आज से डेड-दो दशक पहले जाटों के यहां हर दूसरे ब्याह में जाट आर्य-समाजी
फेरे करवाता था| जाटों की यह उन्मुक्तता, स्वच्छदंता और आज़ाद कौम होने का
भाव देख के ब्राह्मण भी कहते थे कि एक इकलौते यह जाट ही हिम्मतदार हैं जो
हमको काटने का दम्भ रखते हैं, वरना राजपूत तक हमारे आगे दुम हिलाते हैं और
सारे ब्याहों के फेरे हमसे ही करवाते हैं|
यह पहलु जाट कौम के उन स्वर्णिम अध्यायों के पहलुओं में से एक अग्रणी पहलु है जिसके आधार पर E. Joseph (Rohtak DC 1905-1912) और R.C. Temple (1826-1902) जैसे Anthropologists (मानव विज्ञानियों) ने कहा था कि पूरे भारत में सिर्फ एक ब्राह्मण थ्योरी से समाज चलता है परन्तु जाट-बाहुल्य इलाके यानि जाटलैंड ऐसे क्षेत्र हैं जहां भारतीय समाज जाटिस्म की थ्योरियों से चलता है|
जाटों ने आज इतनी तरक्की कर ली है कि पूरे देश में इस तरह की इकलौती कौम होने का दम्भ खोती जा रही है, और अब हर दूसरे तो क्या तीसरे-चौथे-पांचवें-दसवें ब्याह तक में जा के कोई जाट आर्य समाजी फेरे करवाते हुए दीखता है|
और यही वो गुलामी और निर्भरता है जिसकी ओर जाट को धकेलने के लिए जाट बनाम नॉन-जाट, 35 बनाम 1 जैसे षडयन्त्रों के जरिये जाट की स्वच्छन्द छवि कुंद की जा रही है| इसमें ताज्जुब और दुर्भाग्य की बात तो यह है कि बहुत से जाट तो अपने ही पुरखों और बुजुर्गों की इस कालजयी अमर हैसियत को स्वीकारने तक को तैयार नहीं और उनको ऐसे सुनहरे कौम के अभिमान को याद भी दिलाओ तो काटने को दौड़ते हैं| अंधभक्त बने जाट तो इतने सठियाये और पठाये हुए बना दिए गए हैं कि उनको इन बातों में हिन्दू धर्म को तोड़ना नजर आता है, यहां तक कि ऐसी बातें करने वाले मेरे जैसे को पलक झपकते ही पाकिस्तानी तक बताने लग जाते हैं|
किसी विरले जाट को ही कौम पे मंडरा रहे इस आइडेंटिटी क्राइसिस का भान है, वरना जिसको देखो भंडेलों की भांति अपनों की ही टांग खींचने, पर कुतरने में मशगूल है| वाकई में जाट कौम बहुत बड़े आध्यात्मिक व् सामाजिक आइडेंटिटी क्राइसिस से गुजर रही है|
और जब तक इस भंडेलेपन से बाज नहीं आएंगे, इसको त्याग खुद से पहले कौम को ऊपर रख के नहीं सोचेंगे, यूँ ही बेवजह सॉफ्ट टारगेट बने रहेंगे| और मेरे जैसे जागृति फैलाने वाले यूँ ही गालियां खाएंगे| परन्तु गाली खाने से कहीं ज्यादा पवित्र कार्य है कौम को उसकी हैसियत और गौरवशाली विरासत से अवगत करवाते रहना| कहीं ना कहीं कभी ना कभी तो चौं फूटेगी कौम में अपने आप को फिर से पहचानने की|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
यह पहलु जाट कौम के उन स्वर्णिम अध्यायों के पहलुओं में से एक अग्रणी पहलु है जिसके आधार पर E. Joseph (Rohtak DC 1905-1912) और R.C. Temple (1826-1902) जैसे Anthropologists (मानव विज्ञानियों) ने कहा था कि पूरे भारत में सिर्फ एक ब्राह्मण थ्योरी से समाज चलता है परन्तु जाट-बाहुल्य इलाके यानि जाटलैंड ऐसे क्षेत्र हैं जहां भारतीय समाज जाटिस्म की थ्योरियों से चलता है|
जाटों ने आज इतनी तरक्की कर ली है कि पूरे देश में इस तरह की इकलौती कौम होने का दम्भ खोती जा रही है, और अब हर दूसरे तो क्या तीसरे-चौथे-पांचवें-दसवें ब्याह तक में जा के कोई जाट आर्य समाजी फेरे करवाते हुए दीखता है|
और यही वो गुलामी और निर्भरता है जिसकी ओर जाट को धकेलने के लिए जाट बनाम नॉन-जाट, 35 बनाम 1 जैसे षडयन्त्रों के जरिये जाट की स्वच्छन्द छवि कुंद की जा रही है| इसमें ताज्जुब और दुर्भाग्य की बात तो यह है कि बहुत से जाट तो अपने ही पुरखों और बुजुर्गों की इस कालजयी अमर हैसियत को स्वीकारने तक को तैयार नहीं और उनको ऐसे सुनहरे कौम के अभिमान को याद भी दिलाओ तो काटने को दौड़ते हैं| अंधभक्त बने जाट तो इतने सठियाये और पठाये हुए बना दिए गए हैं कि उनको इन बातों में हिन्दू धर्म को तोड़ना नजर आता है, यहां तक कि ऐसी बातें करने वाले मेरे जैसे को पलक झपकते ही पाकिस्तानी तक बताने लग जाते हैं|
किसी विरले जाट को ही कौम पे मंडरा रहे इस आइडेंटिटी क्राइसिस का भान है, वरना जिसको देखो भंडेलों की भांति अपनों की ही टांग खींचने, पर कुतरने में मशगूल है| वाकई में जाट कौम बहुत बड़े आध्यात्मिक व् सामाजिक आइडेंटिटी क्राइसिस से गुजर रही है|
और जब तक इस भंडेलेपन से बाज नहीं आएंगे, इसको त्याग खुद से पहले कौम को ऊपर रख के नहीं सोचेंगे, यूँ ही बेवजह सॉफ्ट टारगेट बने रहेंगे| और मेरे जैसे जागृति फैलाने वाले यूँ ही गालियां खाएंगे| परन्तु गाली खाने से कहीं ज्यादा पवित्र कार्य है कौम को उसकी हैसियत और गौरवशाली विरासत से अवगत करवाते रहना| कहीं ना कहीं कभी ना कभी तो चौं फूटेगी कौम में अपने आप को फिर से पहचानने की|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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