Saturday, 25 June 2016

मेरे पिता की पीढ़ी ने उनके पिता की पीढ़ी की परम्परा को आगे नहीं बढ़ाया, परन्तु अब हम अपने दादाओं की परम्परा को आगे बढ़ाएंगे!

"आपके इर्दगिर्द जो धर्म है, वो कोरा व्यापार है" की विवेचना करते हुए, इस लेख के असल मुद्दे पर लेख का अंत करूँगा|

1) एक तरफ कहेंगे कि मक्का में शिवलिंग है, अत: व्यंगत्मक्ता में फिर यह भी कहेंगे कि मुस्लिम शिवलिंग पूजते हैं| तो भाई फिर उनसे झगड़ा किस बात का, आपके क्लेम के हिसाब से पूज तो शिव को रहे हैं ना वो?

2) बुद्ध को विष्णु का नौवां अवतार बताएँगे, परन्तु बुद्धिज़्म को दिन-रात बिसराहेंगे| भाई जब विष्णु का अवतार मानते हो तो दुत्कारते क्यों हो?

3) वेटिकन सिटी का डिज़ाइन 'शिवलिंग' की शेप का होने से उसको अपना कांसेप्ट क्लेम करेंगे, परन्तु ईसाईयों और अंग्रेजों को दुश्मन नंबर एक बताएँगे?

तो फिर आखिर झगड़ा किस बात का है, जो अंधभक्त हर वक्त चिल्लाते रहते हैं कि यह तुम्हारा दुश्मन, वह तुम्हारा दुश्मन; इससे देश को बचाओ, इससे धर्म को बचाओ?

नहीं, कोई खतरा नहीं; सब कोरी बकवास, छलावा, बहकावा| खतरा है तो सिर्फ इनके बिज़नेस को|

मक्का-बुद्ध-वेटिकन, इन सबसे आज इनको चन्दा-चढ़ावा यानि बिज़नेस आना शुरू हो जाए, यह इनके भी गुण गाने शुरू कर देंगे| दिक्क्त यह है कि इनको मक्का-बुद्ध-वेटिकन वालों से चंदे-चढ़ावे के रूप में हफ्ता (बिज़नेस) नहीं मिलता; तो बस पड़ो इनके पीछे और कर दो बदनाम इनको|

अब हरयाणा में जाट बनाम नॉन-जाट क्या है, यह लोग जाट को चैन से क्यों नहीं रहने देते? और आज से नहीं सदियों से? जवाब सीधा सा है जाट इनके बिज़नेस को जड़ों समेत समझ रखने वाले रहे हैं| जानते रहे हैं कि यह इनके लिए सिर्फ एक धंधा है| जाट से ही इनको सबसे कम चन्दा-चढ़ावा आता रहा है|

परन्तु इनके पेट का कोई अंत नहीं, आप चढ़ावा राशि बढ़ा के देख लो या इनकी चाटुकारी बढ़ा के देख लो| उदाहरण समेत समझा देता हूँ|

देखो, जींद के रानी तालाब का भूतेश्वर मंदिर जींद के जट्ट राजा सरदार रणजीत सिंह सन्धु ने बनवाया? परन्तु क्या उस मंदिर के कैंपस या एंट्री पे कहीं भी एक भी शिलालेख उस राजा को सम्मान देने हेतु लगवाया इन्होनें? नहीं लगवाया, बस उनसे मंदिर बनाया या बनवाया और भुला दिया|

पिछले दो-तीन दशक से जाटों ने अपनी जमीनें व् धन दान से चौपाल, गुरुकुल व् जाट कॉलेज/स्कूल नाम की शिक्षण संस्थाओं की जगह निरी मंदिर-धर्मशाला बनवाई; और देख लो बजाये जाटों को और ज्यादा इज्जत मिलने के; इसका उल्टा यानि जाट बनाम नॉन-जाट के दंश और अखाड़े झेलने पड़ रहे हैं?

तो इनका तो यह भी कोई हिसाब नहीं कि आप इनको इज्जत दो, तवज्जो दो तो यह आपको बदले में ज्यादा तो छोडो, उसके बराबर का भी वापिस कर दें? इनको इज्जत-तवज्जो-चढ़ावे का प्रैक्टिकल करके देख लिया ना; सिवाय दुत्कार और जाट बनाम नॉन-जाट के अखाड़े के मिला कुछ? तो क्या अब हमें अपने पुरखों की स्थापित की गई परम्परा वापिस नहीं लौट आना चाहिए?

तो समझो और लौटो अपने बुजुर्गों की दी गुरुकुल और स्कूल-कॉलेज बनाने की परम्परा पर| दावे से कहता हूँ जिस दिन मंदिर-धर्मशाला बनवानी छोड़ के दो-तीन दशक से बंद स्कूल/कॉलेज/गुरुकुल/चौपाल बनवाने की अपने पुरुखों की राह दिखाई परम्परा पर वापिस लौटे, उस दिन समझ लेना यह जाट बनाम नॉन-जाट के अखाड़े स्वत: अपनी मौत मर जायेंगे|

मैं 34 साल का हूँ, मेरे पिता की पीढ़ी ने उनके पिता की परम्परा को आगे नहीं बढ़ाया, परन्तु अब हम अपने दादाओं की परम्परा को वापिस आगे बढ़ाएंगे, मंदिर-धर्मशालाओं से पहले स्कूल/कॉलेज/गुरुकुल/चौपाल बनवाएंगे| या फिर फिक्की (Federation of Indian Chambers of Commerce & Industry) और डिक्की (Dalit Indian Chambers of Commerce & Industry) की तर्ज पर जिक्की (Jat Indian Chambers of Commerce & Industry) बनाएंगे| फिर इसके लिए चाहे जितने तो दंश झेलने पड़ें, और चाहे जितना कष्ट; परन्तु यही सही में उन्नति होगी, खोते जा रहे वैभव बनाए रखने की नीति होगी|

विशेष: इन सबको वापिस हासिल करने में एक चीज सबसे जरूरी होगी और वो होगी अपने बुजुर्गों (दादा और पिता) दोनों पीढ़ियों से इन पहलुओं पर चर्चा करना| इन सब कार्यों के लिए उनका समर्थन, उनका आशीर्वाद और आशीष हासिल करके चलना| अत: खोलें अपने घरों-बैठकों में इन पहलुओं पर चर्चाओं-डिबेटों को और समझें और समझाएं इन हकीकतों से; ताकि सर छोटूराम का बताया दुश्मन देखने-समझने में एक समझ बने और हम वापिस अपनी इस आलीशान व् मानवता की सर्वोत्तम परम्परा को आगे बढ़ायें|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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