यह कैसे पंचायती हैं?:
कि जरा सी किसी असामाजिक तत्व या तत्वों के समूह ने किसी अपराधी (जैसलमेर कुख्यात चुतर सिंह) को पुलिस द्वारा मार गिराने पे मसले को जातीय रंग क्या दिया कि हरयाणा में हिंदुत्व की फायरब्रांड बनने को आतुर साध्वी देवा ठाकुर ने "हिन्दू एकता और बराबरी" का चोला ही उतार फेंका और किसी "सांप द्वारा केंचुली छोड़ने" की भांति आ खड़ी अपने समाज के अपराधी के पक्ष में? रिफरेन्स के लिए इस मामले से संबंधित कल की उनकी पोस्ट देखें| यह भी नहीं सोचा कि मामला सामाजिक झगड़े का नहीं, अपितु एक नामी बदमाश को पुलिस द्वारा मार गिराने का है?
मैं तो अब भी कह रहा हूँ कि यह कहाँ के पूरे हिंदुत्व के झण्डाबदार बनेंगे, जब अपनी कम्युनिटी-जाति की सोच से ही ऊपर नहीं ऊठ सकते तो? और हमसे उम्मीद की जाती है कि हम इनके लिए जातीय अभिमान-स्वाभिमान को त्याग के इनसे जुड़ें; इनसे मार्गदर्शन पाएं? यह हिन्दू-हिंदुत्व सिर्फ 2-3 जातियों द्वारा समाज में अपना छद्म रुतबा और सत्ता में अपना आधिपत्य बनाए रखने के सगूफेमात्र से फ़ालतू कुछ नहीं। अत: अब भी वक्त है कि इनसे ध्यान हटा के अपने आर्थिक और सामाजिक हितों और समावेश पर ध्यान लगा लो। जिसका रंग ही अग्नि वाला भगवा हो गया, वो भला समाज में आग लगाने के सिवाय किये हैं कुछ, जो अब करेंगे? देश में हरित-क्रांति और श्वेत-क्रांति के धोतक समझें इस बात को।
बाबा-साधु-मोड्डा ना कभी पंचायती हुआ इतिहास में और ना हो सकता। फिर भी किसी को धक्के से इनको पंचायती बना के सर पे बैठाए रखना है तो ऐसे लोगों को सिर्फ समय की मार ही अक्ल दे सकती है। और फिर वैसे भी साध्वी देवा ठाकुर की जाति तो इनके पुरखों को चूची-बच्चा समेत 21-21 बार मार के जिन्होनें धरती को क्षत्रियों से विहीन कर दिया हो, उन्हीं का आजतक कुछ नहीं बिगाड़ पाये तो यह क्या किसी को न्याय देंगे या दिलवाएंगे। या सच्चे पंचायतियों की भांति "दूध का दूध और पानी का पानी" करने का जिगर दिखाएंगे।
इसलिए दूर रहो ऐसे समाज के छद्म हितकरियों से और इनको इनके हाल पे छोड़ देना ही बेहतर। राजस्थान में जिस समाज के अफसर पर यह बरस रहे हैं, वो समाज इनसे चाहे कितना ही "अजगर भाईचारा" निभा ले, चाहे कितना ही इनके समाज से दो-दो पीएम (वीपी सिंह और चन्द्रशेखर) और एक सीएम (भैरो सिंह शेखावत) बनवा दे, परन्तु इन्होनें अंत में जा के गिरना उन्हीं के पैरों में जिन्होनें इनके पुरखों को 21-21 बार मारा।
विशेष: मेरी साध्वी देवा ठाकुर के समाज से यह कोई चिड़ या नफरत नहीं, अपितु सहानुभूति है।
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
कि जरा सी किसी असामाजिक तत्व या तत्वों के समूह ने किसी अपराधी (जैसलमेर कुख्यात चुतर सिंह) को पुलिस द्वारा मार गिराने पे मसले को जातीय रंग क्या दिया कि हरयाणा में हिंदुत्व की फायरब्रांड बनने को आतुर साध्वी देवा ठाकुर ने "हिन्दू एकता और बराबरी" का चोला ही उतार फेंका और किसी "सांप द्वारा केंचुली छोड़ने" की भांति आ खड़ी अपने समाज के अपराधी के पक्ष में? रिफरेन्स के लिए इस मामले से संबंधित कल की उनकी पोस्ट देखें| यह भी नहीं सोचा कि मामला सामाजिक झगड़े का नहीं, अपितु एक नामी बदमाश को पुलिस द्वारा मार गिराने का है?
मैं तो अब भी कह रहा हूँ कि यह कहाँ के पूरे हिंदुत्व के झण्डाबदार बनेंगे, जब अपनी कम्युनिटी-जाति की सोच से ही ऊपर नहीं ऊठ सकते तो? और हमसे उम्मीद की जाती है कि हम इनके लिए जातीय अभिमान-स्वाभिमान को त्याग के इनसे जुड़ें; इनसे मार्गदर्शन पाएं? यह हिन्दू-हिंदुत्व सिर्फ 2-3 जातियों द्वारा समाज में अपना छद्म रुतबा और सत्ता में अपना आधिपत्य बनाए रखने के सगूफेमात्र से फ़ालतू कुछ नहीं। अत: अब भी वक्त है कि इनसे ध्यान हटा के अपने आर्थिक और सामाजिक हितों और समावेश पर ध्यान लगा लो। जिसका रंग ही अग्नि वाला भगवा हो गया, वो भला समाज में आग लगाने के सिवाय किये हैं कुछ, जो अब करेंगे? देश में हरित-क्रांति और श्वेत-क्रांति के धोतक समझें इस बात को।
बाबा-साधु-मोड्डा ना कभी पंचायती हुआ इतिहास में और ना हो सकता। फिर भी किसी को धक्के से इनको पंचायती बना के सर पे बैठाए रखना है तो ऐसे लोगों को सिर्फ समय की मार ही अक्ल दे सकती है। और फिर वैसे भी साध्वी देवा ठाकुर की जाति तो इनके पुरखों को चूची-बच्चा समेत 21-21 बार मार के जिन्होनें धरती को क्षत्रियों से विहीन कर दिया हो, उन्हीं का आजतक कुछ नहीं बिगाड़ पाये तो यह क्या किसी को न्याय देंगे या दिलवाएंगे। या सच्चे पंचायतियों की भांति "दूध का दूध और पानी का पानी" करने का जिगर दिखाएंगे।
इसलिए दूर रहो ऐसे समाज के छद्म हितकरियों से और इनको इनके हाल पे छोड़ देना ही बेहतर। राजस्थान में जिस समाज के अफसर पर यह बरस रहे हैं, वो समाज इनसे चाहे कितना ही "अजगर भाईचारा" निभा ले, चाहे कितना ही इनके समाज से दो-दो पीएम (वीपी सिंह और चन्द्रशेखर) और एक सीएम (भैरो सिंह शेखावत) बनवा दे, परन्तु इन्होनें अंत में जा के गिरना उन्हीं के पैरों में जिन्होनें इनके पुरखों को 21-21 बार मारा।
विशेष: मेरी साध्वी देवा ठाकुर के समाज से यह कोई चिड़ या नफरत नहीं, अपितु सहानुभूति है।
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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