Thursday, 6 October 2016

आओ राष्ट्रभक्ति पर राजनीति करें!

वो कहते हैं कि हम सबसे बड़े राष्ट्रभक्त हैं और मैं कहता हूँ कि मैं सबसे बड़ा राष्ट्रभक्त हूँ; क्योंकि:

1) वो भारत माता की जय बोलता-बोलता, अपनी धरती माँ की उपजाऊ धरती का अनादर करने लग जाता है और अपने किसानों की क्षमता का उपहास| और पहुँच जाता है नाइजीरिया दालें उगवाने| क्योंकि मैं अपनी धरती माँ की उपजाऊ क्षमता और अपने देश के किसान की क्षमता पर यकीन करता हूँ इसलिए उनसे ही दालें उगवाने का समर्थक हूँ, तो बोलो हुआ ना उनसे बड़ा राष्ट्रभक्त?

2) वो "मेड इन चाईना" का विरोध करते-करवाते और 'मेक-इन-इंडिया' की पैरवी करते-करते, एक मूर्ती (सरदार पटेल का स्टेचू) तक चाईना से ही बनवा बैठता है| मैं होता तो देश की लोहे की सबसे पुराणी टाटा जैसी कंपनी को इसको बनाने की कहता और साथ ही कहता कि भले 2-4 साल फालतू लग जाएँ, परन्तु बाहर से उधारी मत लेना, "मेक-इन-इंडिया" का पूरा सेट यहीं रेडी करके यह मूर्ती यहीं देश में ही बनाना| परन्तु उसने जिस कंपनी को ठेका दिया, उससे यह भी नहीं पूछा कि वो इसको कैसे बनाएंगे| तो मैं हुआ ना उससे बड़ा और जुमलेबाजी से रहित सच्चा राष्ट्रभक्त?

3) वो और उसका पैतृक-संगठन कहते हैं कि हम "एकता और बराबरी का हिन्दू राष्ट्र" बनाएंगे| यह कोरा जुमला है छद्म राष्ट्रवाद है| क्योंकि ऐसा होता तो 1985 से मुम्बई में बाल ठाकरे और अब राज ठाकरे के हाथों कभी भाषावाद तो कभी क्षेत्रवाद के नाम पर पिटते चले आ रहे उत्तरी भारतीय हिंदुओं की हिंदुओं ही के द्वारा पिटाई के खिलाफ आवाज उठाते| क्योंकि उसके पैतृक संगठन का हैडकवाटर भी तो उसी राज्य में हैं? तो जब वो मुम्बई जैसे शहर में ही हिंदुओं के हाथों हिंदुओं का पिटना नहीं रोक सकते तो सुदूर छत्तीसगढ़-आंध्र जैसे राज्यों में कहीं हिन्दू जातिवाद की वजह से तो कहीं हिन्दू धर्म की वजह से छूत-अछूत व् देवदासी के रूप में उत्पीड़ित होते दलित हिन्दू की क्या ख़ाक आवाज उठाएंगे| लेकिन मैं इनके लिए आवाज उठाने की बात करता हूँ, इसलिए मैं इनसे बड़ा राष्ट्रभक्त हूँ|

4) जबसे सेण्टर और हरयाणा में इनकी सरकार आई है, तब से इन "हिन्दू एकता और बराबरी" के जुमलेबाजों का ही फैलाया जाट बनाम नॉन-जाट सड़कों पर पसरा पड़ा है| एक ऐसे राज्य में जिसने मुम्बई से भी ज्यादा हिन्दू माइग्रेशन देखा है| मुम्बई में तो माइग्रेशन मात्र 40-50 साल पुराना है, जाट बाहुल्य हरयाणा में तो यह सदियों पुराना है| वैसे तो पानीपत की तीसरी लड़ाई से भी पुराना, परन्तु उदाहरण के तौर पर इस लड़ाई के बाद से उठा लेते हैं| 1761 में अब्दाली से हारे हुए (बाल ठाकरे और राज ठाकरे जैसों को समझना चाहिए कि माइग्रैन्टस उनके ही यहां नहीं आते, उन वाले भी कहीं जा के बसे हुए हैं) मराठे भाईयों को अपने यहां बसाया, 1947 में हिन्दू अरोड़ा/खत्री कम्युनिटी को अपने यहां बसाया, 1984 में जब पंजाब में आतंकवाद छिड़ा तो वहां से निकल के आये हिन्दू अरोड़ा/खत्री को फिर से यहां बसाया, 1992 के दौरान ही कश्मीर में कश्मीरी हिंदुओं (मैं जातिवादी नहीं, इसलिए कश्मीरी हिन्दू कहूंगा, कश्मीरी पंडित नहीं) को अपने यहां बसाया (आ के देख लो कश्मीर का माइग्रेटेड हिन्दू सबसे ज्यादा हरयाणा में ही पनाह लिए हुए है), इसी दौरान बाल ठाकरे और राज ठाकरे के जुल्मों से पीड़ित बिहार-बंगाल-आसाम-पूर्वी यूपी के हिन्दू को ठाकरों के डर से बचने हेतु व् बिना जिरह के रोजगार के लिए जाट बाहुल्य हरयाणा, पंजाब व् वेस्ट यूपी ही सेफ-हेवन लगे और इधर माइग्रेट हुए| तो बताओ इतने लम्बे काल से इतनी ज्यादा माइग्रेशन देखने-झेलने के बाद भी क्या एक बार भी भाषावाद-क्षेत्रवाद हमने हमारे यहां उठने दिया? तो हरयाणवी ज्यादा राष्ट्रभक्त हुए या बाल ठाकरे और राज ठाकरे व् हिन्दू यूनिटी की एकता और बराबरी की बात करने वाले (जिन्होनें सरकार आते ही हिन्दू बाहुल्य हरयाणा में ही जाट बनाम नॉन-जाट पसार दिया)?

खैर इन ऊपर दिए चार उदाहरणों की भांति और भी उदाहरण हैं, परन्तु "राष्ट्रभक्ति" शब्द पर राजनीति कैसे हो की शुरुवाती चर्चा के लिए इतने उदाहरण काफी होने चाहियें|

इसलिए आओ राष्ट्रभक्ति पर खुलकर राजनीति करें और छद्म राष्ट्रभक्तों को इस मुद्दे पर कांफ्रण्ट करें और ओपन डिबेटोँ में आमन्त्रित करके इनके खामखा के हव्वे की हवा निकालें| जब तक इनको इस शब्द के ऊपर चैलेंज करना शुरू नहीं किया जायेगा, यह ऐसे ही फुदकेंगे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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