मौका था भारत के लिए दो जाट गर्ल्स (साक्षी मलिक व् पीवी सिंधु) द्वारा
रियो ओलिंपिक में मेडल्स जीतने पर, आदत से मजबूर और अपनी संकीर्ण सोच से
ग्रस्त दैनिक जागरण अख़बार द्वारा ऐसे मौके पर खुलकर खाप या जाट समाज को
बधाई देने की बजाये, उनके बारे ऐसे मौके पर भी भद्दा लिखना|
भाई किसी ने धक्का किया था क्या आपके साथ, या कोई मजबूरी थी जो तुम सिर्फ "देश की बेटीयों ने देश का गौरव ऊँचा किया" जैसे शीर्षक से जाति-पन्थ रहित शुद्ध बधाईयों की खबर निकाल देते तो? और फिर भी जाट और खाप इसमें भी घुसेड़ने ही लगे थे तो कम-से-कम इस मौके पर तो थोड़ा बड़ा दिल करके शालीनता बरतते हुए बधाई दे देते?
या तुमने यह सोच लिया है कि "सिंह ना सांड, और गादड़ गए हांड!" की भांति खुले चरोगे? चर लिए अब जितने दिन चरने थे, समझ आ गया है स्थानीय हरयाणवी को कि दलीलों-अपीलों से तुम नहीं मानने वाले; इसीलिए आज जो हरयाणा के युवकों ने इस फोटो में तुम्हारे दफ्तर के आगे तुम्हारे अख़बार की प्रतियां जला के यह जो विरोध प्रदर्शन किया, बहुत अच्छा किया|
हरयाणवी युवक को इस जागरूकता के लिए बधाई| बस अब बहुत हुआ, इनको यही भाषा समझ आती है| जिस मित्र ने यह फोटो भेजी वो बता रहा था कि "भाई, पूरा ऑफिस का स्टाफ थर्र-थर्र काँप रहा था|"
मैंने कहा किसी को असली हरयाणवी टशन में तो नहीं लपेट आये? तो बोला नहीं भाई जी, सब कुछ पूरा लीगल वे में करके आये हैं| अबकी बार तो सिर्फ शांतिपूर्ण विरोध जता के आये हैं, अगली बार बाज नहीं आये तो लीगल नोटिस थमा के आएंगे और पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाएंगे इनकी|
और मखा किसी को भाषावाद और क्षेत्रवाद की तो घुड़की नहीं खिला दी? बोला नहीं भाई जी, हम हरयाणवी हैं, मुम्बईया नहीं; हमें उतने तक पहुँचने की नौबत नहीं आएगी| बस आज एक ज्ञान और रौशनी जरूर मिली कि अगर हर हरयाणवी आज की तरह इनके दफ्तरों के आगे प्रदर्शन भर भी कर आये तो इतने में यह ठीक रहें| मखा भाई, चलो देखते हैं कितना असर होता है इनपे, इसका|
विशेष: एक ऐसा ही प्रदर्शन रोहतक सिटी में भी हो जाए तो इनको आँखें हो जाएँ|
Thanks dear Nitin Seharawat
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
भाई किसी ने धक्का किया था क्या आपके साथ, या कोई मजबूरी थी जो तुम सिर्फ "देश की बेटीयों ने देश का गौरव ऊँचा किया" जैसे शीर्षक से जाति-पन्थ रहित शुद्ध बधाईयों की खबर निकाल देते तो? और फिर भी जाट और खाप इसमें भी घुसेड़ने ही लगे थे तो कम-से-कम इस मौके पर तो थोड़ा बड़ा दिल करके शालीनता बरतते हुए बधाई दे देते?
या तुमने यह सोच लिया है कि "सिंह ना सांड, और गादड़ गए हांड!" की भांति खुले चरोगे? चर लिए अब जितने दिन चरने थे, समझ आ गया है स्थानीय हरयाणवी को कि दलीलों-अपीलों से तुम नहीं मानने वाले; इसीलिए आज जो हरयाणा के युवकों ने इस फोटो में तुम्हारे दफ्तर के आगे तुम्हारे अख़बार की प्रतियां जला के यह जो विरोध प्रदर्शन किया, बहुत अच्छा किया|
हरयाणवी युवक को इस जागरूकता के लिए बधाई| बस अब बहुत हुआ, इनको यही भाषा समझ आती है| जिस मित्र ने यह फोटो भेजी वो बता रहा था कि "भाई, पूरा ऑफिस का स्टाफ थर्र-थर्र काँप रहा था|"
मैंने कहा किसी को असली हरयाणवी टशन में तो नहीं लपेट आये? तो बोला नहीं भाई जी, सब कुछ पूरा लीगल वे में करके आये हैं| अबकी बार तो सिर्फ शांतिपूर्ण विरोध जता के आये हैं, अगली बार बाज नहीं आये तो लीगल नोटिस थमा के आएंगे और पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाएंगे इनकी|
और मखा किसी को भाषावाद और क्षेत्रवाद की तो घुड़की नहीं खिला दी? बोला नहीं भाई जी, हम हरयाणवी हैं, मुम्बईया नहीं; हमें उतने तक पहुँचने की नौबत नहीं आएगी| बस आज एक ज्ञान और रौशनी जरूर मिली कि अगर हर हरयाणवी आज की तरह इनके दफ्तरों के आगे प्रदर्शन भर भी कर आये तो इतने में यह ठीक रहें| मखा भाई, चलो देखते हैं कितना असर होता है इनपे, इसका|
विशेष: एक ऐसा ही प्रदर्शन रोहतक सिटी में भी हो जाए तो इनको आँखें हो जाएँ|
Thanks dear Nitin Seharawat
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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