Sunday, 23 October 2016

मेरी राह सिर्फ यह है, "खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तबदीर से पहले खुदा बन्दे से खुद पूछे कि बता तेरी रजा क्या है।"

 जिस यूनियनिस्ट मिशन से मैं जुड़ा हूँ उसकी आइडियोलॉजी लोकतान्त्रिक गणतन्त्र की विचारधारा की उस धुर्री के इर्द-गिर्द चलती है जिसके जनक सर छोटूराम जी हैं; जो कि सम्पूर्णतः सवैंधानिक व् अकाट्य रूप से व्यवहारिक रही है।

हमारा उद्देश्य भी क्लियर-कट है:
१) समाज से ढोंग-पाखंड-आडम्बर करने वाले फंडी और सूदखोरी करने वाले मंडियों में बैठे मंडी का विरोध करना, उनके विरुद्ध समाज को जगाना,
२) मंडी-फंडी कैसे किसान-दलित-पिछड़े की हक़-हलूल की कमाई और सामाजिक हक मारते हैं इस पर अलख जगाना।
३) समाज से जातिवाद-वर्णवाद के तिलिस्म को तोड़ना और एक गणतांत्रिक पथ की ओर अग्रसर होना।
४) अपने घरों, पासपड़ोस व् रिश्तेदारियों को शुद्ध "दादा खेड़ा सभ्यता" बारे बताना और उसकी तरफ मोड़ना।
५) लोगों को हरयाणा-हरयाणवी-हरयाणत पर जगाते हुए समस्त "ग्रेटर-हरयाणा" में इसकी अलख जगाना।

इसमें विरोध-अवरोध का पैमाना और तरीका भी तय है, और वह वही है जो सर छोटूराम अपनाते थे और कहते थे कि "खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तबदीर से पहले खुदा बन्दे से खुद पूछे कि बता तेरी रजा क्या है।"
जो, खुदा आपकी रजा पूछे तक अपनी खुदी को बुलन्द करना चाहता हो, मैं हर उस सख्स से जुड़ा रहना चाहूंगा। लेकिन अगर अपने अंदर के आक्रोश को उससे बचने का विकल्प होते हुए भी गुस्से में परिवर्तित होने देंगे तो मेरा ऐसा मानना है कि वह पथ उस व्यक्ति का व्यक्तिगत पथ माना जाए, उसे सब युनियनिस्टों से जोड़ के ना देखा जाए। और ऐसा दिखाने वाला आपका ज्यादा ही नजदीकी व् मान्य हो तो उस मान्यवर से जिरह करके उनके विचार को दुरुस्त किया जाए।

सर छोटूराम जी के इर्द-गिर्द जिसको मैं फॉलो करता हूँ वो हैं महाराजा सूरजमल, सरदार भगत सिंह, सर सिकन्दर हयात खान, सर मग्गूवाला, सर फज़ले हुसैन, सरदार प्रताप सिंह कैरों, चौधरी चरण सिंह, ताऊ देवीलाल, चौधरी बंसीलाल, बाबा महेंद्र सिंह टिकैत व् डॉक्टर भीमराव आंबेडकर (इनमें उनका जिक्र नहीं, जो आज के दिन जीवित हैं)।

मैं विदेश में बैठ कर भी, अपनी सभ्यता-संस्कृति, किसान-दलित-पिछड़ा के आर्थिक व् सामाजिक हितों बारे कार्य करना चाहता हूँ, इसलिए मिशन से इसकी "फाउंडेशन की तारीख" से जुड़ा हूँ; परन्तु निसन्देह वैमनस्य फैलाने वाले विचारों से मैं अपने आपको अलग रखता हूँ।

उद्घोषणा: यह मेरे व्यक्तिगत विचार हैं परन्तु हाँ उन फेलो-साथियों के लिए एक सन्देश व् निर्देश भी हैं जो मेरी लेखनी व् विचारधारा में आस्था रखते हैं। इसलिए आप सबसे अनुरोध है कि आज के इस घोर जातिवाद माहौल में अपनी लेखनी से, विचार-कर्म से कुछ भी ऐसा ना होने देवें (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप दोनों से) जो सविंधान संगत ना हो। ज्यादा बेचैनी व् निराश होवे तो "खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तबदीर से पहले खुदा बन्दे से खुद पूछे कि बता तेरी रजा क्या है।" की ध्यान-केंद्रित करने की राह पर निकल जावें; हल जरूर मिलेगा।

 जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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