आरएसएस की कथनी और करनी में कितना अंतर और विरोधाभाष है, आरएसएस प्रमुख के लन्दन में दिए इन बयानों से सहजता से ही दिख जाता है:
1) यह खुद कह रहे हैं कि हिन्दू कोई धर्म नहीं, तो आशा करता हूँ कि आज के बाद जब मैं कहूँ कि हिन्दू कोई धर्म है ही नहीं तो कोई मेरी बात का बुरा नहीं मानेगा; या मानना है तो आरएसएस प्रमुख वाली का बुरा मानने से शुरुवात की जाए|
2) आरएसएस अब उस कदम तक आ गई है जहां इनके एजेंडे में "हिन्दू धर्म" शब्द को शुद्ध ब्राह्मण धर्म यानी "सनातन धर्म" से स्थानांतरित करना निर्धारित है|
3) मेरे ख्याल से आर्य-समाजी लोग तो सनातन धर्म के धुर-विपरीत हैं, क्योंकि सनातन मूर्ती पूजा करता है और आर्य समाज मूर्ती पूजा को नहीं मानता|
4) सनातनी और आर्य-समाजी दोनों को जो शब्द ढंके हुए था, वो था हिन्दू शब्द; जिससे आज आरएसएस प्रमुख ने ही खुद को अलग कर लिया है और हिन्दू शब्द को धर्म ना मानते हुए पद्दति बता दिया है|
5) जाट जैसा समाज जो कि मूर्ती-पूजा विहीन अपने पुरखों की शुद्ध दादा खेड़ा परम्परा पर चलता आया है, जिसको कि "जाटू सभ्यता" कहा जाता है, इससे उसका भी मार्ग अब प्रसस्त होता है|
महृषि दयानंद ने जाटों के दादा खेडों से ही जाट के मूर्ती पूजा नहीं करने के स्वभाव का पता लगाया था और उसको अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश का आधार बनाया था| यह बात वह नादान जरा गम्भीरता से जान लें, जो कहते हैं कि महर्षि दयानंद ने जाट या पूरे समाज को पाखण्डों से निकाला या बचाया| नहीं, बल्कि सच्चाई यह है कि उन्होंने जाट समाज से यह सिद्धांत उठाये और सत्यार्थ प्रकाश लिखा| इस पुस्तक में उन द्वारा "जाट जी" और "पांडा जी" का एकांकी उदाहरण रखना, जाट के यहां इन मान्यताओं का उन द्वारा "आर्य-समाज" स्थापित करने से पहले से होना और इसी से प्रभावित होकर एक ब्राह्मण महर्षि दयानंद द्वारा "जाट जी" कह के जाट की महानता की स्तुति करना; इस बात का साक्षी है कि जाट को महर्षि दयानंद ने नहीं जगाया था अपितु जाट के यहां की यह चीजें देख के उनको जाग्रति आई|
इसीलिए मुझे गर्व है कि भारतीय समाज में जाट ही एक ऐसी कौम रही है जिसको समझदार ब्राह्मणों ने "जी" लगा के मान दिया| अत: जाट अपने इस उच्च स्थान को समझें, और ब्राह्मण के मूर्ती पूजा आधारित इनके ब्राह्मण धर्म उर्फ़ सनातन धर्म के समान्तर युग-युगांतर से स्थापित "जाट-पुरख" धर्म पर चलते रहें| हाँ, हमें जाट-पुरख धर्म का आदर करवाना है इसलिए ब्राह्मण के सनातन धर्म का आदर करते हुए चलना सबसे उत्तम मार्ग है| वो हमारी मान्यताओं का आदर करें और हम उन्कियों का करें|
इन सबसे एक बात और स्थापित होती है कि यूनियनिस्ट मिशन जिस "जाट-पुरख" धर्म की राही अख्तियार किये हुए है, वह बिलकुल सही है| हिन्दू नाम का कोई धर्म ही नहीं यह खुद आरएसएस प्रमुख के मुख से अब सत्यापित हो चुका है| इसलिए इस शब्द को सिर्फ एक परम्परा के तहत ही देखा जाए और ब्राह्मण अपना सनातन धर्म धारे ही हुए है, दलित लगभग बुद्ध हो चुके हैं, जाट भी अपने "दादा खेड़ा" उर्फ़ "जाट पुरख" धर्म जिसपर कि महर्षि दयानंद का "सत्यार्थ प्रकाश" यानि "आर्य समाज" कांसेप्ट भी आधारित है, उन मूल जड़ों की और वापसी करें| कम से कम हर यूनियनिस्ट तो अब इसी राह पर अग्रसर है|
विशेष: यह विचार मेरे निजी हैं, मेरे विश्वास से कहे हैं; क्योंकि यूनियनिस्ट हूँ, युनियनिस्टों से मिलके काम करता हूँ तो इतना विश्वास से कह सकता हूँ कि यूनियनिस्ट इसी राह पर अग्रसर हैं| फिर भी किसी यूनियनिस्ट के इस पर विभिन्न मत होवें तो उनका स्वागत करूँगा और जानना भी चाहूंगा|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
News Source: महज एक परंपरा ही है हिंदुत्व, कोई धर्म नहीं: भागवत
http://www.24hindinews.com/hinduism-is-only-a-tradition-no-religion-bhagwat/
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