भारत के लगभग हर शहर की हर पॉश कॉलोनी, सेक्टर्स व् पार्कों में इनके
रोड्स पर या इनके एंट्री पॉइंट्स पर "कैटल कैचर (Cattle Catcher) लगे होते
हैं ताकि अगर कोई गाय या सांड (इनके साइज का दूसरा कोई जानवर तो आवारा है
नहीं, इसका दूसरा अर्थ यह भी है कि इन तथाकथित भक्तों की जिस जानवर पर
दृष्टि पड़ जाए समझो उस जानवर की उतनी ही दुर्गति) इन कालोनियों-सेक्टरों
में घुसने की कोशिश करें तो बहुत ही दर्दनाक तरीके से उसके खुर उसमे फंस
जाएँ, या पीड़ादायक तरीके से पूरा शरीर ही फंस जाए और फिर उनको पकड़ के
(बहुतों बार तो पीट-छेत के) वहाँ से भगाये जा सकें|
तो प्यारे गौभगतो सिर्फ गरीब-मजलूमों पर ही अत्याचार करना जानते हो या इन पॉश कालोनी-सेक्टर वालों की क्लास लेने का भी जिगर रखते हो? न्यायकारी बनते हो ना, तो है औकात रोज-रोज इन 'कैटल कैचर्स' में फंसने वाली गाय-सांड को भी न्याय दिलवाने की?
नहीं होगी, क्यों क्योंकि यह अधिकतर गौ-प्रेमी इन्हीं पॉश कालोनी-सेक्टर में तो रहते हैं|
अब है ना ताज्जुब की बात कि इन गौभक्तों की पॉश कालोनी-सेक्टर में कोई गाय-सांड ना घुस जाए, उसके लिए तो "Cattle Catcher" लगाएंगे, परन्तु दूसरी तरफ कोई दलित मृत गाय-सांड की चमड़ी उतार के उसका अंतिम-संस्कार करके, उसको भवसागर पार लगाए तो उसको डंडों से पीटेंगे, या कोई किसान आवारा पशुओं से जिनमें कि मुख्यत: यह भगतों की विशेष अनुकम्पा प्राप्त गाय-सांड ही होते हैं, इनसे अपनी फसल की रक्षा हेतु बाड़ लगा ले या खेत में घुसे को बाहर निकाल दे तो भी सबसे बड़ा उलाहना इन "कैटल कैचर" लगाने वालों को ही होता है? किसान को पीट-छेत इसलिए नहीं सकते, क्योंकि क्या पता किसी लठ वाले जाट के हत्थे चढ़ गए तो कहीं इन्हीं की भ्यां ना बुलवा दे, परन्तु दबी आवाज में उलाहना जरूर देते रहते हैं सोशल मीडिया पर|
तो ऐसे में इनका क्या इलाज हो? इनका सीधा सा देशी इलाज है कि "लातों के भूत, बातों से नहीं मानते!" इनको जब तक किसान-दलित लठ मारने शुरू नहीं करेगा, इनकी बाह्त्तर गज लम्बी हो चुकी जुबानों पे लगाम नहीं लगेगी| और यह काम किसान-दलित जितना शीघ्रतम शुरू कर ले उतना समाज का भला| शुरुवात गुजरात से हो चुकी है, जितनी जल्दी पूरे देश में फैले उतना देश का भला|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
तो प्यारे गौभगतो सिर्फ गरीब-मजलूमों पर ही अत्याचार करना जानते हो या इन पॉश कालोनी-सेक्टर वालों की क्लास लेने का भी जिगर रखते हो? न्यायकारी बनते हो ना, तो है औकात रोज-रोज इन 'कैटल कैचर्स' में फंसने वाली गाय-सांड को भी न्याय दिलवाने की?
नहीं होगी, क्यों क्योंकि यह अधिकतर गौ-प्रेमी इन्हीं पॉश कालोनी-सेक्टर में तो रहते हैं|
अब है ना ताज्जुब की बात कि इन गौभक्तों की पॉश कालोनी-सेक्टर में कोई गाय-सांड ना घुस जाए, उसके लिए तो "Cattle Catcher" लगाएंगे, परन्तु दूसरी तरफ कोई दलित मृत गाय-सांड की चमड़ी उतार के उसका अंतिम-संस्कार करके, उसको भवसागर पार लगाए तो उसको डंडों से पीटेंगे, या कोई किसान आवारा पशुओं से जिनमें कि मुख्यत: यह भगतों की विशेष अनुकम्पा प्राप्त गाय-सांड ही होते हैं, इनसे अपनी फसल की रक्षा हेतु बाड़ लगा ले या खेत में घुसे को बाहर निकाल दे तो भी सबसे बड़ा उलाहना इन "कैटल कैचर" लगाने वालों को ही होता है? किसान को पीट-छेत इसलिए नहीं सकते, क्योंकि क्या पता किसी लठ वाले जाट के हत्थे चढ़ गए तो कहीं इन्हीं की भ्यां ना बुलवा दे, परन्तु दबी आवाज में उलाहना जरूर देते रहते हैं सोशल मीडिया पर|
तो ऐसे में इनका क्या इलाज हो? इनका सीधा सा देशी इलाज है कि "लातों के भूत, बातों से नहीं मानते!" इनको जब तक किसान-दलित लठ मारने शुरू नहीं करेगा, इनकी बाह्त्तर गज लम्बी हो चुकी जुबानों पे लगाम नहीं लगेगी| और यह काम किसान-दलित जितना शीघ्रतम शुरू कर ले उतना समाज का भला| शुरुवात गुजरात से हो चुकी है, जितनी जल्दी पूरे देश में फैले उतना देश का भला|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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