Tuesday, 6 September 2016

असली लड़ाई कब शुरू होगी?

1) तब तक नहीं होगी जब तक तुम मंडी-फंडी की आलोचना मात्र में उलझे रहोगे।
2) तब भी नहीं होगी जब तक इनके द्वारा घड़े गए झूठे व् काल्पनिक चरित्रों/आदर्शों का मजाक बनाते रहोगे।

बल्कि
1) तब होगी जब अपने वालों को गले लगाना व् गाना या प्रमोट करना शुरू करोगे।
2) तब होगी जब इनसे विमुख हो के अपनी सामाजिक थ्योरी को उठाओगे।
3) तब होगी जब अपने पुरखों की सोशल इंजीनियरिंग पर कार्य करना शुरू करोगे।

तब यह लोग जब आप द्वारा चुपचाप बिना इनकी आलोचना में उलझे भी अपनों पे और अपनी सभ्यता पे कार्य करने लगोगे; तो बन्दर की भाँति आपका सर खुजाने या आपको छेड़ने आएंगे।

इसलिए असली लड़ाई तो अभी प्रारंभ का आगाज ही ढूंढ रही है। और आगाज यही है कि अपनों (महापुरुषों-हुतात्माओं-यौद्धेयों) को गले लगाना, उनके कार्य-बलिदान को पहचानना व् मान देना शुरू करो। जैसे अपने घर की बुरी बात, घर का बुरा मानस घर में ही खपा लिया जाता है ऐसे ही अपने कौमी-नेताओं की बुराईयों को उसी स्तर तक उघाड़ो जिससे कौम रुपी घर भी बना रहे और घर में उसकी बुराई हावी भी ना हो।

जब आगाज करो तो इतिहास के इस अध्याय को जरूर आगे रखना कि जब इतिहास में आपके पुरखे बुद्ध-भिक्षु बनके चुपचाप शांति से मठों में तप किया करते थे और इन्होनें वो मठ भी तोड़े और आपके पुरखे भी मारे; इतना भयंकर हहाकार मचाया कि आज भी जनमानस में "मार दिया मठ", "हो गया मठ", "कर दिया मठ" जैसी कहावतें चलती हैं। उस वक्त आपके पुरखों ने तपस्या छोड़ इनको जब तक मुहतोड़ जवाब दे, इनके थोबड़े नहीं तोड़े थे तब तक यह रुके नहीं थे।

लेकिन अबकी बार की शुरुवात में कुछ ऐसा हो कि यह ऐसी कोई हरकत ही ना कर पाएं।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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