Sunday 23 October 2016

जुबान पे कायम उसके साथ रहा जाता है जो जुबान की कीमत जानता हो!


1) "ठाकुर, की जुबान पर विश्वास रखो!" - राजनाथ सिंह, फरवरी जाट आंदोलन में "जाट आरक्षण की घोषणा का पीएमओ से नोटिफिकेशन" तुरन्त जारी करवाने हेतु जाटों द्वारा कहने पे|
2) "रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन ना जाई" - रामायण (माइथोलॉजी), गर्भवती पत्नी को एक धोबी के कहने पर जंगल छुड़वाते वक्त, फेरों के वक्त दिए सात वचन एक झटके में तोड़े|
3) "प्राण जाए पर वचन ना जाए", "मर्द की जुबान" आदि-आदि - बॉलीवुड की ठाकुरों पर बनी फिल्मों में, ठाकुरों को जुबान नाम के वशीकरण जाल से बंधते हुए तो खूब देखा होगा|
4) जुमलेबाजों का तो रिकॉर्ड ही रखना भूल गया हूँ|

एक और ख़ास बात देख लेना, यह जुबान देने और जिसको दी है वो देने और उसके साथ जुबान निभाने लायक भी है या नहीं; यह सोचे-समझे बिना इसपे बौरा के मरने का शौक भी सबसे ज्यादा राजपूत-ठाकुर-जाट टाइप लोगों ज्यादा रहता है|

और क्या कहूँ, बस यही कहना है अपनी जुबान पे कायम रहो, परन्तु उसके साथ जो इसके लायक हो|
वर्ना बिना देखे-सोचे समझे जुबान देने वाला
1) माइथोलॉजी वाला हरिश्चंद्र बाद में अपनी पत्नी-बच्चों समेत काशी के घाटों पर बिकता हमने सुना है|
2) दूसरा माइथोलॉजी वाला राजा बलि, वामन अवतार को तीन-पग धरती नपवा के खुद, धूल फाख्ता हमने सुना है|
3) तीसरा माइथोलॉजी वाले राम और युद्धिष्ठर, सात फेरों के वचन दे के ब्याह के लाई अपनी पत्नियों को एक जंगल में छुड़वाता और दूसरा जुए में दांव पर लगाता हमने पढ़ा है|
4) चौथा महाभारत के युद्ध में, अस्त्र ना उठाने का वचन दे, जुबान को अस्त्र की तरह प्रयोग करता कृष्ण हमने सुना है|
अब कुछ उदाहरण वास्तविकता से:
5) अंतिम हिन्दू सम्राट कहलाने वाला पृथ्वी चौहान, अपने ही हिन्दू धर्म की मान-मान्यताओं को निभाने के वचन भरने के बाद भी कामांध हो अपनी ही भतीजी संयोगिता को भगाता हमने पढ़ा है|
6) महाराजा सूरजमल को पानीपत की तीसरी लड़ाई में जाट-पेशवा युद्ध-गठबंधन अलायन्स बनाने के वचन के बहाने, उनको बन्दी बनाने की चाल चलता पुनाई पेशवा हमने पढ़ा है|
7) सत्य-अहिंसा परमोधर्म: के वचन कहने वाला गाँधी, भगत सिंह को फांसी देने के कागजों पर दस्तखत करते हमने देखा है|
8) अंग्रेजों का विरोध करने वाले सावरकर और अटल बिहारी, अंग्रेजों को ही 6-6 माफीनामे लिखते हमने देखे हैं|
9) जुमलावतार के जुमलों की जुमलाई के जुल्मों का दौर पास से गुजरते हम देख रहे हैं|

और कुछ बावली तरेड़ टाइप "जुबान के पक्के" जुबान से कुल्ला-दातुन करते दुनिया की दीवारों को कुल्लों के पानी से गन्दा करते रोज-रोज सोशल मीडिया पर ढींगे हांकते मिलते ही रहते हैं| इनको अहसास भी नहीं होता कि जिस जुबान की तुम हंगाई मार रहे हो, यह जुबान नहीं अपितु तुम्हारा खुद से अनियंत्रित जोश है; वर्ना ऐसे जुबान के पक्के और जुबान के पक्कों का साथ देने वाले होते तो, अब तक अंध्भक्ति से बाहर आ चुके होते|

 जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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