Monday 10 October 2016

"जय यौद्धेय" का उदघोष क्यों करना/बोलना चाहिए!

दरअसल "यौद्धेय" (यौद्धेया - स्त्रीलिंग) शब्द उन सूरमाओं, हुतात्माओं, वीरांगनाओं के लिए कहा गया है जो सर्वखाप की विभिन्न लड़ाइयों में अपनी कुर्बानिया-बलिदान और जौहर करते हुए वक्त-दर-वक्त फना होते रहे हैं| सर्वखाप से यह शब्द जुड़ा है इसकी सिर्फ यही खासियत नहीं है| इसकी खासियत यह भी है कि यह हिन्दू-मुस्लिम-सिख हर धर्म से जुड़ा हुआ है| यह हिन्दू धर्म की 36 बिरादरी से जुड़ा हुआ है| यानी कि यह शब्द धर्म-सम्प्रदाय-वर्ण-जाति से परे है, स्वच्छन्द है, स्वतन्त्र है| 

जातिवाद सिर्फ एक जगह नहीं था और वो था "यौद्धेय संस्कृति" की परिपाटी| जिसमें यौद्धेय होने का सिर्फ एक ही पैमाना होता था वो होती थी व्यक्ति वीरता, समाज-संस्कृति के प्रति निष्ठां और न्यायाप्रियता| तुरन्त-पां न्याय मिलता था, फ्री-ऑफ़-कॉस्ट मिलता था और सबको मिलता था; और आज भी न्याय मिलने की यही परिपाटी है जिस तन्त्र में वो है सर्वखाप| सर्वखाप समाज को अपने अंदर की कमियों को एडिट करते हुए, अपनी यह पहचान, अपनी यह यौद्धेय संस्कृति जिन्दा रखनी होगी, वर्ना मानवता जैसा सब खत्म समझो|

कई लोग सनातनियों और यौद्धेय संस्कृति को मिलाने की कोशिश करते हैं, ऐसे लोग ऐसा करते वक्त यह क्यों भूल जाते हैं एक मूर्ती पूजा करता है और दूसरा उसका विरोधी होने के सिद्धांत पर बना है|

यह शब्द "गॉड गोकुला" की कुर्बानी के बाद औरंगजेब के दरबार में सुलह करने हेतु जाने वाले परन्तु कुर्बानी दे आने वाले उन 21 यौद्धेयों का स्मरण करवाता है जिनमें 11 जाट, 3 राजपूत, 1 रोड, 1 ब्राह्मण, 1 सैनी, 1 पठान खान, एक गुज्जर, एक त्यागी, एक वैश्य थे|

यह शब्द 1857 की क्रांति को हिन्दू-मुस्लिमों द्वारा मिलके लड़ने का प्रतीक है| बाबा शाहमल के जौहर का प्रतीक है|

यह शब्द दिल्ली के मुहम्मद तुगलक तक को सरेंडर करवा लेने वाले तैमूरलंग के 1398 में दांत खट्टे कर उसको भारत से भगोड़ा बनाने वाली उस सर्वखाप आर्मी के जौहर का प्रतीक है जो जाट राजा देवपाल के कहने पर बुलाई गई थी, जिसके सेनापति दादा जोगराज जी पंवार थे, उपसेनापति दादा हरवीर सिंह गुलिया जी व् दादा धूला भंगी बाल्मीकि जी थे| जिसमें दादीराणी रामप्यारी गुजरी के नेतृत्व में 40000 यौद्धेयायों की आर्मी भी रशद-पानी का प्रबन्ध करने के साथ-साथ हथियार ले भी लड़ी थी|

और इसी तरह के दर्जनों और खाप की लड़ाइयों के उदाहरण हैं, जहां सिर्फ वीरता पैमाना रही, जाति-धर्म इनसे परे रहा|

सनद रहे, यौद्धेय शब्द और यौद्धा शब्द दोनों अलग-अलग हैं| दूसरी बात जब तक सिख धर्म नहीं बना था तो पंजाब में भी खाप होती थी, जैसे कि 35 जाट खाप फ़िरोज़पुर; परन्तु सिख धर्म आते ही वहाँ खाप ने "मिशल" का रूप ले लिया, जो कि आज भी चलती हैं| उदाहरण के तौर पर फुलकिया मिशल, यह सरदार फूल सिंह के नाम से चली और आगे चल जींद-नाभा-पटियाला इसकी रियासतें बनी|

अत: "यौद्धेय" शब्द बड़ा ही सोच-विचार कर धारण किया गया शब्द है, जो धर्म-जाति-वर्ण-सम्प्रदाय से रहित सच्ची-सूची वीरता व् शौर्यता का प्रतीक है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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