Thursday 6 October 2016

"यूनियनिस्ट मिशन वाले सिर्फ एक धर्म विशेष को टारगेट करते हैं' की भ्रान्ति दूर करें!

इस सवाल का मैंने इससे पहले भी दो बार जवाब दिया है। मिशन सिर्फ मंडी-फंडी की ढोंग-पाखंड-आडम्बर-सूदखोरी नीतियों के विरुद्ध अलख जगाता है। मिशन में जो जिस धर्म से आता है वो अपने यहां के मंडी-फंडी की आलोचना भी करता है और गलत बात का विरोध भी। अब क्योंकि भारत में एक धर्म कहो या वर्ग की जनसँख्या 80% के करीब है तो लाजिमी है कि मिशन में 80-85% के अनुपात में उसके सदस्य भी होंगे। तो जब वो 80-85% अपने धर्म के मंडी-फंडी पर बोलते दिखेंगे तो सबको लगेगा कि यह तो सिर्फ एक ही धर्म को टारगेट कर रहे हैं; जबकि ऐसा नहीं है। मिशन में जो 15-20% अन्य-धर्मी हैं वो भी अपने-अपने धर्मों के ढोंग-पाखंड पर कार्य करते हैं। और क्योंकि यूनियनिस्ट मिशन एक धर्म-निरपेक्ष मिशन है इसलिए अंतर्धार्मिक मुद्दे पर दूसरे धर्म वाले के मामलों पर उसी धर्म का बन्द बोलता, कार्यवाही करता है। यानि जो मुद्दा जिस धर्म का है, मिशन का उस धर्म का कैडर उस पर कार्य करता है। अंतर्धार्मिक जिम्मेदारियाँ मिशन नहीं देता।

सनद रहे, यूनियनिस्ट मिशन किसी धर्म विशेष के लिए नहीं है, यह सिर्फ और सिर्फ किसान-मजदूर-दलित के आर्थिक-सामाजिक-शैक्षणिक हितों, मुद्दों व् समरसता की बात करने के लिए है।

यह मिशन उन सर छोटूराम जी की विचारधारा पर चलता है जिन्होनें धर्म के आधार पर पंजाब के टुकड़े करने की बात करने वाले मोहम्मद अली जिन्नाह तक को जरूरत पड़ने पर यूनाइटेड पंजाब से तड़ीपार करने में जरा सी भी हिचकिचाहट नहीं दिखाई थी। और वहीँ दूसरी तरफ धर्म से ऊपर उठकर समाज-देश हित की बात करने वाले मुस्लिम सर सिकन्दर हयात खान व् सर फज़ले हुसैन के साथ मिलकर पंजाब की सरकारें चलाई। उनके आगे यही विचारधारा सरदार प्रताप सिंह कैरों (छोटे छोटूराम), चौधरी चरण सिंह व् बाबा महेन्द्र सिंह टिकैत ने बढ़ाई, उनकी इसी विचारधारा की झलक सरदार भगत सिंह की लेखनी व् कार्यशैली में दिखती है और अब इसी को लेकर मिशन, भाई मनोज दुहन की प्रेरणा व् नेतृत्व में अपनी राह पर अग्रसर है।

मैं भलीभांति जानता हूँ कि मिशन का हिंदी जाट कैडर जरूर "जाट-पुरख धर्म" की बात करता रहता है। इस पर मिशन की आलोचना करने वाले यह बात स्पष्ट तौर पर जान लें कि खुद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत लन्दन से ले के कई स्थानीय सभाओं में हिन्दू कोई धर्म है इस बात से साफ़ इंकार कर चुके हैं, दूसरा सुप्रीम कोर्ट तक हिन्दू धर्म के होने से इंकार कर चुका है। तो ऐसे में बेहतर है कि ऐसे लोग पहले स्वधर्म को भारतीय सविंधान और कोर्ट-कानून में पहचान दिलवाएं और फिर बात करें।

मिशन के बाकी हिंदी जाट कैडर का तो मैं कह नहीं सकता, परन्तु मैं इतना स्पष्ट जरूर हूँ कि मैं उस ब्राह्मण का आदर करता हूँ जो मुझे ऋषि दयानंद की भांति "जाट जी" और "जाट देवता" कह कर मेरा आदर करता है| परन्तु जो ब्राह्मण यह सोचता हो कि वह मुझसे श्रेष्ठ है, ऐसे ब्राह्मण को मैं मान्यता नहीं देता। मैं वो जाट हूँ, जिसके बराबर बैठ के ब्राह्मण बात करेगा, बराबर का साथी समझेगा तो साथ हूँ अन्यथा वो अपने राजी और मैं अपने राजी। उसका अपनी श्रेष्ठता का अभिमान है तो मेरा अपना अभिमान है, मैं उसके का आदर करूँ और वो मेरे का करे, सिंपल फंडा है, इसमें कोई बड़ी घुमाने वाली बात नहीं।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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