Tuesday, 6 September 2016

कुछ लोग युद्ध लाये, हम बुद्ध लाये! - पीएम मोदी वियतनाम में!

मोदी महाशय, बुद्ध धर्म को बचाने के चक्कर में ही तो गठवाला जाट आज मलिक कहलाते हैं| किस्सा सुनना चाहेंगे पूरा? दूसरा बुद्ध इतने ही अच्छे लगते हैं तो देश के दलित जो बुद्ध को मानते हैं उनसे हिन्दू महासभाओं का 36 का आंकड़ा क्यों रहता है?

अब जरा थोड़ा विस्तार से: आपकी विचारधारा की हकीकत बता दूँ कि बुद्ध को भारत का हो के भी भारत में नहीं फैलने दिया गया; हरयाणा में तो इतना बड़ा नरसंहार (युद्ध) हुआ था कि आज भी किसी के यहां नुक्सान हो जाने पर लोक-कहावतें चलती हैं कि "मार दिया मठ", "हो गया मठ", "कर दिया मठ"। उस नर संहार की मानिद इतनी गहरी थी कि बुद्ध तपस्या में लीन निहत्थे जाटों को मारने के सिलसिले जब बढ़ते ही गए और अंतहीन प्रतीत हुए तो तब जा के जाटों ने अपनी भृकुटि खोली थी और मुंहतोड़ जवाब दे के लगाम लगाई गई थी|

जाने-माने इतिहासकार डॉक्टर के. सी. यादव की पुस्तक "हिस्ट्री ऑफ़ हरयाणा" में लिखा है कि कैसे मात्र 9 हजार गठवाले जाटों ने (क्योंकि इनके निशाने पर मुख्यत: गठवाले जाट ही थे) समस्त जाट-समाज का जिम्मा अपने ऊपर लेते हुए व् अपने भाईयों की रक्षा हेतु, इन आज बुद्ध के प्रति प्रेम दिखाने वालों की उस वक्त बुद्ध बने और तपस्या में लीन जाटों को मारने के लिए भेजी गई 1 लाख सेना को मात्र 1500 जाट खोते हुए काट दिया था और तब कहीं जा के इनके बुद्ध मठ व् बुद्धों को मारने के सिलसिले थमे थे| और यही वो वाकया है जब अरब के खलीफा को जाटों के इस शौर्य का पता चला तो गठवाला जाटों को "मलिक" की उपाधि ऑफर की| मुझे कहने की जरूरत नहीं कि अरब में मलिक का मतलब मालिक होता है और सर्वश्रेष्ठ उपाधि होती है; जिसको फिर गठवालों ने बराबरी के स्टेटस के साथ स्वीकार किया| इसीलिए मलिकों को अक्सर "मलिक साहब' भी कहा जाता है|

नौटंकी और भांडों को भी पीछे छोड़ दिया आपने तो| पीएम महोदय और नहीं तो जा के बालाजी जैसे मन्दिरों की मूर्तियां देख लो; बुद्ध की मूर्तियों को बालाजी का रूप दिया हुआ है| मंदिर तोड़ने वालों से भी खतरनाक खून की होली खेलने (मठ तोड़ने वाले) वालों में हैं आप की विचारधारा वाले|

फिर भी बुद्ध के बिना आपका काम नहीं चलता, कभी लन्दन में भारत को बुद्ध का देश बताते हैं तो आज वियतनाम में भी| वैसे बताने को तो बुद्ध को विष्णु का नौवां अवतार भी लिखे हुए हैं विष्णु-पुराण में? परन्तु बुद्ध को मानने वाले दलितों पर कैसे अत्याचार और कैसी हेय दृष्टि से देखते हैं; हर कोई वाकिफ है इससे| हो सके तो पहले अपने देश में इस बात को दुरुस्त कीजिये; वर्ना आपका यह अव्वल दर्जे का काइयाँपन विदेशी भी समझते हैं, भ्रम में ना रहें| यह विदेश-निति में चाणक्य जैसी मूलचूक गलतियाँ ना करें; वर्ना क्या वजह रही कि चाणक्य के साथ ही उनकी नीतियां भी मृतप्राय हो गई थी? उनके बाद किसी राजा ने उन (चाणक्य की) नीतियों को नहीं चलाया?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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