आंकड़ों के
आधारित बात करूँगा| हिंदुत्व के एजेंडा पे सवार बीजेपी को आजतक सबसे ज्यादा
सफलता उन्हीं राज्यों में मिली है जहां जाट बाहुलता में है, जैसे कि
राजस्थान-मध्यप्रदेश-वेस्ट यूपी-दिल्ली-पंजाब| यहां तक कि गुजरात में भी
जाट समुदाय अच्छी-खासी तादात में है और वहाँ के पटेलों में भी बहुत बड़ा
हिस्सा खुद को जाटों से जोड़ता है|
इसके विपरीत बिहार-बंगाल-तमिलनाडु-केरल-महाराष्ट्र आदि राज्यों में जहां हिन्दू बहुलता तो है परन्तु जाट बहुलता नहीं वहाँ बीजेपी को कोई मुंह नहीं लगा रहा| महाराष्ट्र में तो संघ का मुख्यालय होना भी आजतक बीजेपी को वहाँ पूर्ण-बहुमत नहीं दिलवा सका| उत्तर प्रदेश में विगत लोकसभा चुनाव में जहां बाकी हिन्दुओं का सिर्फ 30-31% वोट मिला तो जाट का 77% और यही वजह रही कि अकेले यूपी से बीजेपी को 80 में 72 सीटें मिली| यह वही बीजेपी है जो कभी चौधरी चरण सिंह के जमाने में वेस्ट यूपी में एक लोकसभा सीट के लिए भी तरस जाया करती थी, जिसके अटल बिहारी वाजपेयी की राजा महेंद्रप्रताप मथुरा से जमानत जप्त करवा दिया करते थे|
हरयाणा में भी जाटों ने कभी बीजेपी को निशाने पर ले के वोट नहीं किया, कि हम ऐसे को वोट करें, जिससे बीजेपी वाला कैंडिडेट हारे| हरयाणा विधानसभा चुनाव में बावजूद पीएम मोदी द्वारा परोक्ष रूप से नॉन-जाट सीएम की बात कहे जाने को भी जाटों ने इसको इतना सीरियसली नहीं लिया था, जितना इन्होनें आज के दिन बना दिया| वर्ना जो जाट को सीधे निशाने पे धरता है उसका हश्र हिसार लोकसभा सीट पे कुलदीप बिश्नोई भुगत चुके हैं| हिसार की भांति ही सिरसा-भिवानी-रोहतक-फरीदाबाद-सोनीपत-कुरुक्षेत्र-करनाल ऐसी लोकसभा सीटें हैं कि जाटों ने जिद्द पे रख के वोटिंग करी तो इन सीटों पे जिसको चाहें उसको जितवा दें|
सच कहूं तो व्यक्तिगत तौर पर मैंने यह बात कभी नोट ही नहीं करी कि नॉन-जाट हरयाणवियों के लिए नॉन-जाट सीएम इतना बड़ा मसला था कि वो ऐसे बावले हुए जा रहे हैं जैसे कोई अमृतकलश मिल गया हो| जबकि मैंने बनारसीदास गुप्ता, भजनलाल तक को सीएम देखा है हरयाणा में| भगवत दयाल शर्मा और राव बीरेंदर सिंह मेरे जन्म से पहले ऐसे सीएम हो के जा चुके जो नॉन-जाट थे| और मेरी वही सामान्य प्रतिक्रिया अब है जब खट्टर सीएम है| तो फिर ऐसे में इनका यह जाट बनाम नॉन-जाट का ड्रामा समझ से परे की बात है|
और ऐसा भी नहीं है कि जो ऊपर आंकड़े गिनवाए और बीजेपी को उसकी ताकत किधर-किधर है दिखाई, इसके बारे बीजेपी वाले खुद नहीं जानते होंगे| परन्तु फिर भी यह जाट के पीछे हाथ धो के पड़े हैं तो इनके द्वारा इतना बड़ा रिस्क लेने की कोई तो वजह जरूर है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
इसके विपरीत बिहार-बंगाल-तमिलनाडु-केरल-महाराष्ट्र आदि राज्यों में जहां हिन्दू बहुलता तो है परन्तु जाट बहुलता नहीं वहाँ बीजेपी को कोई मुंह नहीं लगा रहा| महाराष्ट्र में तो संघ का मुख्यालय होना भी आजतक बीजेपी को वहाँ पूर्ण-बहुमत नहीं दिलवा सका| उत्तर प्रदेश में विगत लोकसभा चुनाव में जहां बाकी हिन्दुओं का सिर्फ 30-31% वोट मिला तो जाट का 77% और यही वजह रही कि अकेले यूपी से बीजेपी को 80 में 72 सीटें मिली| यह वही बीजेपी है जो कभी चौधरी चरण सिंह के जमाने में वेस्ट यूपी में एक लोकसभा सीट के लिए भी तरस जाया करती थी, जिसके अटल बिहारी वाजपेयी की राजा महेंद्रप्रताप मथुरा से जमानत जप्त करवा दिया करते थे|
हरयाणा में भी जाटों ने कभी बीजेपी को निशाने पर ले के वोट नहीं किया, कि हम ऐसे को वोट करें, जिससे बीजेपी वाला कैंडिडेट हारे| हरयाणा विधानसभा चुनाव में बावजूद पीएम मोदी द्वारा परोक्ष रूप से नॉन-जाट सीएम की बात कहे जाने को भी जाटों ने इसको इतना सीरियसली नहीं लिया था, जितना इन्होनें आज के दिन बना दिया| वर्ना जो जाट को सीधे निशाने पे धरता है उसका हश्र हिसार लोकसभा सीट पे कुलदीप बिश्नोई भुगत चुके हैं| हिसार की भांति ही सिरसा-भिवानी-रोहतक-फरीदाबाद-सोनीपत-कुरुक्षेत्र-करनाल ऐसी लोकसभा सीटें हैं कि जाटों ने जिद्द पे रख के वोटिंग करी तो इन सीटों पे जिसको चाहें उसको जितवा दें|
सच कहूं तो व्यक्तिगत तौर पर मैंने यह बात कभी नोट ही नहीं करी कि नॉन-जाट हरयाणवियों के लिए नॉन-जाट सीएम इतना बड़ा मसला था कि वो ऐसे बावले हुए जा रहे हैं जैसे कोई अमृतकलश मिल गया हो| जबकि मैंने बनारसीदास गुप्ता, भजनलाल तक को सीएम देखा है हरयाणा में| भगवत दयाल शर्मा और राव बीरेंदर सिंह मेरे जन्म से पहले ऐसे सीएम हो के जा चुके जो नॉन-जाट थे| और मेरी वही सामान्य प्रतिक्रिया अब है जब खट्टर सीएम है| तो फिर ऐसे में इनका यह जाट बनाम नॉन-जाट का ड्रामा समझ से परे की बात है|
और ऐसा भी नहीं है कि जो ऊपर आंकड़े गिनवाए और बीजेपी को उसकी ताकत किधर-किधर है दिखाई, इसके बारे बीजेपी वाले खुद नहीं जानते होंगे| परन्तु फिर भी यह जाट के पीछे हाथ धो के पड़े हैं तो इनके द्वारा इतना बड़ा रिस्क लेने की कोई तो वजह जरूर है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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