आज के दिन मेरी जन्मनगरी निडाना (हिंदी में
गाँव) में एक भी बनिया परिवार नहीं है, सब रोजगार की प्राथमिकताओं के चलते
छत्तीसगढ़ से ले के जींद-दिल्ली तक पलायन कर चुके हैं| आज से करीब 20 साल
पहले तक 10 के करीब बनिया परिवार रहते थे नगरी में| और लगभग यही कहानी हर
हरयाणवी नगरी की है| बनिया तो बनिया, बनिए से ज्यादा तो हर नगरी से जाट,
ओबीसी यहां तक कि नौकरी पेशा तो एससी-एसटी तक ने पैतृक नगरियां छोड़ के
पास-पड़ोस शहरों में कोठियां बना के वहाँ पलायन कर लिया है|
अब जिस तरीके से यह गंवार *(नीचे नोट देखें) "कैराना" का मामला उठा रहे हैं; उसको देखते हुए तो लगता है कि यह हरयाणा में अगला झगड़े-फसाद का मुद्दा यही उठाने वाले हैं| और क्योंकि 70% हरयाणा की नगरियां (हिंदी में गाँव) जाट बाहुल्य हैं; तो जाट रहो तैयार एक और इल्जाम भुगतने को कि इनके आतंक के चलते यह सब पलायन हुए हैं| वाह बैठे-बिठाए क्या नायाब फार्मूला हाथ लगा है फुस्स हो चुके "जाट बनाम नॉन-जाट" यानि 35 बनाम 1 के फसाद को फिर से हवा देने का|
तोड़ की कह दूँ भाई, "यें लातों के भूत हैं, बातों से नहीं लठ खा के पैंडा छोड़ेंगे!"; तो जो अगर अबकी बार इन्होनें ऐसा कोई बेहूदा राग अलापा, इनके तसल्ली से टाकणे छांग दो|
और बिहार-बंगाल-आसाम के जितने भी लोग एनसीआर-हरयाणा-पंजाब-वेस्ट यूपी में नौकरी करते हैं, तैयार रहें; क्योंकि अब यह लोग आपके पलायन का भी हल करेंगे; आपको आपके गृह-राज्यों में ही रोजगार उपलब्ध करवा के, आपकी गृह-राज्य वापसी अभियान चलवा के|
*नोट = गंवार ही कहूंगा इनको क्योंकि यह जो अब मुद्दा उठाया है यह मेरे हरयाणा में "ठाली न्यान काटडे मूंदें" वाली तर्ज पर "चूचियों में हाड ढूँढ़ने वाले" निठ्ठले-नाकारा लोग उठाया करते हैं| इनके लच्छन देख के तो लगता ही नहीं कि जनता ने कोई सरकार चुनी है, ऐसा प्रतीत होता है कि गुंडे-लफंगों को देश की ऐसी-तैसी करने का लाइसेंस थमा बैठे हैं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
अब जिस तरीके से यह गंवार *(नीचे नोट देखें) "कैराना" का मामला उठा रहे हैं; उसको देखते हुए तो लगता है कि यह हरयाणा में अगला झगड़े-फसाद का मुद्दा यही उठाने वाले हैं| और क्योंकि 70% हरयाणा की नगरियां (हिंदी में गाँव) जाट बाहुल्य हैं; तो जाट रहो तैयार एक और इल्जाम भुगतने को कि इनके आतंक के चलते यह सब पलायन हुए हैं| वाह बैठे-बिठाए क्या नायाब फार्मूला हाथ लगा है फुस्स हो चुके "जाट बनाम नॉन-जाट" यानि 35 बनाम 1 के फसाद को फिर से हवा देने का|
तोड़ की कह दूँ भाई, "यें लातों के भूत हैं, बातों से नहीं लठ खा के पैंडा छोड़ेंगे!"; तो जो अगर अबकी बार इन्होनें ऐसा कोई बेहूदा राग अलापा, इनके तसल्ली से टाकणे छांग दो|
और बिहार-बंगाल-आसाम के जितने भी लोग एनसीआर-हरयाणा-पंजाब-वेस्ट यूपी में नौकरी करते हैं, तैयार रहें; क्योंकि अब यह लोग आपके पलायन का भी हल करेंगे; आपको आपके गृह-राज्यों में ही रोजगार उपलब्ध करवा के, आपकी गृह-राज्य वापसी अभियान चलवा के|
*नोट = गंवार ही कहूंगा इनको क्योंकि यह जो अब मुद्दा उठाया है यह मेरे हरयाणा में "ठाली न्यान काटडे मूंदें" वाली तर्ज पर "चूचियों में हाड ढूँढ़ने वाले" निठ्ठले-नाकारा लोग उठाया करते हैं| इनके लच्छन देख के तो लगता ही नहीं कि जनता ने कोई सरकार चुनी है, ऐसा प्रतीत होता है कि गुंडे-लफंगों को देश की ऐसी-तैसी करने का लाइसेंस थमा बैठे हैं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
No comments:
Post a Comment