Monday 10 October 2016

बेचारे बकरे मिमियाते-गिरियाते रहे और जनेऊधारी एक-के-बाद-एक उनकी गर्दन उडाते रहे!

नीचे सलंगित जो विडियो है यह बिहार-बंगाल में दुर्गापूजा (दुर्गा काली का अवतार बताई जाती है) पर दी जाने वाली पशुबलि की 14.31 मिनट की विडियो है| सोचा कि गिन के देखूं कि कितने बकरे चढ़ाये जा रहे हैं, 4 मिनट तक तो गिने; फिर उबकाई सी आने लगी तो आगे नहीं गिन पाया| परन्तु इस 4 मिनट में 20 के करीब बकरे कटे, इस हिसाब से पूरी 14.31 मिनट में 60-70 बकरे तो जनेऊधारियों ने जरूर काट फेंके होंगे| यह विडियो पिछले साल की दुर्गा पूजा का है, ज्यादा पुराना नहीं है|

अभी पिछले दिनों बकरीद पर बड़ा शोर हो रहा था, कोई ढाका की खून से सनी गलियों की फोटोशॉप की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल किये हुए था| इसमें उनको भी ढूंढता रहा कि खुद तो क्या बलि देते होंगे, किसी न किसी कसाई को बुलाते होंगे| परन्तु अंत तक निराशा ही हाथ लगी, जब हर तरफ सिर्फ जनेऊधारी ही दिखे|
कोई बुरा माने तो 70 बार माने, परन्तु एक सच्चाई जरूर कहूंगा कि भारत में जो खापलैंड यानी जाटलैंड है ना, उस पर यह कुकर्म अभी तक तो होते नहीं थे| परन्तु जिस बेढंगे ढंग से एक जमाने में मूर्ती-पूजा विरोधी नीति के लिए जाने-जाने वाले जाटों में बहुतेरों पर इस अंध्भक्ति का जो मोहपास डला पड़ा है, इससे संशय घेरने लगा है कि कहीं आने वाले समय में यह कुकर्म हमारे इधर भी पैर ना पसार लेवें|

खापलैंड की नई नेटिव पीढ़ी के आगे चैलेंज है, इन पशुबलि के त्योहारों से अपनी धरती को बचाये रखने का| यह जो जाट बनाम नॉन-जाट का हव्वा है ना, इसके एजेंडा में एक यह भी मिशन है कि इन ढोंग-पाखंडों के प्रखरतम व् धुर्र विरोधी जाटों को तो उलझाये रखो जाट बनाम नॉन-जाट में और साथ-साथ दूसरी तरफ से फैला दो पूरी जाटलैंड पर इन पाखंडों को, नराधमी करतूतों को, पिशाचिनी पध्दतियों को|

मैं बड़े गर्व के साथ कहता आया हूँ कि अगर आज खापलैंड पर कोई देवदासी नहीं पाई जाती तो इन नराधमों व् पिसाचों पर जाटों और खापों की तार्किकता व् उससे भी ऊपर लठ के भय के कारण| अगर आज भी जाटलैंड पर वृन्दावन को छोड़कर विधवा आश्रम ढूंढें से भी मुश्किल से मिलते हैं तो सिर्फ जाटों की वजह से|

परन्तु अपने ही डीएनए के साथ पशोपेश में चल रहे जाट को पता नहीं, यह बात कब समझ में आएँगी और कब वह अपने "जाट जी" और "जाट देवता" वाले रूप को फिर से अख्तियारेगा|

वैसे एक बात निचौड़ की यह भी है कि यह लोग इन ढोंग-पाखंडों को दो वजहों से रचते हैं; एक तो मानसिक भय के जरिये अपना प्रभाव कायम रखने के लिए और दूसरा इनसे आमदनी अर्जित करने के लिए| वर्ना ऐसा कौनसा भगवान्/भगवती होगा/होगी दुनिया का/की जो अपने ही द्वारा रचे बकरों को यूँ मारा-काटा जाता हुए देख के खुश होता/होती होगा/होगी?

Video Source: https://www.youtube.com/watch?v=j3TGrWXW0cs

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

No comments: