क्या जब एक सैनिक बॉर्डर पर देश की रक्षा करता है तो वो सिविलियन्स को सहायता के लिए पुकारता है? - नहीं बिलकुल नहीं|
क्या जब एक किसान खेतों में कड़ी सर्दी-गर्मी-लू-तूफान-ठंड-रात-दिन में खट के देश के लिए अनाज पैदा करता है तो वो किसी सिविलियन को पुकारता है? - नहीं बिलकुल नहीं|
तो फिर इन धर्म वालों को जब-जब यह लगता है या समाज को यह लगवाना होता है कि धर्म संकट में है तो यह क्यों हर बार सिविलयंश को पुकारते हैं?
और वो भी बावजूद धर्म-रक्षा के नाम पर दुनिया जहान की फलानि सेना, धकडी सेना साथ रखने के? वो भी बावजूद सिविलयंस से फुल्ल दान-चढ़ावा-चंदा के रूप में फाइनेंस तक पाने के?
क्या धर्म के नाम पर सिविलियन इनको दान-चंदा-चढ़ावा देकर अपना फर्ज पूरा नहीं कर देता, ठीक वैसे ही जैसे सिविलयन के टैक्स से फ़ौज के लिए पैसा देने से उसका देश की रक्षा का फर्ज पूरा हो जाता है?
किसान और जवान तो बिना किसी दान-चढ़ावा-चंदा के भी अपने दम पर देश-धर्म-समाज के लिए अपना फर्क पूरा करते हैं| तो फिर यह धर्म के ठेकेदार चुपचाप अपना काम करने की बजाये क्यों समाज को हर दूसरे दिन डंडा किये रहते हैं?
और अगर अपना काम ढंग से नहीं कर सकते तो छोड़ें हर धर्मकेंद्र व् धर्मस्थल को, करें सिविलियन के हवाले| हमें नहीं जरूरत ऐसे डरपोकों और कामचोरों की जिनको जब दान-चढ़ावा-चंदा ढकारना हो तो खुद, और जब धर्म की रक्षा का सवाल उठे तो व्यर्थ का हाहाकार और सविलियंश को डंडा|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
क्या जब एक किसान खेतों में कड़ी सर्दी-गर्मी-लू-तूफान-ठंड-रात-दिन में खट के देश के लिए अनाज पैदा करता है तो वो किसी सिविलियन को पुकारता है? - नहीं बिलकुल नहीं|
तो फिर इन धर्म वालों को जब-जब यह लगता है या समाज को यह लगवाना होता है कि धर्म संकट में है तो यह क्यों हर बार सिविलयंश को पुकारते हैं?
और वो भी बावजूद धर्म-रक्षा के नाम पर दुनिया जहान की फलानि सेना, धकडी सेना साथ रखने के? वो भी बावजूद सिविलयंस से फुल्ल दान-चढ़ावा-चंदा के रूप में फाइनेंस तक पाने के?
क्या धर्म के नाम पर सिविलियन इनको दान-चंदा-चढ़ावा देकर अपना फर्ज पूरा नहीं कर देता, ठीक वैसे ही जैसे सिविलयन के टैक्स से फ़ौज के लिए पैसा देने से उसका देश की रक्षा का फर्ज पूरा हो जाता है?
किसान और जवान तो बिना किसी दान-चढ़ावा-चंदा के भी अपने दम पर देश-धर्म-समाज के लिए अपना फर्क पूरा करते हैं| तो फिर यह धर्म के ठेकेदार चुपचाप अपना काम करने की बजाये क्यों समाज को हर दूसरे दिन डंडा किये रहते हैं?
और अगर अपना काम ढंग से नहीं कर सकते तो छोड़ें हर धर्मकेंद्र व् धर्मस्थल को, करें सिविलियन के हवाले| हमें नहीं जरूरत ऐसे डरपोकों और कामचोरों की जिनको जब दान-चढ़ावा-चंदा ढकारना हो तो खुद, और जब धर्म की रक्षा का सवाल उठे तो व्यर्थ का हाहाकार और सविलियंश को डंडा|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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