Wednesday, 26 October 2016

"ब्लाउज-पेटीकोट" भारतीय साड़ी पहनावे का हिस्सा नहीं, अपितु ब्रिटिशर्स से इस ड्रेस में लिया गया है!

ठीक वैसे ही जैसे चड्ढीधारियों (ताज़ा-ताजा बने पैंटधारी) का टोपी-शर्ट-चड्ढी (पेंट)-जूते-जुराब कुछ भी भारतीय नहीं परन्तु फिर भी चौड़े हो के खुद को राष्ट्रभक्त कहते नहीं कुढ़ियाते|

वैसे बिना ब्लाउज-पेटीकोट की साड़ी दक्षिण-पूर्वी व् मध्य भारतीय पहनावा है; उत्तर-पश्चिम भारत खासकर पंजाब -हरयाणा में कुरता-दामण व् सलवार-सूट पहनावा रहा है|

तो हुआ यूँ कि गुरु रविन्द्र नाथ टैगोर के भाई सत्येंद्र नाथ की बीवी बिना ब्लाउज-कोटीपेट के, स्तनों पर सिर्फ साड़ी का पल्लू ढाँप के कलकत्ता के ब्रिटिश क्लबस में एंट्री पे रोक दी गई| तब गुरु रवीन्द्रनाथ ने कहा कि अब नंगी छाती और नंगी पीठ के पहनावे नहीं चलेंगे और साड़ी के नीचे ब्रिटिशर्स की शर्ट, टी-शर्ट की भांति ब्लाउज और पेटीकोट पहनो| और तब से ऐसे शुरुवात हुई दक्षिण-पूर्वी व् मध्य भारतीय समाज में साड़ी के नीचे ब्लाउज व् पेटीकोट पहनने की|

तो जो औरतें या मर्द महानुभाव 'आज की साड़ी ड्रेस' को शत-प्रतिशत शुद्ध भारतीय पहनावा मानके इनको पहनती हैं, वह जानें कि इसमें सिर्फ साड़ी आपकी संस्कृति की है, ब्लाउज और पेटीकोट ब्रिटिशर्स के हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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