Saturday, 30 July 2016

हिन्दू धर्म का यह सिस्टम जो दान तो लेता है, परन्तु हिसाब या विश्वास नहीं देता; अब लदवाना होगा!

हिन्दू धर्म में ही है अपने लोगों को जातिवाद और वर्णवाद के नाम पर बाँट के रखने की परम्परा, बाकियों में इन जैसा घिनौना रूप तो कम-से-कम नहीं:

1) ईसाई चर्च में इसलिए दान देते हैं क्योंकि उनको पता होता है कि चर्च वाले उनके दान को उनके धर्म को फैलाने, उनके इतिहास-संस्कृति को सहेजने, धर्म के लोगों पर किसी प्राकृतिक या कृत्रिम आपदा से निबटने व् धर्म के दुश्मनों से निबटने में लगाएंगे| अगर उनको पता चले कि उनका ही दान दिया पैसा उनके ही धर्म के अंदर हिन्दू धर्म की भांति जातिवाद व् वर्णवाद को बढ़ावा देने हेतु प्रयोग होगा या होता है तो वो अगले ही दिन पादरियों के मुंह नोंच लें| 1789 में हुई फ़्रांसिसी क्रांति इसी का उदाहरण थी जिसमें कि उद्योग और धर्म के पाखंडियों को मात्र 29 युवकों की टोली ने सीधा कर दिया था और ऐसा सीधा किया था कि आजतक नियम लागू है कि एक तो धर्म से सम्बन्धित कोई भी कार्यक्रम चर्च के परिसर से बाहर यानी गली-मोहल्लों में नहीं होगा और दूसरा धर्म के नाम पर दान आये पैसे का धर्म के ही अंदर वैमनस्य फैलाने में प्रयोग नहीं होगा|

2) मुस्लिम मस्जिद में इसलिए दान देते हैं क्योंकि उनको पता होता है मस्जिद में गए धन पर हिन्दू धर्म की भांति मात्र 2-4% लोगों का ही अधिपत्य नहीं होगा; बंटेगा तो सब धड़ों में बंटेगा वो भी बराबरी से अन्यथा नहीं| इनको पता होता है कि तुम पर मुज़फरनगर जैसी दंगे वाली स्थिति आएगी तो तुम्हारी मस्जिद-मदरसे अपने धन के भंडारों को तुम्हारी मदद के लिए खोल देंगे| और मुज़फरनगर दंगे के वक्त ऐसा देखा भी गया| इनको पता है कि ईसाईयों की भांति तुम्हारे धन को भी तुम्हारे धर्म को फैलाने, तुम्हारी इतिहास-संस्कृति को सहेजने, धर्म के लोगों पर किसी प्राकृतिक या कृत्रिम आपदा से निबटने व् धर्म के दुश्मनों से निबटने में लगाएंगे| भले ही दुश्मनों से निबटने के लिए यह लोग गोल-बारूद तक चले जाते हैं परन्तु धर्म के अंदर जाट बनाम नॉन-जाट जैसे अखाड़े खड़े करने में प्रयोग नहीं करते| शुक्र है कि मुस्लिम हो या ईसाई, हिंदुओं की भांति इनके अल्लाह व् ईसामसीह, अस्त्र-असला (गदा-तलवार-भाले-फरसे ईत्यादि) हाथों में धार के अपने ही अनुयायिओं पर अतरिक्त प्रेशर वो भी डर-भय वाला बनाने हेतु तो नहीं विरजवाये होते| और धर्म के अंदर करते भी हैं तो कम से कम इस तरह तो कतई नहीं कि समाज की एक जाति एक तरफ और बाकी सब एक तरफ| सिया-सुन्नी धड़े हैं इनके यहां, परन्तु बराबरी की संख्या में और आपस में विचारधारा के मतभेद पे| जाट बनाम नॉन-जाट वालों की भांति किसी के गौरव-स्वाभिमान को तोड़ने-झुकाने की भांति नहीं|

प्रेमचंद ने लिखा था - " यह बिलकुल गलत है, कि इसलाम तलवार के बल से फैला. तलवार के बल से कोई धर्म नहीं फैलता,और कुछ दिनों के लिए फ़ैल भी जाय ,तो चिरजीवी नहीं हो सकता. भारत में इस्लाम के फैलने का कारण , ऊंची जातवाले हिन्दुओं का नीची जातियों पर अत्याचार था. बौद्धों ने ऊंच नीच का ,भेद मिटाकर नीचों के उद्धार का प्रयास किया ,और इसमें उन्हें अच्छी सफलता मिली, लेकिन जब हिन्दू धर्म ने फिर ज़ोर पकड़ा ,तो नीची जातियों पर फिर वही पुराना अत्याचार शुरू हुआ ,बल्कि और जोरों के साथ. ऊंचों ने नीचों से उनके विद्रोह का बदला लेने की ठानी . ...यह खींच-तान हो ही रही थी कि इसलाम ने नए सिद्धांतों के साथ पदार्पण किया .वहां उंच-नीच का भेद न था .छोटे-बड़े ,उंच-नीच की कैद न .थी ....इसलिए नीचों ने इस नए धर्म का बड़े हर्ष से स्वागत किया,और गाँव केगाँव मुसलमान हो गए. जहाँ वर्गीय हिन्दुओं का अत्याचार जितना ही ज्यादा था, वहां यह विरोधाग्नि भी उतनी ही प्रचंड थी,और वहीं इसलाम की तबलीग भी खूब हुयी ...यह है इसलाम के फैलने का इतिहास, और आज भी वर्गीय हिन्दू अपने पुराने संस्कारों को नहीं बदल सके हैं......तो इसलाम तलवार के बल से नहीं ,बल्कि अपने धर्म-तत्वों की व्यापकता के बल से फैला."---प्रेमचंद( नवम्बर 1931)

3) सिख धर्म वाले गुरुद्वारों में इसलिए दान देते हैं क्योंकि उनको पता होता है कि तुम्हारा दान गरीब-मजलिस को खिलाने में प्रयोग किया जायेगा| तुम्हारे इतिहास व् इतिहास पुरुषों की गौरवगाथा के बखानों में प्रयोग किया जायेगा| धड़े इनके यहां भी हैं परन्तु हिन्दू धर्म की भांति हर धड़े को एक ही बिरादरी वाला हेड नहीं करता| उस धड़े को उसी समुदाय वाला हेड करता है और अपने हिस्से के दान के पैसे को अपनी निगरानी में बरतवाता है|

4) बुद्ध धर्म, अपने धर्म के अंदर शांति और एकलास रखने वाला सबसे बुद्धिजीवी धर्म| इस धर्म के दान और अध्यात्म की ताकत का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि जापान जैसे सबसे अगड़ी श्रेणी की टेक्नोलॉजी इंनोवट करने वाले देश इस धर्म के अनुयायी हैं|

5) ऐसे ही कई सारे अन्य धर्म, जैसे कि जैन इत्यादि जो अपने धर्म के अंदर कभी भी इतने व्यापक स्तर का जातिवाद और वर्णवाद नहीं होने देते, जितना कि हिन्दू धर्म में है|

6) हिन्दू धर्म वाले कहते मिलेंगे अजी हम तो बड़े ही शांतिप्रिय धर्म हैं, आज तक का हमारा इतिहास उठाकर देख लीजिये, हमने किसी पे हमला नहीं किया, विदेशों में लूटपाट करने नहीं गए| इसकी वजह इन्हीं की थ्योरी में है| और वो है कि आपने दूसरों की तरह अपने धर्म के अंदर एकलास जो बना के नहीं रखा? जब आपने धर्म के अंदर ही जातिवाद और वर्णवाद बना के खड़ा कर दिया तो आपको इसकी फुर्सत कहाँ से मिलेगी कि आप किसी बाहर वाले पे आक्रमण करें? आप तो अपने धर्म के अंदर ही कभी दलितों पर, कभी पिछड़ों पर आक्रमण करते रहे हैं| जो धर्म के अंदर काबू का नहीं होता जैसे कि जाट, उनके खिलाफ साजिशें, षड्यन्त्र रचते रहे हैं| आपको इनसे फुर्सत ही कब मिली जो आप धर्म के बाहर जा कर हमले या लूटपाट करने की सोचते भी? बल्कि धर्म के अंदर इन चीजों में उलझे रहे, इसीलिए तो विदेशी आ के आपकी 1100 साल तक बैंड बजाये हैं| और इस 1100 साल के लम्बे इतिहास से सीख भी कुछ नहीं ली, वही ढाक के तीन पात, चौथा होने को ना जाने को| बाजी-बाजी 68 साल की आज़ादी हुई नहीं कि खोल दिए वही धर्म के अंदर ही कांट-छांट के अखाड़े जिनके चलते उस वक्त गुलाम हुए थे| सबसे बड़ा उदाहरण जाट बनाम नॉन-जाट का अखाडा सबके सामने है|

उद्घोषणा: मैं इसी विषय पर खुली बहस चाहता हूँ| इस विषय के इर्दगिर्द तमाम तथ्य सुनना और सीखना चाहता हूँ| हो सकता है कि इन तथ्यों को रखते हुए मैं गलत भी होऊं| परन्तु मैं बहुत ही सीरियस हूँ इस मुद्दे को लेकर, क्योंकि धर्म के नाम पर मेरे से (जाट से) ही पैसा लेकर मेरे ही खिलाफ जाट बनाम नॉन-जाट रचते हैं| मेरे को जाट बनाम नॉन-जाट का अखाडा कोई मुस्लिम आतंकवादी आ के नहीं थमा गया, या कोई ईसाई आ के नहीं मुझे इस घिनौनी बाँटने और काटने के षड्यन्त्र में डाल गया अपितु मेरे ही धर्म का होने के दावे करने वालों वालों ने मुझे इसमें डाला है| जिसमें कि अगर मैं नहीं पड़ा होता तो गणतांत्रिक खाप थ्योरी के मेरे अपने "जाट-पुरख" सिद्धांत में शांति और सम्मान से जी रहा होता| इसलिए मैं चाहता हूँ कि मैं उस जड़ को ही खत्म कर दूँ, उस परम्परा को ही खत्म कर दूँ जिसको कहते हैं कि "दिए हुए दान का हिसाब नहीं माँगा जाया करता!" या कहते हैं ही "गुप्तदान, सर्वोत्तम दान!" हाँ, भाई सर्वोत्तम बोल के एक झटके में हिसाब देने से जो पिंड छूट जाता है, तो सर्वोत्तम तो अपने आप ही होगा|

मैं चाहता हूँ कि अब यह सिस्टम जो दान तो लेता है, परन्तु हिसाब नहीं देता; लदवाना होगा| जो दान लेता है और सिर्फ 2-4% बिरादरी वाले एक समुदाय के आधिपत्य में ही जमा हो के रह जाता है, फिर वो उसको जाट बनाम नॉन-जाट रचने में लगाएं, दलित उत्पीड़न में लगाएं या जहां मर्जी लगाएं, कोई पूछने वाला ही नहीं|
इसलिए इस पोस्ट पर और इसके मर्म को ना समझते हुए सिर्फ गाली गलोच करके ना जावें, कोई तर्क-वितर्क की बात हो तो रख के जावें| वरना आपकी गाली, आपका गुस्सा आपके सर-माथे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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