सिर्फ किस्से बताऊंगा, नाम टीचर के रेस्पेक्ट के चलते गुप्त ही रखूँगा!
1) आठवीं क्लास में ड्राइंग के मास्टर जी से लफड़ा हो गया|
2) नौवीं में सामाजिक के मास्टर जी से अकबर की मृत्यु की तारीख पे लफड़ा हो गया| वो 1604 में हुई पे अटक रहा और मैं 1605 बताता रहा| गुस्सा आया उसको सुना दी तो क्लास से नाम काट के बाहर कर दिया|
3) नौवीं क्लास के इंचार्ज से लफड़ा हुआ तो उसने नाम काट के क्लास से चलता कर दिया|
4) नौवीं क्लास में ही स्कूल के मन्दिर के आगे सामाजिक वाले ने फिर लफड़ा किया तो रगड़ना पड़ा, मंदिर में ही| ऐसे टीचर्स पर मेरा हाथ उठ जाता था जो सिलेबस का कुछ जानते नहीं थे और मंदिर के आगे चले आते थे यह सिखाने की मूर्ती को हाथ कैसे जोड़ने हैं और कैसे झुकना है| मेरी आदत नहीं थी मूर्ती को हाथ जोड़ने की, बस हाय-हेल्लो स्टाइल में हाथ मारता हुआ निकल जाता था; उस दिन इन जनाब ने पकड़ लिया तो लफड़ा हो गया| मखा आ तुझे मैं बताता हूँ, अकबर की मौत कब हुई तक तो तुझे पता नहीं, सिखाएगा मुझे कि पूजा कैसे करते हैं|
5) दसवीं क्लास में कंप्यूटर वाले को कंप्यूटर का बढ़िया सा ड्राइंग डिजाईन बना के दिया, उन्होंने उसको लिया किसी और कार्य के लिए, प्रयोग कहीं और किया तो उनसे दो-चार हो गई|
6) दसवीं क्लास के आखिरी दिन पीटीआई के पास कम्प्यूटर वाले ने शिकायत कर दी, तो करार चमाट खाया, क्योंकि वो रिश्ते में फूफा लगते थे, .......... उस दिन हमारा फुल क्लास का हाफ-डे बंक मारने का प्लान था, सब चौपट हो गया|
7) ग्यारहवीं में स्कूल की ब्लैक-लिस्ट में शामिल हो के नाम रोशन किया| इस वजह से दो बार नाम कटे परन्तु ऐसी वापसी मारी कि स्कूल का मोस्ट सिंसियर स्टूडेंट का अवार्ड ले मरा|
8) बीएससी फर्स्ट ईयर में एक मैथ के प्रोफेसर से लफड़ा हुआ तो प्रोफेसर साहब से पूरे तीन साल के लिए मंडावली कर ली, उसके बाद उनके साथ सब सेट रहा|
9) फ्रेशर्स को वेलकम पार्टी देने बारे फिजिक्स के प्रोफेसर से लफड़ा हुआ तो मसला उनकी ओप्पोसिशन झेल के निबटाना पड़ा|
10) एमबीए में एक प्रोफेसर ने कल्चरल एक्टिविटीज के रिजल्ट्स में लफड़ा किया तो जूनियर्स ने उससे पढ़ने से ही मना कर दिया| यह प्रेम होता था मेरे जूनियर्स का मेरे प्रति| उस प्रोफेसर की या तो "कटी ऊँगली" तक पे मूतने जैसी इज्जत थी या फिर कॉलेज प्रेजिडेंट के सामने ही हड़का दिया|
ऐसा नहीं है कि सिर्फ कड़वे ही एक्सपीरियंस रहे, अगर यह 10 कड़वे रहे तो कम-से-कम 100 अति-सुहाने भी रहे| इतने यादगार रहे कि आज भी वो टीचर्स दिलो-दिमाग पर राज करते हैं| जैसे कि एलकेजी के श्रीराम अत्रि जी, तीसरी कक्षा के दीनदयाल जी, पांचवीं क्लास के चन्द्रभान जी, और छटी से दसवीं तक में तो कई सारे एक तो खुद ड्राइंग टीचर जिनसे आठवीं में लफड़ा हुआ, हिंदी के रघुमहेन्द्र बंसल जी, संस्कृत के विवेक गर्ग जी|
ग्यारहवीं-बारहवीं के स्कूल में 95% मैडम थी तो लगभग हर मैडम से अच्छी बनी, जिनकी वजह से ब्लैक लिस्ट हुआ उनका भी फिर फेवरेट बना| ग्रेजुएशन में जो प्रोफेस्सोर्स ने विरोध किया उन्होंने खुद रोल-नंबर्स ढूंढ-ढूंढ के प्रैक्टिकल्स में नंबर लगवाए, जैसे कि फिजिक्स के प्रोफेसर जगबीर ढुल जी, हमारे आर्ट एंड कल्चरल टीम के इंचार्ज रोशनलाल जी ने तो बिना मांगे थिएटर और कल्चरल फील्ड में कार्य के लिए मेरिट सर्टिफिकेट ही हाथ में थमा दिया था| एमबीए के वक्त की नीति राणा मैडम ने तो फ्रांस में बैठे-बिठाये बैच का मोस्ट क्रिएटिव एंड इनोवेटिव स्टूडेंट अवार्ड दिलवा दिया था| इधर फ्रांस में भी कई प्रोफेस्सोर्स आजतक भी टच में हैं और जब चाहे मदद देते और लेते रहते हैं|
वो शरारतों वाले किस्से पॉइंट बना के इसलिए लिखे, क्योंकि इंडियन डीएनए को अच्छे से जानता हूँ, अधिकतर की रुचि उन्हीं को पढ़ने में रहेगी|
इसके अलावा इन्टरनेट और रिश्तेदारों का व्यहार भी सबसे बड़ा टीचर रहा| माँ-बाप तो फिर होते ही अल्टीमेट गुरु हैं|
तो यह थी मैं और मेरी जिंदगी के गुरुवों की एक झलक|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
1) आठवीं क्लास में ड्राइंग के मास्टर जी से लफड़ा हो गया|
2) नौवीं में सामाजिक के मास्टर जी से अकबर की मृत्यु की तारीख पे लफड़ा हो गया| वो 1604 में हुई पे अटक रहा और मैं 1605 बताता रहा| गुस्सा आया उसको सुना दी तो क्लास से नाम काट के बाहर कर दिया|
3) नौवीं क्लास के इंचार्ज से लफड़ा हुआ तो उसने नाम काट के क्लास से चलता कर दिया|
4) नौवीं क्लास में ही स्कूल के मन्दिर के आगे सामाजिक वाले ने फिर लफड़ा किया तो रगड़ना पड़ा, मंदिर में ही| ऐसे टीचर्स पर मेरा हाथ उठ जाता था जो सिलेबस का कुछ जानते नहीं थे और मंदिर के आगे चले आते थे यह सिखाने की मूर्ती को हाथ कैसे जोड़ने हैं और कैसे झुकना है| मेरी आदत नहीं थी मूर्ती को हाथ जोड़ने की, बस हाय-हेल्लो स्टाइल में हाथ मारता हुआ निकल जाता था; उस दिन इन जनाब ने पकड़ लिया तो लफड़ा हो गया| मखा आ तुझे मैं बताता हूँ, अकबर की मौत कब हुई तक तो तुझे पता नहीं, सिखाएगा मुझे कि पूजा कैसे करते हैं|
5) दसवीं क्लास में कंप्यूटर वाले को कंप्यूटर का बढ़िया सा ड्राइंग डिजाईन बना के दिया, उन्होंने उसको लिया किसी और कार्य के लिए, प्रयोग कहीं और किया तो उनसे दो-चार हो गई|
6) दसवीं क्लास के आखिरी दिन पीटीआई के पास कम्प्यूटर वाले ने शिकायत कर दी, तो करार चमाट खाया, क्योंकि वो रिश्ते में फूफा लगते थे, .......... उस दिन हमारा फुल क्लास का हाफ-डे बंक मारने का प्लान था, सब चौपट हो गया|
7) ग्यारहवीं में स्कूल की ब्लैक-लिस्ट में शामिल हो के नाम रोशन किया| इस वजह से दो बार नाम कटे परन्तु ऐसी वापसी मारी कि स्कूल का मोस्ट सिंसियर स्टूडेंट का अवार्ड ले मरा|
8) बीएससी फर्स्ट ईयर में एक मैथ के प्रोफेसर से लफड़ा हुआ तो प्रोफेसर साहब से पूरे तीन साल के लिए मंडावली कर ली, उसके बाद उनके साथ सब सेट रहा|
9) फ्रेशर्स को वेलकम पार्टी देने बारे फिजिक्स के प्रोफेसर से लफड़ा हुआ तो मसला उनकी ओप्पोसिशन झेल के निबटाना पड़ा|
10) एमबीए में एक प्रोफेसर ने कल्चरल एक्टिविटीज के रिजल्ट्स में लफड़ा किया तो जूनियर्स ने उससे पढ़ने से ही मना कर दिया| यह प्रेम होता था मेरे जूनियर्स का मेरे प्रति| उस प्रोफेसर की या तो "कटी ऊँगली" तक पे मूतने जैसी इज्जत थी या फिर कॉलेज प्रेजिडेंट के सामने ही हड़का दिया|
ऐसा नहीं है कि सिर्फ कड़वे ही एक्सपीरियंस रहे, अगर यह 10 कड़वे रहे तो कम-से-कम 100 अति-सुहाने भी रहे| इतने यादगार रहे कि आज भी वो टीचर्स दिलो-दिमाग पर राज करते हैं| जैसे कि एलकेजी के श्रीराम अत्रि जी, तीसरी कक्षा के दीनदयाल जी, पांचवीं क्लास के चन्द्रभान जी, और छटी से दसवीं तक में तो कई सारे एक तो खुद ड्राइंग टीचर जिनसे आठवीं में लफड़ा हुआ, हिंदी के रघुमहेन्द्र बंसल जी, संस्कृत के विवेक गर्ग जी|
ग्यारहवीं-बारहवीं के स्कूल में 95% मैडम थी तो लगभग हर मैडम से अच्छी बनी, जिनकी वजह से ब्लैक लिस्ट हुआ उनका भी फिर फेवरेट बना| ग्रेजुएशन में जो प्रोफेस्सोर्स ने विरोध किया उन्होंने खुद रोल-नंबर्स ढूंढ-ढूंढ के प्रैक्टिकल्स में नंबर लगवाए, जैसे कि फिजिक्स के प्रोफेसर जगबीर ढुल जी, हमारे आर्ट एंड कल्चरल टीम के इंचार्ज रोशनलाल जी ने तो बिना मांगे थिएटर और कल्चरल फील्ड में कार्य के लिए मेरिट सर्टिफिकेट ही हाथ में थमा दिया था| एमबीए के वक्त की नीति राणा मैडम ने तो फ्रांस में बैठे-बिठाये बैच का मोस्ट क्रिएटिव एंड इनोवेटिव स्टूडेंट अवार्ड दिलवा दिया था| इधर फ्रांस में भी कई प्रोफेस्सोर्स आजतक भी टच में हैं और जब चाहे मदद देते और लेते रहते हैं|
वो शरारतों वाले किस्से पॉइंट बना के इसलिए लिखे, क्योंकि इंडियन डीएनए को अच्छे से जानता हूँ, अधिकतर की रुचि उन्हीं को पढ़ने में रहेगी|
इसके अलावा इन्टरनेट और रिश्तेदारों का व्यहार भी सबसे बड़ा टीचर रहा| माँ-बाप तो फिर होते ही अल्टीमेट गुरु हैं|
तो यह थी मैं और मेरी जिंदगी के गुरुवों की एक झलक|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
No comments:
Post a Comment