Wednesday, 15 June 2016

लेखन-जगत में परम्परागत ताकतों को पीछे धकेलना है तो करनी होगी, इस प्रकार की "लेखन-क्रांति"!


छटा बिंदु खासतौर पर पढ़ें!

1) कोई भी पोलिटिकल पार्टी या आरएसएस जैसा संगठन क्या कर रहा है, इनकी आलोचना मात्र से ध्यान हटाया जाए, और उस अकाट्य राह पर मंथन किया जाए जो हमें इनसे पार पा के सर छोटूराम की हकीकत वाली राजनीति और उस राजनीति स्वरूप उनके बनाये समाज को फिर से बनाने की और अग्रसर करे|
2) हमें कुछ उदासीनताएं तोड़नी होंगी, कुछ छोड़नी होंगी; और लेलिन, कार्ल मार्क्स, से गुएरा का इंडियन वर्जन सर छोटूराम को इनके बराबर रख के पढ़ना होगा| मानता हूँ यह सारे लेफ्टिस्ट थे परन्तु लेफ्ट के भारतीय स्वरूप को मनुवाद ने हाईजैक कर रखा है| और इसीलिए भारतीय लेफ्ट ने आज-तलक भी हरयाणा-पंजाब में सर छोटूराम को नहीं उठाया| वर्ना जो समाजवाद का प्रैक्टिकल सर छोटूराम भारत के यूनाइटेड-पंजाब में करके चले गए वो तो यह अंतर्राष्ट्रीय हस्तियां ही कर पाई थी |
3) हमें हर हालत-हालात में सर छोटूराम के हर पहलु को पढ़ना होगा, खोजना होगा और उनकी सोच और विधा पर यूनियनिस्ट शोध प्रयोगशाला बनानी होगी|
4) इसके साथ ही बाबा साहेब आंबेडकर, सरदार प्रताप सिंह कैरों, सरदार भगत सिंह, महाराजा सूरजमल, महाराजा रणजीत सिंह आदि-आदि के राजनीतिशास्त्र व् दर्शनशास्त्र भी इस प्रयोगशाला में शामिल करने होंगे|
5) हमें यह बात उठानी होगी कि सिर्फ अक्षरी ज्ञान ना होने की वजह से किसान अनपढ़ नहीं होता| जो इंसान धरती का सीना चीर, समाज का पेट भरने का दैवीय ज्ञान रखता हो; वह अक्षरी तौर पर अनपढ़ होते हुए भी अनपढ़ नहीं होता| अनपढ़ तो बाबे-मोडडे-अफसर-मैनेजर होते हैं जो हर प्रकार के पोथे-ग्रन्थ-मैनेजमेंट सिलेबस आदि पढ़ के भी अपने लिए दो दाने अनाज के पैदा नहीं कर सकते| और यही वो इनकी अनपढ़ता कहो या असमर्थता, इसको छुपाते हैं इन बातों के पीछे, जब यह किसान को जाहिल-गंवार-अनपढ़ कहते हैं| यानि कृतज्ञ होने की तमीज की बजाये कृतघ्नता दिखाते हैं यह किसान को| अत: आज की किसान की औलादों को अपने स्वाभिमान को ऊँचा बनाये रखने हेतु और इन परजीवी क्लासों को बेवजह किसान के सर पे बैठें देने से रोकने हेतु, इनको यह बातें याद दिलाये रखनी होंगी|
6) अपने-अपने गाम-खेड़े का पूरा इतिहास अपने-अपने गाँव के बुजुर्गों (मर्द-महिला दोनों) के पास बैठ के उनकी क्वोटेसन समेत लिखना होगा| हर यूनियनिस्ट इसको अपनी छुट्टियों की जॉब बना ले| विद्यार्थी हो, नौकरीपेशा हो; छुट्टियों में लैपटॉप-नोटबुक या कॉपी-पेन के साथ अपने-अपने गाम-खेड़ों में जाओ और बुजुर्गों के साथ बैठो और लिखो अपने-अपने गाँव का हर पहलु| किसान-दलित-पिछड़ा समाज को आज के दिन इस "लेखन-क्रांति" की जरूरत है; यह खड़ी कर ली; समझो लेखन जगत से परम्परागत ताकतों को पीछे धकेल दिया| और इस समूचे काम को एक जगह ऑनलाइन लाने के लिए मैं एक वेबसाइट पर काम कर रहा हूँ जो उत्तरी-भारत का अनाज का कटोरा कहे जाने वाले क्षेत्र को तो कम-से-कम कवर करेगी|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

No comments: