Sunday, 2 October 2016

जो देश-धर्म भक्ति पैसा देख के रंग बदलती हो, वो क्या ख़ाक क्रांति लाएगी; वो सिर्फ दिशाहीन बवाल ला सकती है, सिवाए इसके कुछ नहीं!

1) अडानी ने 72000 करोड़ रूपये का कर्ज लिया भारतीय बैंकों से और इन नाजुक हालातों में भी बिजली दे रहा है पाकिस्तान को? और इस पर स्वघोषित देश-धर्म के भक्त खामोश?

2) जियो का सस्ता सिम वही शाहरुख़ खान बेच रहा है, जिसको कल तक स्वघोषित देश-धर्म के भक्त परिवार समेत पाकिस्तान भेज रहे थे| सस्ता मिल जाओ, फिर उसके आगे देश-धर्म का सम्मान जाए तेल लेने|

3) चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी की एक ब्रांच का पानी रोक दिया, परन्तु देश-धर्म के भक्तों का सामान ना खरीदने का लेक्चर सिर्फ ग्राहक को, इनकी नजर में वहाँ से सामान लाने वाले अभी भी देश-धर्म भक्त हैं; उनको वहाँ से सामान लाना बन्द करने का लेक्चर नहीं देगा कोई|

4) "मेक इन इंडिया" का नारा लगाने वाला मोदी, देश में नाइजीरिया की बोई हुई दालें आयात करेगा| एक उस देश में जिसकी जमीन और किसान को जितना नाइजीरिया को दिया, उतना तक भी पैसा दे दिया जाए अगर तो उसका किसान कम-से-कम एक पूरे महाद्वीप की दाल की मांग पूरी करने जितनी दाल पैदा कर दें| पंरतु कॉर्पोरेट खेती यानि पैसे वालों का मामला जो ठहरा, वहाँ थोड़े ही चुसकेंगे यह स्वघोषित देश-धर्म के भक्त|

छोड़ दो इस झूठे भ्रम की ऐसी देश-धर्म वाली भक्ति को जो "गरीब की बहु सबकी भाभी" के सिद्धांत पे टिकी हो; अन्यथा हो अगर असली राष्ट्रभक्त तो, दो अडानी को पाकिस्तान को बिजली ना बेचने का डंडा| लगाओ हर उस दुकान-शॉपिंग मॉल पे ताला जो चाइनीज सामान बेचता हो| करो पीएमओ के आगे धरना और पूछो उस "मेक इन इंडिया" का जुमला रुपी नारा लगाने वाले से कि जब हमारे किसान व् जमीन जिस चीज को पैदा करने में सक्षम हैं तो वो उसको बाहर से पैसे दे के क्यों उगवा रहा है?

मोदी, जिस "भारत माता की जय" बोलते-बुलवाते नहीं थकते, उसी उपजाऊ जमीन रुपी भारत माँ का उसकी जय बोलने वाले के हाथों ही ऐसा घोर तिरस्कार? अपनी माँ भूखी मरे, सम्मान को तरसे और नाइजीरिया वाली माँ पे इसके पैसे और कृपा दोनों बरसें? डूब मारें, कहीं कोई कुआं-जोहड़ मिलता हो तो ऐसे "भारत माता की जय" बोलने वाले ढोंगी| होता जो इस आदमी में इस नारे और वाकई में भारत माता यानी इस जमीन के प्रति थोड़ा सा भी स्वाभिमान तो उठाता यह आदमी अपनी धरती रुपी माँ की उपजाऊ क्षमता को दरकिनार करने का कदम? जवाब देवें हर स्वघोषित देश-धर्म भक्त?

हिटलरवादी अधिनायकवाद यही तो होता है जो इंसान को अधिनायक द्वारा ही दिखती-दिखाती लूट तक नहीं देखने-समझने देता| ताज्जुब है कि इन स्वघोषित हुए फिर रहे देश-धर्म भक्तों में अब किसानों तक के बालक बावले हुए गरियाये हुए हैं|

अरे बिना पैसे के तो कोई तुम्हें मंदिर में भी ना फटकने दे (मन्दिर के दरवाजों के बाहर कटोरा ले के बैठने की औकात होती है बिना पैसे वाले की), और तुम चले हो देशभक्ति करने? वो तुम्हारी किसान माँ-बापों की जेबें खाली करवा के तुम्हें भूखे पेट बना रहा है और तुम चले हो भूखे पेट देश-धर्म भक्ति करने? हुई है जो आजतक किसी से भूखे पेट देश-धर्म भक्ति, जो तुम करोगे?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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