भक्ति बिना ढिंढोरे की:
ताऊ देवीलाल और लालू प्रसाद यादव ने दिल्ली स्थित अपने एम.पी. आवासों पर भी 3-3, 4-4 गायें रखी।
अंधभक्ति खाली छिछोरेपन की:
1) ताऊ देवीलाल और लालू यादव द्वारा गाय पालने पर यही अंधभक्तों के आका बिरादरी नाक-भों सिकोड़ के ताने दिया करती थी कि इनके एम.पी. निवासों पर तो गोबर की बदबू फैली रहती है।
2) गौभक्तों के सफेदपोश एम.पी. तो छोडो, उनकी तो बात ही क्या करनी; क्या जो भगमापोश गंगा किस सफाई तक का मंत्रालय सम्भालने वाली उमा भारती, बात-बात पर कभी पाकिस्तान भेजने की बात करने वाले, कभी मुल्लों के जितने बच्चे पैदा करने वाले साक्षी महाराज, साध्वी प्राची, योगीनाथ इत्यादि क्या इन तक के भी एम.पी. आवासों पर है एक बछिया भी बंधी?
इसीलिए हरयाणा में और खासकर जाटों के यहां इन बड़बोलों का एक ही इलाज होता आया है और वो है लठ। पहुंचे हुए जाट अच्छे से जानते हैं कि यह सिर्फ बातों के भूत हैं, जिनका इलाज सिर्फ लठ है। और जो पहुँचे हुए नहीं होने की नौटंकी करते हैं वो इन बहरूपियों के यहां पानी भरते हैं और अपनी दुर्गति के साथ-साथ समाज का बंटाधार किये रहते हैं।
सबसे बड़ा अवरोध है यह भारतीय समाज की तरक्की का। एक इकलौते यही हैं बस जो धर्म के नाम पे लोगों को अपना बताते हैं (हिन्दू) और उन से धर्म के नाम पे जो पैसा मिलता है उसको इन्हीं हिंदुओं को बाँट के रखने पे बहाते हैं। उदाहरणतः हरयाणा-राजस्थान में जाट बनाम नॉन-जाट, गुजरात में पटेल बनाम नॉन-पटेल, यूपी-बिहार में यादव बनाम नॉन-यादव।
क्या कभी देखा है ईसाई, बुद्ध या मुस्लिम धर्म के धर्मगुरुवों को धर्म के नाम पे लिए पैसे को अपने ही अनुयायियों में चीर-फाड़ मचाने हेतु इस वाहियात तरीके से प्रयोग करने में जैसे यह हिन्दू वाले करते हैं? कोई ईसाई-बुद्ध-सिख-मुस्लिम धर्म के नाम पर दान देता है तो उसको पता होता है कि उसका धन उसकी संस्कृति-इतिहास-मान-सम्मान के संवर्धन में लगाया जायेगा। परन्तु यह हिंदुत्व के नाम पर खाने वाले, इनका सबको पता है कि तुम्हारी ही ऐसी-तैसी करने में यह इस पैसे को प्रयोग करेंगे और फिर भी फद्दू बनके इनको चढ़ाते रहते हैं।
मेरे ख्याल से इससे बड़े उदाहरण नहीं हो सकते, पर फिर भी लगता है कि लोगों को इस अंधभक्ति नामक गुलामी की जंजीरों प्यार हो चला है। लोगों को समझना होगा कि अंग्रेज-मुग़ल काल के अलावा एक गुलामी से छुटकारा पाना और बचा है और उसका नाम है यह अंधभक्ति और इसके रचियता।
विशेष: अब कृपया करके मुझे कोई यह कहते हुए मत आना कि तुम हिंदुत्व के पीछे पड़े रहते हो, कभी मुल्लों पर क्यों नहीं लिखते। तो ऐसे लोगों को बता दूँ ही यूनियनिस्ट मिशन में हर धर्म का सदस्य है और अपने धर्म की बुराईयों पर रोशनी डालने का काम हमारे यहां उस धर्म से सम्बन्धित सदस्य का है। इस मामले में हम अपने घर की सफाई पहले और पड़ोसी की बाद में वाले सिद्धांत के अनुसार चलते हैं। हमारे मिशन के मुस्लिम सदस्य उनके धर्म के यहां की बुराईयों पर पटाक्षेप करते रहते हैं। परन्तु कोई भी दूसरे के धर्म में घुस के उनके यहां का गन्द नहीं देखता, यह उस धर्म वाले का घर है; अतः उसकी जिम्मेदारी है कि वो ही इसका पटाक्षेप करे और यह अच्छे से किया जा रहा है।
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
ताऊ देवीलाल और लालू प्रसाद यादव ने दिल्ली स्थित अपने एम.पी. आवासों पर भी 3-3, 4-4 गायें रखी।
अंधभक्ति खाली छिछोरेपन की:
1) ताऊ देवीलाल और लालू यादव द्वारा गाय पालने पर यही अंधभक्तों के आका बिरादरी नाक-भों सिकोड़ के ताने दिया करती थी कि इनके एम.पी. निवासों पर तो गोबर की बदबू फैली रहती है।
2) गौभक्तों के सफेदपोश एम.पी. तो छोडो, उनकी तो बात ही क्या करनी; क्या जो भगमापोश गंगा किस सफाई तक का मंत्रालय सम्भालने वाली उमा भारती, बात-बात पर कभी पाकिस्तान भेजने की बात करने वाले, कभी मुल्लों के जितने बच्चे पैदा करने वाले साक्षी महाराज, साध्वी प्राची, योगीनाथ इत्यादि क्या इन तक के भी एम.पी. आवासों पर है एक बछिया भी बंधी?
इसीलिए हरयाणा में और खासकर जाटों के यहां इन बड़बोलों का एक ही इलाज होता आया है और वो है लठ। पहुंचे हुए जाट अच्छे से जानते हैं कि यह सिर्फ बातों के भूत हैं, जिनका इलाज सिर्फ लठ है। और जो पहुँचे हुए नहीं होने की नौटंकी करते हैं वो इन बहरूपियों के यहां पानी भरते हैं और अपनी दुर्गति के साथ-साथ समाज का बंटाधार किये रहते हैं।
सबसे बड़ा अवरोध है यह भारतीय समाज की तरक्की का। एक इकलौते यही हैं बस जो धर्म के नाम पे लोगों को अपना बताते हैं (हिन्दू) और उन से धर्म के नाम पे जो पैसा मिलता है उसको इन्हीं हिंदुओं को बाँट के रखने पे बहाते हैं। उदाहरणतः हरयाणा-राजस्थान में जाट बनाम नॉन-जाट, गुजरात में पटेल बनाम नॉन-पटेल, यूपी-बिहार में यादव बनाम नॉन-यादव।
क्या कभी देखा है ईसाई, बुद्ध या मुस्लिम धर्म के धर्मगुरुवों को धर्म के नाम पे लिए पैसे को अपने ही अनुयायियों में चीर-फाड़ मचाने हेतु इस वाहियात तरीके से प्रयोग करने में जैसे यह हिन्दू वाले करते हैं? कोई ईसाई-बुद्ध-सिख-मुस्लिम धर्म के नाम पर दान देता है तो उसको पता होता है कि उसका धन उसकी संस्कृति-इतिहास-मान-सम्मान के संवर्धन में लगाया जायेगा। परन्तु यह हिंदुत्व के नाम पर खाने वाले, इनका सबको पता है कि तुम्हारी ही ऐसी-तैसी करने में यह इस पैसे को प्रयोग करेंगे और फिर भी फद्दू बनके इनको चढ़ाते रहते हैं।
मेरे ख्याल से इससे बड़े उदाहरण नहीं हो सकते, पर फिर भी लगता है कि लोगों को इस अंधभक्ति नामक गुलामी की जंजीरों प्यार हो चला है। लोगों को समझना होगा कि अंग्रेज-मुग़ल काल के अलावा एक गुलामी से छुटकारा पाना और बचा है और उसका नाम है यह अंधभक्ति और इसके रचियता।
विशेष: अब कृपया करके मुझे कोई यह कहते हुए मत आना कि तुम हिंदुत्व के पीछे पड़े रहते हो, कभी मुल्लों पर क्यों नहीं लिखते। तो ऐसे लोगों को बता दूँ ही यूनियनिस्ट मिशन में हर धर्म का सदस्य है और अपने धर्म की बुराईयों पर रोशनी डालने का काम हमारे यहां उस धर्म से सम्बन्धित सदस्य का है। इस मामले में हम अपने घर की सफाई पहले और पड़ोसी की बाद में वाले सिद्धांत के अनुसार चलते हैं। हमारे मिशन के मुस्लिम सदस्य उनके धर्म के यहां की बुराईयों पर पटाक्षेप करते रहते हैं। परन्तु कोई भी दूसरे के धर्म में घुस के उनके यहां का गन्द नहीं देखता, यह उस धर्म वाले का घर है; अतः उसकी जिम्मेदारी है कि वो ही इसका पटाक्षेप करे और यह अच्छे से किया जा रहा है।
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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