Wednesday, 5 October 2016

जाट की महानता, कृज्ञता और दयालुता किसी को जाननी है तो ऋषि दयानंद की आत्मा से पूछो!

आज और आज से पांच-दस साल पहले वाले "सत्यार्थ प्रकाश" की कॉपियां/प्रतियां सम्भाल के रखना; क्योंकि अब बदले हुए हालातों में और जिस तरीके से "जाट बनाम नॉन-जाट" का जहर पुरजोर तरीके से बोया जा रहा है, ऐसे में हो सकता है कि इसके मद्देनजर "सत्यार्थ प्रकाश" के जो भी नए वर्जन निकलें, उसमें से "जाट जी" और "जाट-देवता" के जिक्र व् अध्याय खत्म कर दिए जाएँ।

खत्म कर दिए जाएँ ताकि अगर ओबीसी व् दलित में कोई इसको पढता होगा तो वो ना जान पाए कि जाट समाज को ब्राह्मण समाज ने "देवता" क्यों कहा है, "जी" लगा के क्यों सम्बोधित किया है; और फिर इससे जाट बनाम नॉन-जाट फैलाने वालों की राह और आसान हो जाए। इसकी बहुत जल्द जाट समाज को जरूरत पड़ने वाली है, बहुत ही नजदीक है वह समय जब जाट को इसकी जरूरत पड़ेगी।

कोई माने ना या माने "सत्यार्थ-प्रकाश" एक ऐसा सबूत है जो ब्राह्मण तक को इस बात की शिक्षा देता है कि अगर आप ऋषि दयानंद की भांति जाट को "जाट जी" व् "जाट देवता" कहकर उसकी स्तुति करेंगे और उचित आदर-मान देंगे तो जाट आपको उन ऊँचाइयों पर बैठा देंगे कि आप उत्तरी भारत में सबसे मशहूर ब्राह्मण कहलायेंगे।

जब जाट ब्राह्मण से उचित आदर पाता है तो उसको ऋषि दयानंद की भांति आदर-मान का सर्वोच्च स्थान दिलवा देता है अन्यथा फंड-पाखंड करने वालों की ऐसी खिल्ली उड़ाएगा कि सीधा अंदर-तक हिला दे। लेकिन आज दिक्कत यह आ गई है कि जाट अपने इस मूल प्रवृति को छोड़ने के खुद पर ही एक्सपेरिमेंट कर रहा है। इसीलिए पशोपेश में है। नादाँ है जो अपने ही डीएनए को चुनौती दे रहा है।

जाट जाति अपने इस गौरव व् देवताई स्थान को ना भूले। ब्राह्मण ने किसी भी अन्य सांसारिक जाति को ना कभी "जी" लगा के बोला है और ना ही "देवता" कहा है। परन्तु जाट को कहा है। जाट को यह आदर-मान दिया तो आज तक भी उत्तरी भारत में ऋषि दयानंद से बड़ा ब्राह्मण कोई नहीं जाना जाता; और यह इसलिए है कि जाट श्रद्धा और प्रेम को सूद-समेत लौटाना जानता है।

अत: इन जाट बनाम नॉन-जाट के अखाड़े खड़े करने वालों को ब्राह्मण वर्ग भी आगे आ के समझाए और इनको कहे कि जाट को आँख दिखा कर या धमका कर विश्व की कोई ताकत नहीं जीत सकती। अगर भारत को विश्वशक्ति बनाना है तो इन जाट बनाम नॉन-जाट के चासडू नादानों को समझाया जाए (चाहे वो जिस किसी भी जाति के हों) कि जाट से मित्रता से रहोगे तो आधे से भी कम समय में विश्वशक्ति हो जाओगे। वर्ना तो भारत को सिर्फ बुद्ध का देश कह के ही काम चलाना पड़ेगा।

और यह विचार मेरा अहम/घमण्ड या बहम नहीं कह रहा, इतिहास के पन्ने भी यही बोलते हैं। जाट-ब्राह्मण के इतिहास के रिश्ते भी यही बोलते हैं।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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