली देवदासी और प्रथम-व्रजसला के मंदिर गर्भगृह में पुजारियों द्वारा सामूहिक भोग लगाने के रिवाजों को दिखा के लाएं|

शायद तब जा के इनको अहसास हो कि क्यों हमारे पुरखे पण्डे-पुजारियों-पाखण्डों से दूर रहते थे और रहने की कहते थे और इनको पास भी नहीं फटकने देते थे| मानो ना मानो इनको चाहे जितनी छूट दे लो, इनकी अंतिम मंजिल वही है जो दक्षिण भारत के मंदिरों में देवदासी और प्रथम-व्रजसला की परम्पराओं के नाम पर पाई जाती हैं|
 
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
 
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