1905 से 1910 तक
रोहतक के डीसी रहे मिस्टर ई. जोसफ लिखित "कस्टमरी लॉ ऑफ़ रोहतक" पुस्तक की
रिफरेन्स से "Women and Social Reform in Modern India" किताब के पेज नंबर
147 (कटिंग सलंगित) में Sumit Sarkar, Tanika Sarkar, क्वोट करके सत्यापित
करते हैं कि जाट और मनुवाद दोनों भिन्न विचारधाराएं रही हैं|
उन्नीसवीं सदी के आथ्रोपोलॉजिस्ट लेखक R. C. Temple के बाद E Joseph की यह रिकॉर्डिंग्स पुख्ता करती हैं कि उत्तर भारत यानी जाट बाहुल्य इलाकों में मनुवाद नहीं बल्कि जाटवाद चलता आया है|
और यही वो मुद्दा है जब आज के दिन हरयाणा में मनुवाद को मौका मिला है जाटवाद पर हावी होने का| यह जाट बनाम नॉन-जाट, 35 बनाम 1 इत्यादि कुछ नहीं सिवाय मनुवाद की जाटवाद पर विजय पाने की कोशिशों के|
अत: जाट युवा/युवती खासतौर पर समझें कि जाटलैंड पर मनुवाद नहीं अपितु जाटवाद से सभ्यता चली है| मनुवाद बाकी के भारत में हावी रहा है परन्तु जाट बाहुल्य इलाकों में नहीं|
और यह भी प्रमाणित बात है कि जाटवाद से मनुवाद कहीं ज्यादा गुना तुच्छ सोच, अमानवीय व् मानव सभ्यता का अहितकारी रहा है| इसीलिए जाट को चाहिए कि वह इस मनुवाद से हर सम्भव अपने जाटवाद की रक्षा करे|
जाटवाद एक गणतांत्रिक थ्योरी रही है जबकि मनुवाद एक अधिनायकवाद थ्योरी रही है| दोनों में आइडिओलोजिकली और जेनेटिकली दिन-रात का अंतर है| एक जाट मनुवादी बनने की कोशिश तो कर सकता है, परन्तु उसका जीन उसको ऐसा बनने नहीं देता| इसलिए बेकार की कोशिशें करने और अपने ऊपर किसी और थ्योरी को कॉपी-पेस्ट मारने की व्यर्थ कोशिशों को छोड़ के वही बने रहें जो हैं और उसी का संवर्धन करके उसको और ज्यादा विकसित करें|
मेरी निजी सोध और अनुभव दोनों यह सत्यापित करते हैं कि मनुवाद को भारत से बाहर किसी भी थ्योरी से तुलना तक में भी नहीं रख सकते, जबकि जाटवाद का खाप सिस्टम डेवलप्ड देशों के सोशल जूरी जस्टिस सिस्टम का रॉ रूप है, जाटों की फोर्ट्रेस रुपी चौपालें डेवलप्ड कन्ट्रीज के सेंट्रल हॉल्स, सिटी हॉल्स के समान्तर रखी जा सकती हैं| जाटों का एक ही गौत में विवाह ना करने की परम्परा, यूरोप के कई देशो में पाई जाने वाली इसी प्रकार की व्यवस्था के समांतर बैठती है| जाटों के यहां नौकर-मालिक की जगह सीरी-साझी का कांसेप्ट होना, गूगल जैसी कंपनी के वर्किंग कल्चर के समान्तर बैठता है|
इसीलिए अपने पुरखों के इस पहले से ही ग्लोबल सोच के कल्चर को दुत्कारें नहीं, छोड़ें नहीं अपितु इसको सुधारें और विकसित करके आगे बढ़ाएं| अगर जाटवाद को थोड़े-बहुत मूलभूत सुधारों के साथ अमेंड करके लागू किया जाए तो यही वो थ्योरी है जो भारत कहो या खासकर जाटलैंड के सोशल स्टेटस को वर्ल्डक्लास का बना सकती है| जबकि मनुवाद कोरा मानवता का दुश्मन, इंसान को इंसान से भिड़ाने वाला, उसमें ऊंच-नीचता की मानसिकता भरने वाला तन्त्र है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
Source: https://books.google.fr/books?id=GEPYbuzOwcQC&pg=PA160&lpg=PA160&dq=E+joseph+dc+rohtak&source=bl&ots=MeeUj_j7kv&sig=VbFhpfLq3f7TCp2cNL41FFa1DSA&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwjizaul_6LOAhXJthoKHdIaB_0Q6AEIHDAA#v=onepage&q&f=false
उन्नीसवीं सदी के आथ्रोपोलॉजिस्ट लेखक R. C. Temple के बाद E Joseph की यह रिकॉर्डिंग्स पुख्ता करती हैं कि उत्तर भारत यानी जाट बाहुल्य इलाकों में मनुवाद नहीं बल्कि जाटवाद चलता आया है|
और यही वो मुद्दा है जब आज के दिन हरयाणा में मनुवाद को मौका मिला है जाटवाद पर हावी होने का| यह जाट बनाम नॉन-जाट, 35 बनाम 1 इत्यादि कुछ नहीं सिवाय मनुवाद की जाटवाद पर विजय पाने की कोशिशों के|
अत: जाट युवा/युवती खासतौर पर समझें कि जाटलैंड पर मनुवाद नहीं अपितु जाटवाद से सभ्यता चली है| मनुवाद बाकी के भारत में हावी रहा है परन्तु जाट बाहुल्य इलाकों में नहीं|
और यह भी प्रमाणित बात है कि जाटवाद से मनुवाद कहीं ज्यादा गुना तुच्छ सोच, अमानवीय व् मानव सभ्यता का अहितकारी रहा है| इसीलिए जाट को चाहिए कि वह इस मनुवाद से हर सम्भव अपने जाटवाद की रक्षा करे|
जाटवाद एक गणतांत्रिक थ्योरी रही है जबकि मनुवाद एक अधिनायकवाद थ्योरी रही है| दोनों में आइडिओलोजिकली और जेनेटिकली दिन-रात का अंतर है| एक जाट मनुवादी बनने की कोशिश तो कर सकता है, परन्तु उसका जीन उसको ऐसा बनने नहीं देता| इसलिए बेकार की कोशिशें करने और अपने ऊपर किसी और थ्योरी को कॉपी-पेस्ट मारने की व्यर्थ कोशिशों को छोड़ के वही बने रहें जो हैं और उसी का संवर्धन करके उसको और ज्यादा विकसित करें|
मेरी निजी सोध और अनुभव दोनों यह सत्यापित करते हैं कि मनुवाद को भारत से बाहर किसी भी थ्योरी से तुलना तक में भी नहीं रख सकते, जबकि जाटवाद का खाप सिस्टम डेवलप्ड देशों के सोशल जूरी जस्टिस सिस्टम का रॉ रूप है, जाटों की फोर्ट्रेस रुपी चौपालें डेवलप्ड कन्ट्रीज के सेंट्रल हॉल्स, सिटी हॉल्स के समान्तर रखी जा सकती हैं| जाटों का एक ही गौत में विवाह ना करने की परम्परा, यूरोप के कई देशो में पाई जाने वाली इसी प्रकार की व्यवस्था के समांतर बैठती है| जाटों के यहां नौकर-मालिक की जगह सीरी-साझी का कांसेप्ट होना, गूगल जैसी कंपनी के वर्किंग कल्चर के समान्तर बैठता है|
इसीलिए अपने पुरखों के इस पहले से ही ग्लोबल सोच के कल्चर को दुत्कारें नहीं, छोड़ें नहीं अपितु इसको सुधारें और विकसित करके आगे बढ़ाएं| अगर जाटवाद को थोड़े-बहुत मूलभूत सुधारों के साथ अमेंड करके लागू किया जाए तो यही वो थ्योरी है जो भारत कहो या खासकर जाटलैंड के सोशल स्टेटस को वर्ल्डक्लास का बना सकती है| जबकि मनुवाद कोरा मानवता का दुश्मन, इंसान को इंसान से भिड़ाने वाला, उसमें ऊंच-नीचता की मानसिकता भरने वाला तन्त्र है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
Source: https://books.google.fr/books?id=GEPYbuzOwcQC&pg=PA160&lpg=PA160&dq=E+joseph+dc+rohtak&source=bl&ots=MeeUj_j7kv&sig=VbFhpfLq3f7TCp2cNL41FFa1DSA&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwjizaul_6LOAhXJthoKHdIaB_0Q6AEIHDAA#v=onepage&q&f=false
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