Sunday, 5 June 2016

बेचारे फेंकू जी, कहाँ से चले थे और कहाँ पहुँच गए!

कहते थे नेशनल हाइवेज के दोनों ओर 1-1 किलोमीटर के दायरे में इंडस्ट्रियल जोन (Industrial Zone) बनाएंगे परन्तु यह क्या इंडस्ट्रियल ज़ोन बनाते-बनाते हरयाणा में तो कम-से-कम "धारा 144 जोन" बना दिए|

समझ में आता है कि क्यों वर्ल्डबैंक (Worldbank) ने भारत से विकासशील देश का तमगा भी छीन लिया और लोअर मिडिल इकॉनमी (Lower Middle Economy) में आने वाले पाकिस्तान और घाना जैसे देशों की सूची में डाल दिया| महाशय, जबसे पीएम बने वास्कोडिगामा बने घूम रहे, जरा इतनी सी भी तो अक्ल इस्तेमाल कर लो कि विदेशी निवेश और व्यापारियों को बुलाने से पहले, उनको पॉलिटिकली और सोशली स्टेबल समाज का एनवायरनमेंट भी देना होता है|

या तो खुद को डेड स्याणे समझते हैं या फिर विदेशियों को फद्दु समझते हैं कि वो बाकी कुछ नहीं देखेंगे और इनकी वाक्पटुता मात्र से ही मोहित होकर खींचे चले आएंगे, इन्वेस्ट करने| अंधभक्तों को इतना भी अतिआत्मविश्वास नहीं भरना चाहिए था फेंकू में कि वो पूरी दुनिया को ही अपना अंधभक्त समझने लग गए|
अभी टीवी पर देख रहा था, हरयाणा में नेशनल हाइवेज के दोनों और धारा 144 लागू होने से ढाबों-रेस्तरां सबका कारोबार ठप्प पड़ा है और अगले 15 दिन तो कम-से-कम ठप्प ही रहेगा क्योंकि जाट 15 दिन तक सरकार का इंतज़ार करेंगे और फिर रूख देखकर अगली कार्यवाही करेंगे| अब इस दौरान होने वाले व्यापारियों के नुकसान का दोषी किसको ठहराऊं, मोदी-खट्टर की सरकार को, आरएसएस के रवैये को या भिवानी वाले उन मुरारी लाल गुप्ता को जिनकी PIL के चलते जाट आरक्षण पर स्टे लगा?

इसको हरयाणा में कहते हैं कि "घणी स्याणी दो बार पोया करै!"

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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