Saturday 15 October 2016

हिन्दू विवाह अधिनियम का जिन्न, जाटू (खाप) मान्यता व् इसके मायने!

जाटू मान्यता का विवाह कानून पूर्णत: जेंडर-न्यूट्रलिटी पर टिका हुआ कांसेप्ट है; जो कि मानव सभ्यता की राह में आने वाले रोड़ों की न्यूनतम पध्दति पर बनाया गया है| न्यूनतम-रोड़े इसलिए कहा क्योंकि हर मान-मान्यता ख़ास और खतरा दोनों पहलु रखती होती है, जिनको कि न्यूनतम तो किया जा सकता है, परन्तु इन दोनों तरफा सम्भावनाओं से कोई मान-मान्यता पूर्णत: रिक्त नहीं हो सकती| और ऐसी ही न्यूनतम खतरा और अधिकतम ख़ास को साथ लिए बनी है जाटू उर्फ़ खाप वैवाहिक मान्यता| आईये देखें कैसे:

पैंतीस बनाम एक का ऐसा माहौल हो रखा है कि इस विषय में जाट का नाम होने से, शायद जाट तक इसको शक की निगाह से देखें| परन्तु मुझे तो बोलना है, सो बिंदास-बेझिझक बोलूंगा; वर्ना ऐसे कंजर लोग बैठे हैं कि नहीं बोला तो इस विश्व-स्तर की ख़ास सभ्यता को लील ही जायेंगे| सबसे पहले इसकी ख़ास बातों पर बात:

जाटू-मान्यता की सगोत्र विवाह मनाही की प्रणाली जेंडर-न्यूट्रल है, जो कि "खेड़े के गौत" के नियम पर आधारित है| "खेड़े के गौत" के तहत दो सिस्टम हैं, पहला "एक गौतीय खेड़ा" और दूसरा "बहु-गौतीय खेड़ा"। एक गौतीय खेड़े वाले गाँव में सगोत्र व् गांव-की-गांव में विवाह नहीं हो सकता, क्योंकि इसके तहत गाँव में आने वाली बहु हो या घर-जमाई, अपना गौत पीछे छोड़ के आते हैं| यानी गाँव में बेटे की औलाद बसे या "ध्यानी-देहल की औलाद" उनका गौत "खेड़े का गौत" चलता है|

जाट समाज में हर गौत का न्यूनतम एक व् अधिकतम असंख्य खेड़े होते हैं| "खेड़े के गौत" का सिस्टम, जाति के अंदर बिना किसी अवरोध-गतिरोध के अपनी-अपनी सब-जेनेटिक आइडेंटिटी व् अपने गौत-वंश-कुल के गणतन्त्र को युगयुगान्तर तक कायम रखने का फार्मूला है|

यह सिस्टम इंसान को वासना और मोह से दूर रहने हेतु भी बनाया गया है| सनद रहे वासना और मोह से मुक्त या दूर कैसे रहें, इस पर जानने हेतु किसी बाबा के सत्संग में जाने या नाम लेने की जरूरत नहीं और ना ही किसी आरएसएस को ज्वाइन करने की जरूरत| भान रहे कि अधिकतर बाबाओं के संगठनों में बाबा-लोग सदस्यों को भाई-बहन बना के रखते हैं या बन के रहने की हिदायत देते हैं; आरएसएस भी इस मामले में कम नहीं, यह लोग तो बाबाओं से भी दो कदम आगे चलते हुए मर्द को मर्द से ही राखी बंधवाते हैं| खैर, इसीलिए तो मुझे यह लोग आकर्षित नहीं कर पाते, क्योंकि जो यह करते हैं, उसका अधिकतर इन्होनें मेरी "जाटू-सभ्यता" के कांसेप्ट से चुराया हुआ लगता है|

जाटू-सभ्यता कहती है कि एक गौत के खेड़े के गाँव में 36 बिरादरी की बेटी-बहन-बुआ-भतीजी, आपकी बेटी-बहन-बुआ-भतीजी है; और जाट इस नियम का पालन करते हुए किसी दलित विरोधी तख्ती वाले मन्दिर की भांति यह शर्त नहीं लगाते कि दलित की बेटी को अपनी बेटी नहीं मानेंगे|

अब यहां पर वो लोग मुंह उठाकर रुदाली विलाप ना करें, जो मुझे गाँव-की-गाँव या घर की घर में अवैध सम्बन्धों का हवाला देते हुए इन मान्यताओं को झुठलाने या असरदार नहीं होने का रोना रोते हैं| क्योंकि यह मान्यताएं किसी पर थोंपी नहीं जाती, सिर्फ एक मार्ग के रूप में समाज में रखी जाती हैं जिनपर चलकर आप हर प्रकार का यश, कीर्ति, शौर्य, बुलन्दी हासिल कर सकते हैं, जो कि इनसे विमुख अवैध सम्बन्धों में पड़ा व्यक्ति हासिल नहीं कर सकता|

असल में जाट-सभ्यता की यही तो समस्या है कि इन लोगों ने इंग्लैंड के सविंधान की भांति, आज तलक भी सब-कुछ अलिखित रखा हुआ है और वह भी ऐसे लोगों के बीच में रहते हुए जो हगना-मूतना कैसे चाहिए, उसपे भी किताबें छाप के रखते हैं| लम्बा हो जायेगा, इसलिए इस बिंदु पर जाटू-सभ्यता में विश्वास रखने वालों से इसको डॉक्यूमेंट करने की अपील करते हुए लेख के विषय पर वापस लौटता हूँ|

"खेड़े के गौत" का सिस्टम उस गाँव में बसने वाली हर जाति के लिए समान रूप से "पहले आओ, पहले बसाओ" की नीति पर आधारित है| उदाहरण के तौर पर मेरी जन्म नगरी निडाना, जिला जींद, जाटों के मलिक गौत का, बनियों के गर्ग गौत का, ब्राह्मणों के भारद्वाज गौत का, चमारों के रँगा गौत का, धानकों के खटीक गौत का, एक गौतीय खेड़ा है|

बहु-गौतीय खेड़े में गांव-की-गांव में शादी की मनाही नहीं होती, परन्तु सगौत में विवाह की मनाही उन गाँवों में भी होती है|

दूसरी ख़ास बात, जाटू-विवाह सिस्टम में तलाक के बाद लड़की अगर "लत्ता-ओढाई" के तहत पति के सगे या चचेरे भाई में से किसी से भी विवाह की इच्छुक ना हो तो वह ससुराल-मायके में कहीं भी बसने की अधिकारी होती है| अगर वह मायके में आ के बसती है तो उसकी औलादों का गौत उसका चलेगा, उसके पति का नहीं|

मोटे-तौर पर इन बातों को ऐसे बिन्दुबद्ध किया जा सकता है:
1) जाटू-वैवाहिक प्रणाली जेंडर-न्यूट्रल है|
2) जाटू-वैवाहिक प्रणाली विश्व की शायद एकलौती ऐसी प्रणाली है जिसके तहत औलाद सिर्फ पिता ही नहीं अपितु माता का गौत भी धारण करती है| इस पहलु को जाटू प्रणाली को पुरुष-प्रधान कहने वाले असामाजिक तत्व खासकर नोट करें|
3) जाटू-वैवाहिक प्रणाली 'खेड़े के गौत' के "पहले आओ, पहले बसाओ" नियम पर आधारित है|
4) जाटू-वैवाहिक प्रणाली अगर एक गाँव को एक जाति के एक से ज्यादा गौत के लोग बसाते हैं तो वह गाँव बहु-गौतीय खेड़ा कहलाता है| जैसे कि सिरसा-फतेहाबाद साइड के बहुत से गाँव|
5) जाटू-वैवाहिक प्रणाली में तलाक के बाद औरत ससुराल-पीहर (मायका) जहां चाहे बस सकती है|
6) जाटू-सभ्यता के "एक गौती खेड़े" में 36 बिरादरी की बेटी-बहन-बुआ-भतीजी समान रूप से सबकी की बेटी-बहन-बुआ-भतीजी मानी जाती है, ताकि जेंडर-न्यूट्रलिटी के आधार-स्तम्भ को जीवित रखा जा सके|

मेरे पास इन तथ्यों के प्रैक्टिकल उदाहरण हैं और वो भी बहुतायत में; और यही उदाहरण मेरे इस लेख का आधार हैं|

इसलिए जाटू (खाप) मान्यता की संस्कृति में विश्वास रखने वाले व् इसके अनुसार चलने वाले लोगों-समाजों से अनुरोध करूँगा कि आज के दिन देश की विधायिका में ऐसे लोग कानून बनाने को बैठे हैं जिनके यहां कोई औरत विधवा हुई नहीं और पति की जायदाद-सम्पत्ति से बेदखल कर उठा के फेंक दी विधवा-आश्रमों में जीवन-भर सड़ने के लिए| तो इनको अपने ऊपर हावी ना होने देवें, आप स्वत: में एक विश्व-स्टैण्डर्ड की सभ्यता हैं; इसको अंगीकार करे रखें और आगे बढ़ाते रहें परन्तु सुधारों के साथ| क्योंकि इन मान्यताओं में लोभ-लालच के चलते कुछ ऐसे किस्से भी देखे गए हैं जो कि नहीं होने चाहियें| परन्तु इन किस्सों की संख्या 2-4% है, जबकि 96-98% मामलों में यह सभ्यता सकारात्मक परिणाम देती हुई, सदियों से आजतक कायम है|

जाटों की "सगौत्रीय विवाह में मनाही" और "गाँव की 36 बिरादरी की बेटी-बहन-बुआ-भतीजी को अपनी बेटी-बहन-बुआ-भतीजी" कहने की सभ्यता का मजाक उड़ाने वाले, अधिकतर वही बज्रबटटु होते हैं जो किसी नामधारी बाबा के सत्संग में सैंकड़ों कोस दूर से आई अनजान सत्संगन को भी बहन कहते पाए जाते हैं, या बाबा लोग इनसे ऐसा करने को कहते हैं या आरएसएस जैसों के यहां मर्द-मर्द को राखी बाँधने वाली कसम निभाते पाए जाते हैं|

बता यह सत्संग तो मेरे पुरखे बाई-डिफ़ॉल्ट मेरी जाट-सभ्यता में ही ना उतार गए थे, मुझे इसके लिए इन सत्संगों-संगठनों में जाने की भला क्या जरूरत? गाँव-की-गांव में जिनको बहन-बेटी-बुआ-भतीजी कहता हूँ उनको कम से कम जन्म से जानता होता तो हूँ| तरस आता है ऐसे लोगों पर जो अनजानों तक को बहन बनाते हैं और फिर जाटू-सभ्यता पर मुंह भी चिकलाते हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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