Wednesday, 26 October 2016

गाँधी से पहले महाराजा सूरजमल बरतते थे, "अपराध का जवाब अपराध नहीं" की थ्योरी!

महाराजा सूरजमल जी की जिंदगी से मुझे जो सबसे बड़ा सबक मिलता है वो यह कि कुटिलता-शियारी-षड्यन्त्र का उतना ही विरोध करो जितने से आपका बचाव हो सके| कुटिल के रास्ते से हट जाओ, इससे उसके दो हश्र होंगे; या तो उससे भी शातिर से टकरा के ध्वस्त हो जायेगा या फिर अपनी ही कुटिलता में कुढ़-कुढ़ मर जायेगा| और आपके दो फायदे होंगे, एक तो आपकी ऊर्जा बची रहेगी, दूसरी आप उसी शातिर को बाद में उस पर अहसान कर उसको दोहरी मार मारने के काबिल रहोगे|

पूना के पेशवा बाजीराव के छोटे भाई व् सदाशिवराव भाऊ की महाराजा सूरजमल को अब्दाली के खिलाफ "जाट-मराठा अलायन्स" बना के लड़ने की बात की आड़ में वार्ता के लिए बुला के बन्दी बनाने और फिर पूरी जाट-सेना को पानीपत में इस्तेमाल करने की इनकी कुटिलता को जाट-सुरमा पल में भांप गया था| परन्तु उस अफलातून ने इसका विरोध करने की बजाये, चुप्पी खींचना बेहतर समझा| अपनी ताकत को पेशवाओं की महत्वाकांक्षा की पूर्ती का साधन नहीं बनने दिया| उस सुजान के धैर्य और सन्तोष का परिणाम यह हुआ कि उसको बन्दी बनाने का सपना लेने वाले, पानीपत में घायल व् पराजित हो, उसी के दर पर फर्स्ट-ऐड पाए| और इस तरह पीढ़ियों-सदियों-शताब्दियों तक अपनी जमातों को उस जाट का ऋणी खुद ही बना गए|

आज के दिन, ठीक ऐसी ही रणनीति पूना के पास ही के नागपुरी राष्ट्रवादियों के साथ करने का वक्त आया है| आरएसएस/बीजेपी लाख उकसावे परन्तु उकसना मत; बल्कि इनके लिए अब्दाली का इंतज़ार करना| और अब्दाली अबकी बार भारत में ही है, इनकी जातिवाद और वर्णवाद की नीति में ही है| वो धीरे-धीरे विकराल रूप ले रहा है और इनको डंसने की ओर अग्रसर है; परन्तु यह उसको "जाट बनाम नॉन-जाट" के रूप में आपकी तरफ मोड़ने की फिराक में हैं; बच के रहना| संयम धारे रहना|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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